East Champaran: प्रवासी पक्षियों के खून से लाल हो रही सरोतर झील, सिस्टम मौन व वन विभाग अंजान
पूर्वी चंपारण के सरोतर झील में नवंबर से मार्च तक रहता है पक्षियों का बसेरा साइबेरिया व अन्य ठंडे प्रदेशों से आते पक्षी। घात लगाए शिकारी नववर्ष को लेकर मेहमान पक्षियों के कत्ल की तैयारी। सरकारी प्रतिबंध के बावजूद व्यापक पैमाने पर होती शिकारमाही।
डुमरियाघाट (पूच), जासं। नववर्ष 2021 के लिए जहां हर जगह नये साल की तैयारी चल रही है वही सूबे के चर्चित सरोतर झील का पानी मेहमान प्रवासी पक्षियों के खून से लाल हो रहा है। झील पर हावी शिकारियों के रैकेट द्वारा नए साल में मुंहमांगे दामों पर ग्राहकों से बेचने के लिए व्यापक पैमाने पर मेहमान पक्षियों के शिकार किया जा रहा है। इसको लेकर शिकारियों ने जमकर तैयारी किया है। झील के पानी के ऊपर बड़े बड़े जाल लगाए है। वहीं सैकड़ो नाव का इंतजाम हुआ है। मछली पालन की आड़ में शिकारियों का रैकेट नाव के सहारे झील के अंदर पहुंचता है। मछली पकड़ने वाले जाल के नाम पर पक्षियों को पकड़ने के लिए बांस बल्लों के सहारे पानी के सतह और पानी के जाल खड़ा देता है। वही रात के अंधेरे में टीना, थाली आदि की आवाज की शोर से पक्षियों को उड़ाते है।
पक्षी डर कर उड़ते है और फिर बड़ी आसानी से शिकारियों के चुंगल में फंस जाते है। फिर उन्हें ये शातिर शिकारी रात भर नाव में भरकर पानी के अंदर ही रखते है। फिर उन्हें छोटे छोटे कारोबारियों और ग्राहकों से बेचा जाता है। सब कुछ जानते हुए भी प्रशासन और वन विभाग अंजान बना हुआ है। इस कारनामे में विभागीय मिलीभगत से इंकार नही किया जा सकता है। मालूम हो कि विदेशों में भारी बर्फबारी के कारण यहां सुखद समय बिताने के लिए भारत में प्रवासी पक्षियों का आगमन लाखों की संख्या में होता है। गुलाबी ठंड के शुरुआत के साथ ही उतर बिहार का चर्चित सरोतर झील विदेशी मेहमान साइबेरियन पक्षियों के इंतजार में पलक बिछाए रहता है। सात समंदर पार से मिलों दूर सफर तय कर रंग बिरंगे पक्षियों का झील में उतरते है। ठंड की शुरुआत होते ही नवंबर माह के प्रथम सप्ताह से यहां पक्षियों का आना शुरू हो जाता है।
इन पक्षियों का प्रवास मार्च तक रहता है। रंग बिरंगे पक्षियों की करतल ध्वनि से झील की सुंदरता में चार चांद लग जाता है। रौनक बढ़ जाती है। प्रत्येक वर्ष दर्जनों प्रजाति के पक्षी यहां आते है। आनेवाले पक्षियों की संख्या सैकड़ो में नही बल्कि कई हजारों में होती है। इस झील में पांच माह के प्रवास के बाद गर्मियां शुरू होते ही अपने वतन को लौट जाते है। प्रवासी पक्षियों का आकर्षण देखते ही बनता है। पक्षियों का झील से उड़ान भरना अटखेलियां करना बहुत ही सुंदर व मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। आस पास के गांवों के ऊपर जब पक्षियों का झुंड आसमान में उड़ता है तो देखते बनता है। मगर अफसोस यह है की झील के विकास व सौंदर्यीकरण के लिए शासन, प्रशासन व वन विभाग उदासीन है। पक्षियों के आगमन के साथ ही वन संरक्षण अधिनियम की धज्जियां उड़ाते धड़ल्ले से उनका शिकार होना शुरू हो जाता है। वही सब कुछ जानते हुए सिस्टम मौन धारण किए हुए है।
कहां है यह झील
नेशनल हाइवे- 28 धनगढहां चौक से पूरब करीब चार किमी दूरी पर अवस्थित है यह झील। सैकड़ो एकड़ क्षेत्रफल में है फैली है यह झील। यह झील सरोतर, बनपरुआ, नारायणपुर, पुरैना, सेम्भुआपुर, चांदपरसा आदि गांव से चारों तरफ से घिरा हुआ है।
अभी क्या है स्थिति
झील में अभी पक्षियों का उतरना शुरू हो चुका है। हालांकि अभी इनकी संख्या कम है। ठंड में वृद्धि और बारिश होने के साथ ही इनके आवक में काफी वृद्धि होने लगती है।
कौन कौन प्रजाति के आते है पक्षी
यहां मुख्य रूप से लालसर, दीघवच, कसुरार, डुमर, निलसर, डार्टर, ब्लैक नेकेड स्टॉक, कूट, किंगफिशर, मूर हेन, ग्रैहेरान, कॉमन इगरेट, टिल, पर्पल हेरान आदि प्रजाति के पक्षी प्रवास के लिए आते है।
किन किन जगहों से आते है पक्षी
ठंडे इलाके वाले देश साइबेरिया, स्विट्जरलैंड, इंडो तिब्बत, वर्मा, थाईलैंड, जापान, रूस, अफगानिस्तान, मंगोलिया, इंडोनेशिया आदि देशों से प्रवासी पक्षी यहां पहुंचते है।
शिकारमाही पर रोक के लिए क्या हुआ है अब तक इंतजाम
शिकार पर रोक के लिए अब तक सेम्भुआपुर, धनगढहाँ आदि जगहों पर डिस्प्ले बोर्ड लगा कर शिकार नही करने का निर्देश दिया गया है। शिकार की सूचना पर वन विभाग दिखावे के लिए गश्त करता है जिसका नतीजा सिफर रहता है।