जल संकट से हर तरफ हाहाकार, उपेक्षा की गाद से पट चुके परंपरागत जलस्रोत
दीर्घकालिक हल निकालने पर किसी का ध्यान नहीं। हर साल बारिश में पानी बह जाता व्यर्थ। पानी को सहेज कर रखने की नहीं बनाई आदत।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। परंपरागत जलस्रोतों की दुर्दशा की अलग ही कहानी है। कभी काफी तादाद में पोखर-तालाब थे। कुएं भी थे, लेकिन हमने रहने नहीं दिया। परिणाम हमारे सामने है। परंपरागत जलस्रोत उपेक्षा की गाद से पट चुके हैं और उनपर नए मोहल्ले, बाजार और बहुमंजिली इमारतें खड़ी हो गईं। दीर्घकालिक हल निकालने पर किसी का ध्यान नहीं। हर साल बारिश में न जाने कितना पानी व्यर्थ बह जाता, अगर उस पानी को सहेज कर रखने की आदत हमने बनाई होती तो पानी के लिए पसीना नहीं बहाना पड़ता। विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित 'चुनावी चौपाल' में ये बातें उभरकर सामने आईं।
इन्होंने रखे अपने-अपने विचार
डॉ. पंकज कुमार राय, डॉ. तृप्ति सिंह, डॉ. अशोक कुमार श्रीवास्तव, डॉ. अनिल कुमार धवन, डॉ. पूनम वर्मा, डॉ. नंदलाल चौधरी, डॉ. प्रवीण कुमार सिन्हा, डॉ. शशि कुमारी सिंह, प्रो. मंजू ओझा, डॉ. सीमा कुमारी, प्रो. भारती कुमारी, डॉ. सतीश कुमार, डॉ. शिवानंद सिंह के अलावा छात्रसंघ के अध्यक्ष बसंत कुमार सिद्धू व छात्र नेता ठाकुर प्रिंस।
चौपाल में उभरीं ये बातें
-जितना भूजल दोहन हो रहा है, उससे ज्यादा जल संचयन की व्यवस्था भी की जाए।
-जनसंख्या पर नियंत्रण हो तथा नदी-नालों को साफ-सुथरा रखें। -पौधरोपण हो और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कारगर कदम उठाए जाएं।
-बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लगे।
-तालाब-पोखर को बचाने के लिए अभियान चले।
-अधिक से अधिक पौधरोपण हो और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो।
-सरकार को प्राकृतिक जल निकायों की सुरक्षा करनी चाहिए।
-तालाब, कुओं जैसे पारपरिक स्रोतों को जीवंत बनाने और भूजल संरक्षण की जरूरत है।
परंपरागत जलस्रोतों को बचाने की नहीं ली गई सुध
पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. विवेकानंद शुक्ला कहते हैं कि तालाब, कुओं जैसे पारंपरिक स्रोतों को जीवंत बनाने और भूजल संरक्षण की जरूरत पहले से कहीं अधिक हो गई है। जिले में काफी तादाद में पोखर-तालाब थे, कुएं थे लेकिन हमने उन्हें रहने नहीं दिया, परिणाम हमारे सामने है। सरकार को चाहिए कि विशेषज्ञों की उच्चस्तरीय कमिटी बनाकर इस राष्ट्रव्यापी समस्या का कारगर निदान निकाले।
अक्षयवट् कॉलेज महुआ में सीनेटर व प्राध्यापक डॉ. सत्येंद्र सिंह टुनटुन ने कहा कि हमने विकास की अंधी दौड़ में जलस्रोतों को नष्ट कर मकान बना दिए, उद्योग लगा दिए। भूजल का लगातार दोहन करते रहे। उनमें पानी जमा होता था और वहां से धीरे-धीरे रिस-रिस कर भूजल के स्तर को बनाए रखता था। अब भूजल का स्तर काफी नीचे खिसक रहा है।