Move to Jagran APP

पश्चिम चंपारण निवासी के प्रमोद बैठा के लिए आत्मनिर्भरता का मंत्र बना संबल

जुलाई में पश्चिम चंपारण में एलईडी बल्ब बनाने की फैक्ट्री लगाने वाले प्रमोद दूसरों को दे रहे रोजगार। लॉकडाउन से पहले दिल्ली की फैक्ट्री में करते थे मजदूरी प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में की चर्चा ।

By Ajit kumarEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 07:55 AM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 07:55 AM (IST)
पश्चिम चंपारण निवासी प्रमोद बैठा ने एलईडी बल्ब बनाने का काम शुरू किया। फोटो: जागरण

पश्चिम चंपारण, जासं। कोरोना काल में नौकरी गई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भरता का मंत्र संबल बना। इसे अपनाते हुए पश्चिम चंपारण निवासी प्रमोद बैठा ने अपने हुनर को अवसर में बदलने की ठानी। एलईडी बल्ब बनाने का काम शुरू किया। आठ महीने में व्यापार इतना बढ़ चुका है कि दूसरों को रोजगार दिया है। रविवार को प्रधानमंत्री ने 'मन की बात कार्यक्रम में उनकी चर्चा की।

loksabha election banner

मझौलिया प्रखंड के रतनमाला गांव निवासी प्रमोद बैठा 10 वर्ष पहले रोजगार की तलाश में दिल्ली गए थे। वहां एलईडी बल्ब बनाने वाली एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। इससे प्रतिदिन 200 से 300 रुपये मिल जाते थे। होली, दीपावली पर प्रमोद गांव आते थे तो कुछ बल्ब भी लाते थे। उसे यहां के दुकानदारों व ग्राहकों को बेचते थे।

प्रमोद की इच्छा थी कि वे खुद की फैक्ट्री गांव में लगाएं। लेकिन आॢथक तंगी के खौफ से नौकरी छोडऩे का साहस नहीं जुटा पाते थे। बीते वर्ष कोरोना के चलते लॉकडाउन हुआ तो नौकरी चली गई। वे गांव लौट आए। प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता के मंत्र पर काम करने की ठानी। फैक्ट्री शुरू करने की बात पत्नी संजू देवी से बताई। गांव में संचालित स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं पत्नी ने 25 हजार रुपये लोन लिया। पांच हजार पास से लगाकर 30 हजार की पूंजी से जुलाई में घर के एक कमरे में ही एलईडी बल्ब बनाने का कार्य शुरू किया। प्रमोद प्रतिदिन 50 बल्ब बनाकर बेचते थे। काम चल निकला तो दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद से 3.50 लाख रुपये जुटाए। 1.70 लाख खर्च कर बल्ब बनाने की मशीन लगाई। बाकी रकम कच्चा माल में लगाया। अभी उनकी फैक्ट्री में प्रतिदिन 1000 से 1200 बल्ब बन रहा है। एक बल्ब बनाने में 12 रुपये लागत आती है। 15 रुपये में बिकता है।

प्रमोद बताते हैं कि पश्चिम व पूर्वी चंपारण के विभिन्न शहरों में रोजाना 5000 बल्ब की डिमांड है। ऑर्डर पूरा नहीं कर पाते, क्योंकि पूंजी का अभाव है। 10 मजदूर काम कर रहे हैं। मन की बात कार्यक्रम में चर्चा से खुशी हो रही। उनकी फैक्ट्री में काम करने वाले रोहित का कहना है कि बाहर जाने की जगह यहीं काम मिल गया। प्रतिदिन दो से तीन सौ रुपये मिल जाते हैं। जिलाधिकारी कुंदन कुमार का कहना है कि हुनरमंद मजदूरों के लिए प्रमोद प्रेरणास्रोत हैं। उन्हेंं हर तरह का सहयोग दिया जाएगा। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.