मधुबनी जिले में प्रशासन की मौजूदगी में तीन सालों से बंद बीआरसी का तोड़ा गया ताला
Madhubani news कार्यालय खोल कर बीईओ को दिया गया प्रभार डीएम के निर्देश पर हुई कार्रवाई जिला शिक्षा पदाधिकारी के आदेश पर प्रतिनियुक्त मनरेगा पीओ सतीश कुमार व थाना के एसआइ को इसके किया गया था अधिकृत।
मधुबनी, जासं। स्थानीय प्रखंड मुख्यालय स्थित बीआरसी में वर्षों से बंद प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय को प्रशासन की मौजूदगी में ताला तोड़कर खोला गया। बता दें कि जिला शिक्षा पदाधिकारी के आदेश पर प्रतिनियुक्त मनरेगा पीओ सतीश कुमार व थाना के एसआइ रामनरेश प्रसाद को इस कार्य के लिए अधिकृत किया गया था। प्रतिनियुक्त पदाधिकारियों ने पुलिस बल के साथ कार्यालय को ताला तोड़ खुलवाया।
गौरतलब है कि मधवापुर में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी अवधेश कुमार के योगदान करने के बाद भी बीआरसी भवन का रुम बंद रहने के कारण सरकारी कार्य निपटाने में समस्या आ रही थी। मधवापुर थाना कांड संख्या 135/2019 व 64/2019 में तत्कालीन बीईओ उमेश बैठा फरार चल रहे हैं। उन पर करोड़ो रुपये के फर्जीवाड़ा का आरोप है। उनके फरार होने के कारण वर्तमान बीईओ को प्रभार नहीं मिल रहा था और कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही थी। इसी आलोक में यह कार्रवाई की गई। जानकारी देते हुए पीओ ने बताया कि जिला शिक्षा पदाधिकारी के आदेशानुसार यह कार्रवाई की गई है।
उर्वरक की कालाबाजारी रोकना प्रशासन की प्राथमिकता
मधुबनी। जिला अमित कुमार की अध्यक्षता में जिला स्तरीय उर्वरक निगरानी समिति की बैठक समाहरणालय सभाकक्ष में हुई। बैठक में जिले में उर्वरक की उपलब्धता, वितरण एवं इससे जुड़ी समस्याओं के निदान पर विशेष चर्चा की गई। डीएम ने कहा कि उर्वरक की कालाबाजारी करने वालों के प्रति जिला प्रशासन की नीति जीरो टॉलरेंस की है। पूर्व में भी कड़े कदम उठाए गए हैं और भविष्य में भी और कड़े कदम उठाए जाने के निर्देश दिए गए हैं। जिला कृषि पदाधिकारी ने कहा कि पूर्व के अनुपात में जिले में गेहूं की खेती के प्रति कृषकों का रुझान बढ़ा है। इसमें विगत वर्ष से लगभग बीस हजार हेक्टेयर कृषि भूमि का इजाफा हुआ है। ऐसे में यूरिया और डीएपी की मांग बढऩा स्वाभाविक है। सदस्यों ने इस बात पर ङ्क्षचता प्रकट किया कि पूर्व में जिले में जैविक खाद उत्पादन की दिशा में कुछ कदम उठाए गए थे, लेकिन जैविक खाद उत्पादन में गुणवत्ता की कमी एक बड़ी चुनौती है। जिस कारण रासायनिक खाद पर लोगों की निर्भरता बढ़ी है। इतना ही नहीं पूर्व में गेहूं के खेतों में ढ़ैंचा के बीज की बुआई कर कुछ दिनों बाद उसे खेत में जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। जिससे डीएपी की मांग कम रहती थी। ढैचा के बीज की आपूर्ति कम होने से डीएपी पर निर्भरता बढ़ गई है।