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बदहाली का दंश झेल रहा दरभंगा स्थित नवादा खादी भंडार, देखने-सुनने वाला कोई नहीं Darbhanga News

प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 36 राष्ट्रीय पुरस्कार से किया था सम्मानित चरखा से सूत कताई में पूरे देश में थी पहचान।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 10:22 AM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 01:12 PM (IST)
बदहाली का दंश झेल रहा दरभंगा स्थित नवादा खादी भंडार, देखने-सुनने वाला कोई नहीं Darbhanga News
बदहाली का दंश झेल रहा दरभंगा स्थित नवादा खादी भंडार, देखने-सुनने वाला कोई नहीं Darbhanga News

दरभंगा, जेएनएन। लगभग 30 वर्षों से बदहाली के दंश को झेल रहे नवादा गांव स्थित जर्जर खादी भंडार को देखनेवाला कोई नहीं है। इसके अतिक्रमण का सिलसिला जारी है। करीब सौ वर्ष पहले इस खादी भंडार भवन का निर्माण कार्य नवादा के ग्रामीणों के सहयोग से कराया गया था। चरखा से सूत कताई के मामले में पूरे देश इस खादी भंडार की पहचान थी। नवादा की पुत्र वधू फूलमाया देवी को पूरे देश में चरखा से सूत कताई करने में अच्छे प्रदर्शन को लेकर आजादी के समय देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 36 राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था। उस समय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभभाई पटेल एवं विनोबा भावे ने खादी भंडार पर आकर फूलमाया देवी के नेतृत्व में सैकड़ों महिलाओं द्वारा चरखा से किए जा रहे सूत कताई को देखा था। धीरे-धीरे सरकारी सहायता बंद हो गई। चरखा से सूत कताई बंद हो जाने से सैकड़ों महिलाएं बेरोजगार हो गईं। खादी भंडार का भवन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। ग्रामीणों ने इस जर्जर खादी भंडार का पुननिर्माण कराने के लिए कई बार प्रयास किया लेकिन आजतक न तो किसी जन प्रतिनिधि और न ही किसी पदाधिकारी ने इस ओर ध्यान दिया।

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पांच सौ महिलाएं प्रतिदिन करती थीं सूत की कताई 

ग्रामीण रामानंद झा कहते हैं कि आजादी के समय से ही इस खादी भंडार की पूरे देश में एक अलग पहचान रही। प्रतिदिन करीब पांच सौ से अधिक महिलाएं फूलमाया देवी के नेतृत्व में चरखा से सूत कताई का कार्य करती थी। यहां से सूत देश के विभिन्न भागों में भेजा जाता था। रामकुमार झा बब्लू का कहना है कि इस खादी भंडार का पुनर्निर्माण कार्य कराने तथा सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए गांव के स्व. हरिशचंद्र झा ने भी काफी प्रयास किया। लेकिन सरकारी स्तर पर घोर उपेक्षा की वजह से यह खादी भंडार पूर्णत: जर्जर हो गया है। गिरीशचंद्र झा का कहना है कि वर्तमान में यह खादी भंडार सूअर एवं कुत्तों की शरण स्थली बन गई है। महेश झा एवं माया झा कहते हैं कि हर बार चुनाव के समय इस खादी भंडार को चकाचक कराकर सूत कताई का कार्य कराने का आश्वासन विभिन्न दलों के नेताओं की ओर से दिया जाता रहा है, लेकिन जीतकर जाने के बाद खादी भंडार को भुला दिया जाता है।

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