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अब गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगेंगे सरकारी विद्यालयों के शिक्षक

दस वर्षीय जनगणना आपदा सहाय्य एवं चुनाव कार्य छोड़कर शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य नहीं लिया जाए । इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाए । बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम - 2009 अप्रैल 2010 से प्रभावी है ।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 04:32 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 04:32 PM (IST)
अब गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगेंगे सरकारी विद्यालयों के शिक्षक
प्रतिनियोजन करने वाले पदाधिकारियों पर की जाएगी कार्रवाई।

पश्चिम चंपारण, जासं । शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव डॉ रंजीत कुमार सिंंह  ने सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों से अन्यत्र कार्य नहीं लेने एवं सभी प्रतिनियुक्ति को रद्द करने के संबंध में एक कड़ा पत्र जिला शिक्षा पदाधिकारी को जारी किया। जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिक्षा विभाग का कोई भी शिक्षक बिना विभागीय अनुमति के प्रतिनियुक्त न हों। दस वर्षीय जनगणना, आपदा सहाय्य एवं चुनाव कार्य छोड़कर शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य

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 नहीं लिया जाए। इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाए। बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, अप्रैल 2010 से प्रभावी है। इस अधिनियम की धारा-27 में प्रावधान है कि कोई भी शिक्षक दस वर्षीय जनगणना, आपदा सहाय्य एवं विधान मंडल, संसद, स्थानीय निकाय के चुनाव को छोड़कर अन्य किसी भी गैर-शैक्षणिक कार्यों के लिए प्रतिनियुक्त नहीं किए जाएंगे। मतदाता सूची के निर्माण व पुनरीक्षण कार्य भी गैर शैक्षणिक कार्य दिवसों, अवकाश एवं छुट्टियों के दिन ही कराए जाने का निर्देश भारत सरकार का है। ताकि 

मतदाता सूची संबंधित किसी कार्य का प्रभाव भी शिक्षक के शैक्षणिक गतिविधियों पर नहीं पडऩा चाहिए।

विभाग ने जताया खेद  पत्र

 में कहा गया है कि विभाग को सूत्रों से सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं कि स्पष्ट निर्देश के बावजूद स्थानीय स्तर पर शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों के  स्तर पर या अन्य प्रशासनिक पदाधिकारियों के स्तर पर शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति स्थानीय स्तर पर की जाती है। प्रधान सचिव ने इस पर खेद जताते  हुए कहा है कि इस तरह की गतिविधियों को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं 

किया जाएगा।

प्रतिनियोजन का ऐसे चलता है खेल, पूरा सिस्टम शामिल शिक्षा

 विभाग में शिक्षकों का प्रतिनियोजन कोई मामूली खेल नहीं। इसमें शिक्षा विभाग का पूरा सिस्टम शामिल है। एक प्रतिनियोजन का जब समय पुरा होता है तो दूसरा पत्र जारी किया जाता है। जिससे शिक्षक स्कूल जाने के बजाए बाबू के काम में ही लगे रहते हैं। कभी नियोजन, कभी पैक्स चुनाव, पंचायत चुनाव, विधानसभा चुनाव, तो कभी लोकसभा चुनाव बचने का उपाय होता है। ये काम जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा बच्चों की शिक्षा है। जिस विद्यालय में महज दो शिक्षक हैं, वहां के शिक्षकों को भी प्रतिनियोजन में रखा जाता है।इससे आप क्या कहेंगे? सिर्फ एक ही शिक्षकों का प्रतिनियोजन क्यो ? अगर जरूरी है तो अलग-अलग शिक्षकों को इसमें क्यों नहीं लगाया जाता। सभी शिक्षक तो योग्य हैं। अगर थोड़े कमजोर हैं तो ट्रेंड कर दीजिए। लेकिन साल दर साल एक शिक्षक 

को एक ही काम में लगाना दाल में काला है। सूत्रों के अनुसार नीचे से लेकर  उपर तक प्रतिनियोजन का एक फौज है। जो डाटा इंट्री ऑपरेटर, क्लर्क व अधिकारी  को खुश करता है। सिस्टम भी इसी से चलता है। इसी लिए जुगाड़ू बच जाते हैं।

जानिए कब-कब आयी रद करने की चिठ़ठी

शिक्षा निदेशालय द्वारा शिक्षकों के प्रतिनियोजन रद्द करने के लिए ये पहली बार चि_ी नहीं आई है। चिट््ठी हर बार आती है लेकिन विभाग खामोश रह जाता है। बचाव में चार बहाने की चिट््ठी बनाकर निदेशालय को भी भेज दी जाती है और कोरम को पूरा कर दिया जाता है। 2013 में अपर मुख्य सचिव शिक्षा विभाग द्वारा ज्ञापांक 1780 जारी किया गया था। 2015 में पत्रांक 1171 जारी किया गया। फिर 2016 में 1068 ज्ञापांक जारी किया गया। इसी महीने यहां के जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा भी पत्र जारी किया गया। फिर अब नई चि_ी आई है। 


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