सावधानी हटी, शाही लीची पर बढ़ा कीड़ों का प्रकोप
वैज्ञानिक तरीके से लीची की बागवानी नहीं करने पर मिठास में कमी आती है । किसानों को इसे ही अपनाना चाहिए।
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। जीआइ टैगिंग मिलने के बाद सिर्फ शाही लीची की मिठास का गुणगान करने से लाभ नहीं होगा, बल्कि अब विश्व बाजार में शाही लीची व उसके विभिन्न उत्पादों की बिक्री के लिए एक खास पहचान बनानी पड़ेगी। तभी इस भौगोलिक संपदा का लाभ उठा पाएंगे।
इस तरह होती है लापरवाही
जिले में ज्यादातर छोटे व मझोले लीची उत्पादक अपने बाग को बेच देते हैं। क्रेता जून में फलों को तोडऩे के बाद पेड़ों को अनाथ छोड़ देते हैं। जबकि, ऐसा नहीं होना चाहिए। पेड़ों की कटाई-छंटाई करनी चाहिए। जैविक खाद डालना चाहिए, ऐसा ज्यादातर किसान नहीं करते हैं। जुलाई में ही पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम करनी चाहिए। इसके बाद पुराने बागों में गहन कटाई-छंटाई होनी चाहिए। इन बातों पर ध्यान नहीं देने से ही पुराने बाग जीर्ण-शीर्ण होते हैं। उनमें कल्ले जल्दी फूटते हैं, जो निकलते भी हैं, वेे स्वस्थ्य नहीं होते हैं। लगातार अगर लापरवाही बरती गई। तो निश्चित रूप से पेड़ के पत्ते कीट खाकर पतझड़ जैसा बना रहे हैं। देखभाल नहीं करने पर अभी लीची के पेड़ों के पत्तों पर कीड़ों का प्रकोप बढ़ गया है।
ऐसे कीड़ों का होता है प्रकोप
लीची के पेड़ों पर कई तरह से कीड़ों का प्रकोप होता है। एक नए कल्ले को नष्ट करता है। दूसरा पत्ते को नष्ट करता है। वहीं, तीसरा पेड़ की टहनियों को कमजोर करते हैं।
ऐसे करें रोकथाम
लीची वैज्ञानिक डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव ने कहा कि अच्छे फल के लिए पेड़ों के नए कल्लों को पत्तों व टहनियों को बचाना होगा। इस समय मकड़ी ग्रसित टहनियां निकालें एवं क्लोरफेजापावर का 3 मिलीलीटर का छिड़काव करें।
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ कहते है कि किसानों को लगातार लीची के पेड़ों की देखभाल करनी होगी। कीड़ों के प्रकोप से बचाना होगा। तभी शाही लीची की मिठास बच पाएगी। फलों में कीड़े नहीं लगेंगे। जीआइ मिलने के बाद किसानों के लिए उसकी प्रतिष्ठा को बचाना बड़ी चुनौती है।