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Valmikinagar, WestChamparan News: चाय की दुकान में मिली पाम सीविट, जानिए इस दुर्लभ प्रजाति की जीव के बारे में

Valmikinagar WestChamparan News पश्चिम चंपारण में चाय की दुकान में बिल्ली जैसी एक वन्य जीव देखने के बाद अफरातफरी मच गई। सूचना के बाद पहुंची वन विभाग की टीम ने उसका रेस्क्यू किया। हल्की आहट सुनते ही जमीन पर दुबक जाती है सीविट।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 01:39 PM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 01:39 PM (IST)
Valmikinagar, WestChamparan News: चाय की दुकान में मिली पाम सीविट, जानिए इस दुर्लभ प्रजाति की जीव के बारे में
चाय की दुकान में मिली पाम सीविट

वाल्मीकिनगर (पचं.), जेएनएन।  गोल चौक स्थित बिट्टू ङ्क्षसह की चाय की दुकान में बिल्ली जैसी एक वन्य जीव देखने के बाद अफरातफरी मच गई। सूचना के बाद पहुंची वन विभाग की टीम ने उसका रेस्क्यू किया। टीम के एक सदस्य ने बताया कि एशियाई पाम सीविट को रेस्क्यू करते समय काफी सतर्कता  से काम लेना पड़ा। क्योंकि वह घबराई हुई थी। शुक्र है कि इसे किसी तरह की हानि नहीं पहुंची। आम तौर पर आहट सुनते ही वह जमीन की खोह में दुबक जाती है।

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 इस बाबत प्रकृति प्रेमी मनोज कुमार ने बताया कि निशाचर प्रवृत्ति के इस स्तनपायी वन्यप्राणी को दिन अथवा दोपहर के समय देख पाना बेहद मुश्किल होता है। एकांतप्रिय यह वन्यप्राणी किसी की आहट सुनते ही जमीन की खोह अथवा अपने आवास में दुबक जाती है। रात मेंं शिकार के लिए यह मांसाहारी वन्यप्राणी बाहर निकलती है। बड़ी शिकारी बिल्ली की तरह दिखने वाली एशियन पाम सीविट छोटे जीवों जैसे छिपकली, सांप, मेंढक व कीड़ों का शिकार करती है।

दक्षिण भारत के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया, श्रीलंका, दक्षिणी चीन इत्यादि देशों में यह बड़ी संख्या में पाई जाती है। काले बाल व बड़ी आंखों वाली इस वन्यप्राणी की उम्र 15 से 20 साल तक होती है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में एशियन पाम सीविट रिकार्डेड वन्यप्राणी है। कई सालों बाद यह वीटीआर में लोगों को दिखी है। लगातार सिमटते जंगलों के चलते यह कई बार भोजन की तलाश में रिहायशी इलाकों में आ जाती है। इनसे इंसानों को किसी प्रकार का खतरा नहीं होता और आम तौर पर यह रिहायशी इलाकों से दूर रहती है।

क्या है एशियाई पाम सीविट

 वाल्मीकि नगर रेंजर महेश प्रसाद ने बताया कि एशियाई पाम सीविट दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया के जंगलों में पाई जाती है। यह दो से पांच किलोग्राम की होती है। इनसे इंसानों को किसी प्रकार का खतरा नहीं होता और आम तौर पर यह रिहायशी इलाकों से दूर रहती है। इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची द्वितीय के तहत संरक्षित किया गया है।


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