Pitru Paksha 2020: देवपूजन की तरह ही पुण्य फलदायक हैं पितृ तर्पण व श्राद्ध, जानिए
Pitru Paksha 2020 पितृपक्ष में पितरों के तर्पण व श्राद्ध का खास महत्व है। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं तथा उनका आशीर्वाद परिवार को मिलता रहता है।
पूर्वी चंपारण, जेएनएन। Pitru Paksha 2020: माेतिहारी के महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने कहा है कि सनातन धर्म में पितृ तर्पण, पिण्डदान एवं श्राद्ध को देव पूजन की तरह ही आवश्यक एवं पुण्य फलदायक माना गया है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। इस कार्य को श्रद्धा के साथ करना चाहिए। पितृपक्ष में अपने पितरों की पुण्यतिथि (मृत्यु तिथि) के दिन उनकी आत्मा की संतुष्टि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध कर्म उनके प्रति श्रद्धांजलि है।
प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि शास्त्रीय मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में प्रथम दिन से तर्पण प्रारंभ कर जिस तिथि को जिनके पूर्वज मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, उसी तिथि को उनका पिंडदान व श्राद्ध आदि करना चाहिए। जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए अमावस्या तिथि को श्राद्ध करने का विधान है। आश्विन मास के कृष्णपक्ष में पितृलोक हमारी पृथ्वी के सबसे ज्यादा समीप होता है। अतएव इस पक्ष को पितृपक्ष माना जाता है। इन दिनों पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए पितरों के निमित्त तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण करने एवं मृत्यु तिथि पर पिंडदान एवं श्राद्ध आदि करने से वे तृप्त होकर अपने वंशज को सुख-समृद्धि और सन्तति आदि का शुभाशीर्वाद देते हैं। भाद्रपद शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक सोलह दिनों का महालया होता है। इसमें मध्याह्न व्यापिनी तिथि ग्रहण किया जाता है। तदनुसार इस वर्ष 2 सितम्बर बुधवार से महालया प्रारंभ होगा। इस दिन अगस्त ऋषि के निमित्त तर्पण किया जाएगा। पितृपक्ष में श्राद्ध के लिए मध्याह्न व्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है। इस बार 2 सितम्बर बुधवार को दिन में 09:33 बजे पूर्णिमा समाप्त होकर प्रतिपदा लगी है जो अगले दिन गुरुवार को दिन में 10:51 बजे तक रहेगी। अत: ऐसे में प्रतिपदा (एकम) तिथि का पहला श्राद्ध-तर्पण आदि 2 सितम्बर बुधवार को ही किया जाएगा। सर्व पितृ अमावस्या व पितृ विसर्जन 17 सितम्बर गुरुवार को होगा।
पितरों को खुश रखने व आशीर्वाद के लिए श्राद्ध व तर्पण जरूरी
आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक आचार्य पं. चन्दन तिवारी ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर पितृ नाराज हो जाएं तो घर के सदस्यों की तरक्की में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। ज्योतिष अनुसार भी कुंडली में पितृ दोष काफी महत्व रखता है। इसलिए पितरों को मनाने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध किये जाते हैं। श्राद्ध वाले दिन सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लिपकर व गंगाजल से पवित्र कर लें। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाने की तैयारी करें। इसके बाद ब्राह्मण को घर पर बुलाकर या मंदिर में पितरों की पूजा और तर्पण का कार्य कराएं।
पितरों के समक्ष अग्नि में गाय का दूध, दही, घी और खीर अर्पित करें। उसके बाद पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें जिसमें एक हिस्सा गाय, एक कुत्ते, एक कौए और एक अतिथि के लिए रखें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन डालने के बाद ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराएं। उन्हें वस्त्र और दक्षिणा प्रदान करें। ब्राह्मणों में आपका दामाद या भतीजा भी शामिल हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी कारणों से बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता तो उसे पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से देना चाहिए।