करबला में लुट गया था घराना हुसैन का..
दस मुहर्रम यौम-ए-आशूरा के मौके पर इमाम हुसैन व 72 शहीदों की शहादत को शिया-सुन्नी समुदाय ने सलाम किया।
मुजफ्फरपुर। दस मुहर्रम यौम-ए-आशूरा के मौके पर इमाम हुसैन व 72 शहीदों की शहादत को शिया-सुन्नी समुदाय ने सलाम किया। शिया समुदाय ने मातम जुलूस निकाल कर ब्लेड, जंजीर, चाकू व तलवार से अपने जिस्म को लहूलुहान किया। समुदाय के लोगों ने जगह-जगह से मातमी जुलूस निकाला। इस दौरान या हुसैन-या हुसैन की सदा ने आंखों को नम कर दिया। वही सुन्नी समुदाय ने अखाड़ा जुलूस निकाल कर शहादत को याद किया। इस दौरान 'कत्ले हुसैन असल में मर गए यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर करबला के बाद..' गूंजा।
तड़प रही हूं सीने पर सुला ले,
बाबा, कहां हो सकीना पुकारे..
'तड़प रही हूं सीने पर सुला ले, ए बाबा कहां हो सकीना पुकारे।' करबला की जंग में इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनकी सात साल की बेटी जनाब सकीना की तड़प को नौहा में सुनते ही आंखों से आंसू टपक पड़े। या हुसैन-या हुसैन की सदा के साथ शिया समुदाय ने अपने जिस्म को लहूलुहान कर लिया। दस मुहर्रम को कमरा मोहल्ला, ब्रह्मापुरा, कोल्हुआ पैगंबरपुर, हसनचक बंगरा सहित विभिन्न स्थानों से निकले मातमी जुलूस में समुदाय के लोगों ने ब्लेड, जंजीर, तलवार व चाकू से अपने जिस्म के हर हिस्से से खून टपकाए। जुलूस में शामिल बच्चे, बूढ़े और जवान सभी खून से सराबोर थे। पंक्ति में खड़े होकर चमचमाती तलवार को काफी तेजी से हवा में घुमा कर अपने सिर पर वार कर रहे थे। मातमी दस्ते में कई तरह की झांकियां भी लोगों को आकर्षित कर रही थीं।
शाम-ए-गरीबां की मजलिस में शहादत के बाद का दर्दनाक मंजर
शिया समुदाय ने शाम को खुले आसमान के नीचे शाम-ए-गरीबां की मजलिस का आयोजन किया। इसमें इमाम हुसैन की शहादत के बाद यजीदी लश्कर द्वारा उनके खेमे को बर्बाद करने के दर्दनाक मंजर को याद किया गया। उलेमा ने कहा कि दस मुहर्रम को करबला के मैदान में इस्लाम की अजमत व कुरान की आबरू बचाते हुए इमाम हुसैन जालिम यजीद से लड़ते हुए अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए थे।