Muzaffarpur: जब अपनों के चार कंधे नहीं मिलते, तब ये मसीहा की तरह आते और बनते सहारा
सिकंदरपुर मुक्तिधाम प्रबंधन समिति एवं नगर निगम की टीम की सेवा को शहरवासी कर रहे सलाम। कोरोना से मौत होने पर शव को लाने से लेकर दाह संस्कार तक की निशुल्क सुविधा। यहां प्रतिदिन अंतिम संस्कार को आते हैं 15 से 20 शव कफन से लेकर पंडित तक की सुविधा।
मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। अंत समय में जब अपनों के चार कंधे नहीं मिलते तब ये सहारा बनते हैं। खून के रिश्ते जब मुखाग्नि देने नहीं पहुंचते तब बेजान पड़े शरीर से नाता जोड़ लेते हैं। कभी जवान बेटे का शव देख वृद्ध पिता के लडख़ड़ाते पांव को संभालते तो कभी श्मशान में पति के शव के सामने अकेली खड़ी महिला को हिम्मत देते हैं। मुजफ्फरपुर की सिकंदरपुर मुक्तिधाम प्रबंधन समिति एवं नगर निगम के तैनात कर्मचारी लोगों के अनंत दुख को कम करने की कोशिश में दिन-रात काम कर रहे हंै। कोरोना महामारी में अपने सहारा नहीं बन पा रहे। लोगों पर खुद के संक्रमित होने का भय हावी है। ऐसे में यहां तैनात समिति के पदाधिकारी व निगम के कर्मचारी पीडि़त परिवारों के साथ खड़े हैं।
कोरोना गाइडलाइन के बीच निशुल्क अंतिम संस्कार कराते
प्रबंधन समिति के संयोजक डॉ.रमेश केजरीवाल, वार्ड 20 के पार्षद संजय कुमार केजरीवाल, निगम के प्रभारी रमेश ओझा, सहायक अशोक कुमार हर दिन ऐसी होने वाली घटनाओं से रूबरू होते हैं। उनकी देखरेख में एक सूचना पर नगर निगम के कर्मी मुक्ति वाहन लेकर घटनास्थल पर पहुंच जाते हैं। श्मशान घाट पर पूरी सुरक्षा और कोरोना गाइडलाइन के बीच शवों का निशुल्क अंतिम संस्कार कराते हैं। वहां कफन से लेकर लकड़ी आदि तक पर होने वाले खर्च को समिति द्वारा वहन किया जाता है। रमेश बताते हैं कि कोरोना से मृत हर रोज औसतन 10 से 12 शव आते हैं, जिनका अंतिम संस्कार मुक्तिधाम प्रबंधन समिति के माध्यम से किया जाता है। बीते एक सप्ताह में 92 लोगों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। कोरोना के अलावा सामान्य मौत के आधा दर्जन शव आते हैैं। नगर निगम अंतिम संस्कार के लिए सात हजार रुपये प्रति शव मुक्तिधाम प्रबंधन समिति को दे रहा है।
संगीतज्ञ शंकर दा को अंतिम यात्रा में मिला निगमकर्मियों का कंधा
बिहार संगीत जगत के गौरव अमित शंकर गुप्ता उर्फ शंकर दा का निधन सोमवार को हो गया था। उनके निधन पर इंटरनेट मीडिया पर शोक जताने वालों का तांता लग गया। सैकड़ों शिष्यों को संगीत की शिक्षा देने वाले शंकर दा को न कोई कंधा देने वाला मिला और मुखाग्नि देने वाला। उनकी भाभी सुमिता गुप्ता उनके मृत शरीर को लेकर मुक्तिधाम पहुंचीं। किसी को नहीं पता था कि वह शंकर दा का शव है। वार्ड पार्षद संजय केजरीवाल के नेतृत्व में निगमकर्मियों ने उनको कंधा दिया और मुखाग्नि भी। भाभी नम आखों से सबकुछ देखती रहीं। यह सिर्फ शंकर दा के अंतिम संस्कार की कहानी नहीं, बल्कि मुक्तिधाम रोज इन हालातों का गवाह बन रहा है।
महापौर और नगर आयुक्त ने किया सम्मानित
कोरोना संकट के बीच सेवा की मिसाल पेश कर रहे मुक्तिधाम में तैनात सभी 16 कर्मचारियों को महापौर सुरेश कुमार और नगर आयुक्त विवेक रंजन मैत्रेय ने सम्मानित किया। इन कर्मचारियों से ही यहां आने वाले मृतकों का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ हो रहा है।
हर शव का पूरे सम्मान से होता अंतिम संस्कार
मुक्तिधाम प्रबंधन समिति के संयोजक रमेश केजरीवाल ने कहा कि मुक्तिधाम में आने वाले हर शव का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है। स्वजन साथ हों तो भी ठीक नहीं हो तो भी ठीक। यहां तैनात कर्मचारी उनको कंधा देने से लेकर वह सभी काम कर रहे जो मृतक के स्वजनों को करना चाहिए था। यहां एक दिन में अधिकतम 42 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। दाह संस्कार के लिए लाइन नहीं लगानी पड़ती। हम हर तरह की चुनौती के लिए तैयार हैं।