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तालाब को 'पी' रही व्यवस्था, पीने के पानी के लिए तरस रहे लोग

पोखर एवं तालाब का अस्तित्व समाप्त होने से पैदा हो रही जल संकट की स्थिति। तेजी से गिर रहा भूजल स्तर। जल्द नहीं हुए सतर्क तो बूंद-बूंद के लिए तरसेंगे।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 09:24 AM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 09:24 AM (IST)
तालाब को 'पी' रही व्यवस्था, पीने के पानी के लिए तरस रहे लोग
तालाब को 'पी' रही व्यवस्था, पीने के पानी के लिए तरस रहे लोग

मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। क्षणिक फायदे के लिए हम तालाब खत्म करते जा रहे, लिहाजा आज पीने के लिए पानी को लोग तरस रहे। मिटते-सिमटते तालाब मौजूदा जल संकट की बड़ी वजह है। एक समय था जब शहर हो या गांव, पोखर-तालाब नजर आते थे। लेकिन, अब नाममात्र के रहे गए हैं। अधिकांश समाप्त हो चुके हैं। जो बचे हैं वे भी अंतिम सांसें गिन रहे। पूर्वजों ने तालाब एवं पोखर के महत्व को समझा था। आने वाली पीढ़ी को जल संकट का सामना नहीं करना पड़े, इसलिए बड़ी संख्या में पोखर-तालाब खुदवाए थे, लेकिन आधुनिक होने के भ्रम में हम इन्हें समाप्त करते जा रहे।

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   अधिकांश तालाबों को भरकर उसके अस्तित्व को समाप्त कर दिया गया। कहीं उसे कूड़ेदान बना दिया गया है। इसका गंभीर परिणाम सामने है। भूजल स्तर गिर रहा। हम पानी की तलाश में भटक रहे। समाज हो या सरकार, सबने इसकी महत्ता को दरकिनार किया। न किसी जनप्रतिनिधि ने और न ही किसी राजनीतिक दल ने इसको बचाने या जीर्णोद्धार की योजना अपने विकास के एजेंडे में शामिल किया। चुनाव में जनता पोखर एवं तालाबों की अनदेखी को बड़ा मुद्दा बनाएगी।

तालाबों का है आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व

तालाब की बात होते ही जीवन के सात दशक देख चुके राजकिशोर सिंह की आंखें चमक उठीं। बोले-पोखर न सिर्फ हमारी और जमीन की प्यास बुझाता, बल्कि इसका सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्व भी है। मानसून के चार महीनों में बारिश का पानी इनमें जमा होता था। यह पानी सालोंभर लोगों की दिनचर्या का अंग बना रहता था। खेतों की सिंचाई की जाती थी। मवेशियों को नहलाया जाता था। तमाम सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियां इसी तालाब के किनारे संपन्न हुआ करती थीं।

   तमाम प्रत्यक्ष लाभों के इतर यह तालाब धरती के गर्भ में इतना पानी रिसा देता था कि शहर एवं गांवों का भूजल स्तर हमेशा बरकरार रहता था। इतना ही नहीं, लोग इसमें मछली पालकर आजीविका चलाते थे। इसकी मिट्टी से कुम्हार एवं मूर्तिकार अपना काम करते थे। कपड़ा धोने से लेकर दैनिक जीवन के अन्य कामों में तालाबों का योगदान था। किसी संपन्न व्यक्ति को जब कोई खुशी हासिल होती थी तो वह तालाब खुदवा देता था। लेकिन, अब लोग इसकी महत्ता की अनदेखी कर रहे, जो आने वाले समय में भारी पड़ेगा।

भूजल में गिरावट खतरनाक स्तर को पार

संजय कुमार सिंह बताते हैं कि पर्यावरण की दृष्टि से पोखर एवं तालाबों का महत्व है। पोखर बारिश के पानी को संचित कर गर्मी में धरती की प्यास बुझाते हैं। इसी से हमारी प्यास भी जुड़ी थी। आसमान से आग बरसने पर भूगर्भ जल का स्तर बनाए रखने में पोखर एवं तालाबों का पानी अहम रोल अदा करता था। लेकिन, इनके समाप्त होने से जलस्तर में लगातार गिरावट हो रही। सबसे खराब स्थिति शहरी क्षेत्र की है। यहां जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गया है। इससे शहर जल संकट की समस्या से जूझ रहा है।

