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भाई बहनों का पवित्र त्योहार भैया दूज सोमवार को, परंपरा का निर्वहन भी करेंगी बहनें

सोमवार को द्वितीया तिथि प्रातः काल 09 बजकर 11 मिनट पर आ रही है। अतः भ्रातृ द्वितीया (भैया दूज) का पर्व का मान 16 नवम्बर सोमवार को होगा और इसी दिन प्रातःकाल 0911 बजे के बाद बहनें श्रापन की परंपरा का निर्वहन भी करेंगी।

By DharmendraEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2020 05:05 PM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2020 05:05 PM (IST)
भाई बहनों का पवित्र त्योहार भैया दूज सोमवार को, परंपरा का निर्वहन भी करेंगी बहनें
भैया दूज को बहन का श्राप भाईयों के लिए होता आशीर्वाद

पूर्वी चंपारण, जेएनएन। भाई बहनों का पवित्र त्योहार भैया दूज सोमवार को मनाया जाएगा। सोमवार को द्वितीया तिथि प्रातः काल 09 बजकर 11 मिनट पर आ रही है। अतः भ्रातृ द्वितीया (भैया दूज) का पर्व का मान 16 नवम्बर सोमवार को होगा और इसी दिन प्रातःकाल 09:11 बजे के बाद बहनें श्रापन की परंपरा का निर्वहन भी करेंगी। उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी। उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि को यम द्वितीया व भ्रातृ द्वितीया (भैया दूज) के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर भोजन कराया था तथा इस अवसर पर यमलोक में उत्सव भी हुआ था।

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इस दिन बहन के घर जाकर उनके हाथ का बना हुआ भोजन करने व उन्हें यथाशक्ति दान देने से कर्मपाश में बंधे हुए नारकीय पापियों को भी यमराज छोड़ देते हैं। उन्होंने बताया कि इस तिथि में बहन के द्वारा अपने भाइयों को श्रापने की परंपरा है,और पुनः बहनें अपने जिह्वा पर रेंगनी के काँटों को चुभाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बहन का श्राप भाईयों के लिए आशीर्वाद होता है। बहनें इस दिन व्रत रखकर भाई के माथे पर तिलक लगाकर भाई के दीर्घ जीवन की कामना करतीं हैं।प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि आज के दिन अपने घर भोजन नहीं कर बहन के घर जाकर उनके हाथ का बना हुआ भोजन करना चाहिए। इससे बल, पुष्टि, धन, यश, आयु, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुखों की प्राप्ति होती है।

ब्रह्माजी की काया से उत्पन्न हुए चित्रगुप्त

चित्रगुप्त पूजा (कलम दवात पूजा) का मान 16 नवम्बर सोमवार को होगा। उक्त जानकारी आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केंद्र के संस्थापक ज्योतिर्विद आचार्य चंदन तिवारी ने दी। उन्होंने बताया कि वैदिक ग्रंथों व पुराणों में अनेक प्रकार के व्रत एवं अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है, जिसमें चित्रगुप्त पूजा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार ब्रह्मा ने एकाग्रचित्त होकर समाधि लगायी और अंत में विश्रान्तचित्त हुए। ब्रह्मा के शरीर से बड़े बड़े भुजाओं वाले,श्यामवर्ण,कमलवत नेत्र वाले,शंख के तुल्य गर्दन,चक्रवत मुख,हाथ में कलम और दवात लिए एक पुरुष की उत्पत्ति ब्रह्मा के शरीर से हुयी।

तब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से उत्पन्न पुरुष को बोले कि तुम मेरे काया से उत्पन्न हुए हो इसलिए तुम्हारी कायस्थ संज्ञा होगी और पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। धर्मराज की यमपुरी में धर्माधर्म के विचार व लेखा जोखा के लिए उन्हें अधिकृत किया। उन्होंने बताया कि चित्रगुप्त से गौड़, माथुर, भटनागर, सेनक, अहिष्ठाना (अस्थाना), श्रीवास्तव, अम्बष्ट व कार्या आदि लोग उत्पन्न हुए जो आज कायस्थ जाति के रूप में जाने जाते हैं। आचार्य तिवारी ने बताया कि भगवान चित्रगुप्त की पूजा से मनुष्य समस्त पापों एवं रोगों से मुक्त होकर दीर्घायुष्य को प्राप्त करता है।


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