मुजफ्फरपुर की इन सीटों पर CM Nitish Kumar ने दावेदारी पुख्ता की, क्या जिले की टीम में होगा बदलाव ?
मुजफ्फरपुर में गायघट सकरा मीनापुर के बाद अब कुढ़नी पर भी अपनी दावेदारी को और मजबूत कर लिया है। क्योंकि इस बार कुढ़नी सीट भाजपा के खाते में थी। जहां से केदार गुप्ता को राजद प्रत्याशी के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
मुजफ्फरपुर, ऑनलाइन डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Assembly election 2020)संपन्न होने के बाद भी सूबे की राजनीति में गर्माहट बरकरार है। भले ही वह अरुणाचल प्रदेश में जदयू (JDU) के विधायक के भाजपा (BJP) में शामिल होने की बात को लेकर हो या फिर सीएम नीतीश के जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटने को लेकर। हाल के दिनों मेंं राजनीतिक पंडितों को सबसे अधिक यदि किसी ने चौंकाया है ताेे वे हैं, सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar)। पहले तो उन्होंने खुद को पार्टी के संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त किया और अब पार्टी के प्रदेश स्तर के संगठन में भारी बदलाव की तैयारी आरंभ कर दी है। इसकी शुरुआत रविवार को संपन्न जनता दल यूनाइटेड की राज्य कार्यकारिणी की बैठक (JDU State Executive Committee Meeting) में हुई। जब सबको चौंकाते हुए उमेश कुशवाहा (Umesh Kushwaha) को नया प्रदेश अध्यक्ष चुना गया।
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ऐसा माना जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने अपनी इस चाल से मुजफ्फरपुर में गायघट, सकरा, मीनापुर के बाद अब कुढ़नी पर भी अपनी दावेदारी को और मजबूत कर लिया है। क्योंकि इस बार कुढ़नी सीट भाजपा के खाते में थी। जहां से केदार गुप्ता को राजद प्रत्याशी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। जबकि यहां से जदयू के मनोज कुशवाहा अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। वे पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि उमेश कुशवाहा को आगे लाने से कुशवाहा समाज, जो किन्हीं कारणों से नीतीश की पार्टी से दूर हाेे गया था, वह अब इसके करीब आए और एक बेहतर परिणाम सामने हो।
उसी तरह से मीनापुर सीट पर कुशवाहा वोट निर्णायक होता है। वैसे कुशवाहा प्रत्याशी देने के बाद भी यहां से राजद ने दूसरी बार सफलता हासिल कर ली। हो सकता है कि उमेश कुशवाहा जब जिला स्तर पर अपनी टीम तैयार करेंगे तो इसका जरूर ख्याल रखेंगे। यदि एनडीए में रहते हूुए भी चुनाव लड़ने की बात होगी तो गायघाट, सकरा, मीनापुर के बाद कुशवाहा वोट की बात करते हुए कुढ़नी पर जदयू अपना दावा पेश कर सकता है। राष्ट्रीय व प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हुए बदलाव के बाद अब सबकी नजर जिल स्तरीय कमेटियों पर है। जिन्हें चुनाव के बाद कई कारणों से भंग कर दिया गया था। देखने वाली बात यह होगी कि क्या जिलों में भी लव कुश समीकरण का ध्यान रखा जाएगा। बशिष्ठ नारायण सिंह की जगह उमेश कुशवाहा को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपने के पीछे लव-कुश समीकरण माना जा रहा है।
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