शहर व गांव के प्रमुख पोखर एवं तालाबों की स्थिति

घिरनी पोखर-नगर निगम को कूड़ा डंप करने के लिए जगह नहीं मिली तो उसने शहर के पोखरों को कूड़ेदान बना दिया। उनमें से एक है घिरनी पोखर। इसका इतिहास 150 साल पुराना है। शहर के अरुण बोस ने पांच सौ मीटर की परिधि में इसे खुदवाया था। इससे लोगों को पीने का पानी मिलता था। ढाई दशक पूर्व पोखर को निगम की काली नजर लग गई। इसमें शहर का कूड़ा डंप किया जाने लगा। परिणाम पोखर विलुप्त होते चला गया।

पोखरों का हाल 

पड़ाव पोखर का इतिहास सौ साल से अधिक पुराना है। शहर के प्रतिष्ठित उमाशंकर प्रसाद सिंह ने आम गोला रोड से सटे दो एकड़ से अधिक भूभाग में इसे खुदवाया था। स्थानीय विद्यानंद सिंह बताते हैं कि जब पोखर का निर्माण हुआ था तब इसका पानी निर्मल था। लेकिन, अब यह पोखर सिमट चुका है। इसका पानी दूषित हो गया। पोखर अभी जिंदा है, लेकिन बीमार है। कभी भी दम तोड़ सकता है। महाराजी पोखर नगर के प्राचीनतम मोहल्ले स्थित महाराजी पोखर के पास कभी दरभंगा महाराज फुर्सत के क्षण बिताया करते थे। उन्होंने ही यह पोखर खुदवाया था।

   कूड़ा-करकट व घरों की नालियों के पानी से यह गंदे पानी का तालाब बन गया है। अतिक्रमणकारी धीर-धीरे इसे अपनी गिरफ्त में लेते जा रहे हैं। साहू पोखर शहर के मानसरोवर के रूप में विख्यात इस पोखर का निर्माण साहू परिवार ने कराया था। चारों ओर पक्की सीढ़ी से घिरे इस पोखर के किनारे रामजानकी मंदिर है। लेकिन, तालाब का पानी दिनोंदिन दूषित हो रहा है। पोखर किनारे अवैध कब्जाधारी दुकानें जमाए बैठे हैं। इतना ही नहीं धोबी घाट बनने के साथ-साथ पोखर में होटलों, घरों एवं मोहल्ले का कूड़ा भी फेंका जाने लगा है।

अनदेखी के शिकार पोखर व तालाब

अनदेखी के कई पोखर व तालाब शिकार है। इसमें माड़ीपुर पोखर, ब्रह्मपुरा पोखर, विश्वविद्यालय पोखर, रामदयालु कॉलेज पोखर, तीन पोखरिया, बेला पोखर, अजरकवे पोखर, बीबीगंज पोखर, रेलवे पोखर, श्याम टॉकीज पोखर, पोखरिया पीर पोखर, एमएसकेबी पोखर, क्लब रोड पोखर, कन्हौली मठ पोखर, गोशाला पोखर और शेखरपुर पोखर है। 

पोखर व तालाबों को बचाना सरकार का कर्तव्य

अधिवक्ता संजीव कुमार के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एक मामले में व्यवस्था देते हुए कहा था कि गुणवत्तापरक जीवन हर नागरिक का मूल अधिकार है। इसको सुनिश्चित करने के लिए सरकार को प्राकृतिक जल निकायों की सुरक्षा करनी चाहिए। कोर्ट के मुताबिक जल निकायों की सुरक्षा इस तथ्य में निहित है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गुणवत्तापरक जीवन के दायरे में जल के अधिकार की गारंटी भी शामिल है।


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