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एसकेएमसीएच को मिलीं दवाओं की राष्ट्ररीय प्रयोगशाला में होगी जांच Muzaffarpur News

एईएस से मरनेवाले बच्चों को नकली दवा देने का आरोप। अधिवक्ता पंकज कुमार ने प्रमंडलीय आयुक्त को सौंपा था आवेदन। आवेदन की सुनवाई के बाद आयुक्त ने जारी किया आदेश।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 09 Aug 2019 09:24 AM (IST)Updated: Fri, 09 Aug 2019 09:24 AM (IST)
एसकेएमसीएच को मिलीं दवाओं की राष्ट्ररीय प्रयोगशाला में होगी जांच Muzaffarpur News
एसकेएमसीएच को मिलीं दवाओं की राष्ट्ररीय प्रयोगशाला में होगी जांच Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। श्रीकृष्ण चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) को बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआइसीएल) से आपूर्ति दवा के प्रत्येक बैच के नमूने की जांच राष्ट्रीय प्रयोगशाला से कराई जाएगी। यह आदेश प्रमंडलीय आयुक्त ने जारी किया है। नकली दवाओं के कारण एईएस से बच्चों की मौत का आरोप लगाते हुए अधिवक्ता पंकज कुमार ने आयुक्त को आवेदन दिया था। इसकी सुनवाई के बाद आयुक्त के निर्देश पर उनके सचिव ने यह आदेश जारी किया है।

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मुख्यमंत्री व अन्य के खिलाफ सीजेएम कोर्ट में दाखिल किया था परिवाद

एईएस से मर रहे बच्चों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य के खिलाफ 18 जून को अधिवक्ता ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) एसके तिवारी के कोर्ट में परिवाद दाखिल किया था। इसकी सुनवाई के लिए सीजेएम ने दंडाधिकारी ऋचा भार्गव के विशेष कोर्ट (एमपी/एमएलए मामले में) स्थानांतरित कर दिया था। परिवाद में मुख्यमंत्री के अलावा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवद्ध्र्रन, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे, स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार, बीएमएसआइसीएल के प्रबंध निदेशक संजय कुमार सिंह, जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष, सिविल सर्जन डॉ. शैलेश प्रसाद सिंह व एसकेएमसीएच अधीक्षक डॉ. सुनील कुमार शाही को आरोपित बनाया था। बाद में औषधि नियंत्रक रवींद्र कुमार सिन्हा को भी आरोपित करने की अर्जी कोर्ट में दाखिल की थी।

यह लगाया गया आरोप

परिवाद में आरोप लगाया गया था कि सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की जानेवाली दवाएं केंद्रीय व राज्य प्रयोगशालाओं से जांच रिपोर्ट मिले बिना ही मरीजों को दी जाती हैं। सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवाओं की आपूर्ति की जाती है। इसकी पोटेंसी सामान्य रूप से छह माह होती है। जबकि, इसका उपयोग एक से दो साल तक किया जाता है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी जानकारी में बीएमएसआइसीएल के लोक सूचना पदाधिकारी ने बताया है कि प्रबंध निदेशक की ओर से दवा की गुणवत्ता की जांच निजी जांच प्रयोगशाला में कराई जाती है। आरोप लगाया गया है कि यह आम लोगों के जीवन के लिए घातक है।

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