'नमामि गंगा' के तहत लगे पौधों को भी नहीं मिली सुरक्षा, शहर में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर
चार हजार पौधे गंडक नदी के किनारे 10 किमी के दायरे में लगाए गए थे। एक वनपाल के भरोसे है तिरहुत वन प्रमंडल के लाखों पेड़ों की सुरक्षा।
मुजफ्फरपुर, [मो. शमशाद]। जीवन को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण जरूरी है। पर, दुर्भाग्य से पेड़-पौधों की उपेक्षा और कटाई के कारण यह दिन-प्रतिदिन प्रदूषित होता जा रहा। यही वजह है कि मुजफ्फरपुर प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हो गया है। पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर लाखों रुपये खर्च हो रहे। वन विभाग हरियाली के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत हजारों पौधे लगाने का दावा कर रहा। बावजूद इसके शहर में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है।
बड़ा सवाल है कि वे पौधे कहां गए, क्या इनकी सुरक्षा हो पा रही? कौन कर रहा है उनकी सुरक्षा? कैसे की जा रही सुरक्षा? क्या हैं संसाधन? जब इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई तो पता चला कि विभिन्न कारणों से पेड़ों को काटा जा रहा। नमामि गंगा परियोजना के तहत लगे पौधों का भी वही हश्र हुआ। उसे नहीं सहेजा जा सका।
सूख रहे नमामि गंगा योजना के तहत लगे पौधे
नमामि गंगा योजना के तहत जिले में करीब चार हजार पौधे लगाए गए थे। प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना ने सुरक्षा एवं संरक्षा के अभाव में दम तोड़ दिया। गंडक नदी के किनारे 10 किमी के दायरे में पौधे लगाए गए थे। इनमें अधिकतर देखभाल के अभाव में सूख चुके हैं। वन विभाग का दावा है कि इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसानों की थी। योजना के तहत लगे पौधों में कितने लहलहा रहे और कितने सूख गए, इसका जवाब देने में वन विभाग कन्नी काट रहा है।
पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलवा रहे असामाजिक तत्व
मुजफ्फरपुर में पेड़ों की कटाई धड़ल्ले से हो रही। सरकारी जमीन पर लगे पेड़ों को काटा जा रहा। जिले में इन असामाजिक तत्वों का जाल बिछा है। जो सरकारी जमीन पर लगे हरे पेड़ों की कटाई कर रहे हैं। पर्यावरण को बर्बाद कर रहे। उन्हें किसी का डर नहीं। वन विभाग का इन पर लगाम नहीं है। विभाग संसाधनों की कमी का रोना रो रहा।
एक वनपाल, दो वनरक्षी के भरोसे कैसे होगी सुरक्षा
पेड़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन पर है, जिले में उनकी स्थिति चिंताजनक है। एक वनपाल एवं दो वनरक्षी के भरोसे जिले के पौधों की सुरक्षा है। इससे सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल है। पिछले कई वर्षों से पद रिक्त है। बताया जाता है कि मुजफ्फरपुर वन प्रमंडल में वनपाल के 13 पद सृजित हैं। इस पर मात्र एक ही कार्यरत हैं। वहीं, वनरक्षी के 47 पदों के बदले दो कार्यरत हैं। हालांकि, विभाग का कहना है कि सुरक्षा को लेकर वैकल्पिक उपाय किए गए हैं।
अवैध रूप से काटे गए तिरहुत
नहर के किनारे लगे हजारों पौधे
लकड़ी माफिया के निशाने पर सबसे अधिक नहरों के किनारे लगे पौधे हैं। एक समय था, जब तिरहुत नहर के दोनों तरफ पेड़ हुआ करते थे, मगर आज इनकी संख्या काफी कम हो गई है। माफिया के लिए सुरक्षित जोन है। स्थानीय ग्रामीणों की मदद से ये धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई करते हैं। ग्रामीणों ने भी यहां के पेड़ों को काफी नुकसान पहुंचाया है। पेड़ों को काट कर वहां झोपड़ी बना ली है।
शीशम को निगल रहा सिस्टम, स्थिति और होगी विकराल
लकड़ी माफिया ने शीशम के पेड़ों को सर्वाधिक निशाना बनाया। शीशम की लकड़ी की मांग अधिक होने की वजह से इसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया। सड़क, नहर आदि जगहों पर लगे हजारों पेड़ को मौत दे दी। इसके साथ ही हाल के वर्षों में शीशम मे लगे कीड़े ने इस प्रजाति को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया। वन विभाग द्वारा पौधरोपण में शीशम को तवज्जो नहीं दिया जा रहा है। किसान भी कम समय में अधिक आर्थिक लाभ की सोच में इससे किनारा करने लगे हैं।
खत्म हो गए जट्रोफा के लाखों पौधे
करजा उपवितरणी आरडी संख्या 17, 18, 19 एवं 20 पर लगे जट्रोफा के लगे लाखों पेड़ विलुप्त हो गए। देखभाल के अभाव में इनकी असमय मौत हो गई। जबकि, विभाग द्वारा इनकी सुरक्षा के लिए कर्मी को तैनात किया गया था। इसके बाद भी ये पौधे काट लिए गए। बताया जाता है कि पोखरैरा से मोहम्मदपुर खाजे के द्वारिकानाथपुर तक करीब लाखों पौधे लगाए गए थे।
खड़ा रहा गेबियन, सूख गए पौधे
शहर में विभिन्न योजनाओं के तहत हजारों पौधे लगाए गए। मवेशियों से बचाने के लिए गेबियन लगाए गए। इसके बाद भी अधिकतर पौधे सूख गए। देखभाल के अभाव में अधिकतर ने दम तोड़ दी। कच्ची-पक्की-केरमा पथ, अघोरिया बाजार समेत कई जगहों पर लगाए गए पौधे सूख चुके हैं।
विभाग को जानकारी नहीं
वन विभाग ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में विभिन्न योजनाओं में करीब एक लाख, 23 हजार 180 लगाए। पौधरोपण पर लाखों रुपये खर्च हुए। इसके बाद भी विभाग यह बताने में सक्षम नहीं कि इनमें कितने पौधे बचे हुए है।
इन योजनाओं में लगे पौधे
- पथतट वर्षाकालीन : 16 हजार
- पथतट वसंतकालीन : 30 हजार
- पथतट पोपुलर कृषि वानिकी वसंतकालीन : 21 हजार
- पथतट वसंतकालीन : 14 हजार
- पथतट वसंतकालीन : 17 सौ
- पथतट वर्षाकालीन : 24 हजार
- हर परिसर-हरा परिसर : दो हजार 110
- कैम्पा फंड पौधरोपण : 10 हजार 370
रामदेव की गाछी अब हो गई रामदेव नगर
कुढऩी प्रखंड के माधोपुर में कभी कई बीघे में बाग हुआ करता था। इलाके में इसकी पहचान रामदेव बाबू की गाछी के रूप में थी। बच्चे इस गाछी में खेलते थे। गर्मी के दिनों में राहगीर शीतल छाया में आराम करते थे। समय बदलता गया। गांव में भी जमीन की मांग बढ़ी तो धीरे-धीरे यहां के पेड़ों की कटाई शुरू हो गई। पेड़ों की जगह मकान बनते गए। शहरीकरण ने रामदेव बाबू की गाछी को रामदेव नगर बना दिया है।