Muzaffarpur: इस अफसर के पास है 'पारस पत्थर', तीन साल से नहीं मिला वेतन, फिर भी मस्त
लंबे समय से वेतन बंद होना चर्चा के साथ जिले में जांच का विषय बन गया। ऐसा इसलिए भी कि वेतन बंद होने का असर नहीं है। इसके उलट दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की ही दिख रही। इसका राज बहुत दिनों से लोग जानने की कोशिश कर रहे।
मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। जिले के एक भारी भरकम विभाग के पदाधिकारी को करीब तीन वर्षों से वेतन नहीं मिल रहा है। इतने लंबे समय से वेतन बंद होना चर्चा के साथ जिले में जांच का विषय बन गया। ऐसा इसलिए भी कि वेतन बंद होने का असर नहीं है। इसके उलट दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की ही दिख रही। इसका राज बहुत दिनों से जानने में लोग लगे रहे। आरटीआइ तक का सहारा लिया। फिर भी यह राज ही रहा। मगर योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की दबी फाइल से अब राज खुलने लगा है। राशि गबन तक के मामलों में दोषियों पर प्राथमिकी तक दर्ज नहीं कराई गई। योजनाओं की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। समीक्षा में लापरवाही सामने आई तो एक-दो स्पष्टीकरण तक ही कार्रवाई सीमित रही। पदाधिकारी ने भी इसे अधिक महत्व नहीं दिया। वेतन ही तो बंद है। बाकी सब जय-जय है।
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आखिरी उम्मीद, अंतिम 12 में मिल जाए जगह
विधानसभा चुनाव में जिले के कई कद्दावर नेता को हार का मुंह देखना पड़ा। जबकि वे जीत के साथ मंत्री पद की आशा लेकर मैदान में उतरे थे। जनता ने साथ नहीं दिया, मगर आशा कायम है। राज्य में दो बार मंत्री पद का शपथ ग्रहण हो चुका है। कोटा से यह संख्या अब भी पांच कम है। वहीं बिहार विधान परिषद के लिए 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाना है। अब मशक्कत इस अंतिम 12 में जगह बनाने की है। जिले के एक फूल और एक तीर वाले पराजित उम्मीदवार के नाम की चर्चा होने लगी है। तीर छाप से अब तक जिले के एक भी मंत्री नहीं बनने से उनकी उम्मीदें हिलोरें मारने लगी हैं। वहीं संभावित सूची में नाम आने से फूल वाले पूर्व माननीय ने भी अपनी गतिविधि बढ़ा दी है। बस कुछ दिन का इंतजार है।
सरकार के दो विभाग आमने-सामने
पिछले दिनों कड़ी सुरक्षा के बीच नगर विकास और आवास विभाग की महत्वाकांक्षी योजना एसटीपी के निर्माण पर काम शुरू कराया गया। स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद काम शुरू होने पर विभाग के पदाधिकारियों ने राहत की सांस ली। मगर इस बीच जमीन से जुड़े विभाग के एक माननीय के बयान ने पेच फंसा दिया है। जिस मुद्दे को लेकर स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे। उनके सुर में माननीय के सुर मिल गए। योजना का विरोध करने वालों को मौका मिल गया है। इंटरनेट मीडिया पर बधाई दी जाने लगी। मगर माननीय के बयान से जिले के पदाधिकारी असहज हो गए हैं। खुलकर उनका विरोध भी नहीं कर सकते। साथ ही जिस योजना की शुरुआत करा दी उसे बंद भी नहीं कर सकते। दो विभागों की लड़ाई में कोई अपनी गर्दन भी फंसाना नहीं चाह रहे। अब सबकी नजर बड़े दरबार की ओर है।
पालन ही नहीं तो आदेश कैसा
शहर को वर्षों से एक समस्या से निजात नहीं मिल सकी। वह है जाम। जब भी नए पदाधिकारी आते पहला सवाल और जवाब जाम ही रहता। पहला आदेश भी जाम खत्म करने और सड़क से अतिक्रमण हटाने का ही जारी होता। मगर परिणाम हर बार ढाक के तीन पात। पिछले दिनों कंपनीबाग की वीआइपी क्षेत्र की सड़क को नो वेंडिंग जोन घोषित कर दिया गया। दो-चार दिन तक इसका पालन भी हुआ। इसके बाद फिर वही कहानी। बड़े साहब का आदेश बेअसर। नो वेंडिंग जोन में दुकानें पहले से अधिक ही सज गईं। इसके पीछे का कारण जो भी हो, यह तय है कि प्रशासन हर बार मुंह की ही खा रहा। जाम की समस्या को हर मंच पर उठाने वाले भी अब हार मानने लगे हैं। प्रशासन पर खीज उतारने लगे हैं। कह रहे, पालन ही नहीं होता तो आदेश कैसा।
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