पीएम के जीवन पर बनी छोटी फिल्म से मिलता बड़ा संदेश
सबके जीवन में बचपन की यादें एक खुशनुमा सपने की तरह होती हैं।
मुजफ्फरपुर : सबके जीवन में बचपन की यादें एक खुशनुमा सपने की तरह होती हैं। कई किस्से कहानिया कुछ ऐसी होती हैं कि आनेवाली पीढि़यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाल्यकाल पर बनी लघु फिल्म 'चलो जीते हैं' भी कुछ वैसी ही है जिसे देख सुनकर न सिर्फ जिंदगी जीने का सलीका मिलता है, बल्कि तमाम झंझावतों के बावजूद आदमी अगर हिम्मत नहीं हारे और मनोयोग से संघर्ष पथ पर आगे बढ़े तो वह जीवन में अवश्य कामयाब होता है। 31 मिनट 18 सेकेंडे की शॉर्ट फिल्म का अमर सिनेमा हॉल में प्रदर्शन हुआ। भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी प्रभात कुमार ने बताया कि आम लोगों के लिए जिला भाजपा की ओर से निश्शुल्क प्रदर्शित किया गया था। खचाखच भरे सिनेमा हॉल में फिल्म ने देखने वालों को भावुक कर दिया। दर्शकों से 'दैनिक जागरण' ने बात की और फिल्म के बारे में जानने की कोशिश की।
फिल्म देखकर जाना हम आखिर किसके लिए जीते
शेरपुर की ¨रकू प्रिया व गोशाला चौक की सोनी तिवारी बताती हैं कि कहानी कुछ ऐसी है कि कैसे बालक नारु यानी नरेंद्र मोदी स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर अपने शिक्षक, माता-पिता और हर मिलने वाले से एक ही सवाल करते नजर आते हैं कि आप किसके लिए जीते हैं? केदारनाथ रोड के विमलेश कुमार डब्ल्यू, छाता बाजार के सिद्धार्थ चौधरी का कहना है कि कच्ची पक्की सुस्ता की रंजीता रोशन व मालीघाट के साकेत शुभम का कहना है कि कुछ ऐसी ही कहानी है छोटे से बच्चे नारु की जो रोज सुबह गुजरात के छोटे वडनगर स्टेशन पर अपने पिता के साथ चाय बेचता है वो अपने जीवन का मकसद ढूंढ़ रहा है। ये सवाल तो हर व्यक्ति अपने आप से कर सकता है कि आप किसके लिए जीते हो।