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Muzaffarpur: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद की चिट्ठियां बन गईं रिश्तों की दस्तावेज

गांधीजी के बुलाने पर मुजफ्फरपुर पहुंचे थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद। गया प्रसाद सिंह और उनके बड़े भाई यदुनाथ प्रसाद सिंह से था लगाव। 27 दिसंबर 1932 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्वतंत्रता सेनानी गया प्रसाद सिंह के बड़े भाई यदुनाथ प्रसाद सिंह को लिखी यह चिट्ठी रिश्तों की दस्तावेज है।

By Ajit kumarEdited By: Published: Sun, 28 Feb 2021 08:26 AM (IST)Updated: Sun, 28 Feb 2021 08:26 AM (IST)
Muzaffarpur: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद की चिट्ठियां बन गईं रिश्तों की दस्तावेज
गांधीजी के बुलाने पर मुजफ्फरपुर पहुंचे थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [अजय पांडेय]। 'मैं बाबू गया प्रसाद को चाहता था कि वह सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में जाएं और जब इसमें सफल नहीं हुआ तब मैंने बाबू गंगा विष्णु से आगे के लिए रास्ता साफ रखने का ध्यान रखकर काम करने के लिए भेजा। पर, समय का कुचक्र ऐसा हुआ कि वह भी नहीं हो सका। इसमें मैं क्या कर सकता हूं? मेरा भाव आप लोगों के प्रति प्रेम और सद्भाव का है...। 27 दिसंबर, 1932 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्वतंत्रता सेनानी गया प्रसाद सिंह के बड़े भाई यदुनाथ प्रसाद सिंह को लिखी यह चिट्ठी दोनों परिवारों के रिश्तों की दस्तावेज है। परिवार के हर सदस्य के साथ आत्मीय लगाव की तस्वीर समय के फ्रेम में हमेशा के लिए कैद हो गई। वर्ष 1917 के बाद शायद ही ऐसा कोई मौका रहा जब राजेंद्र बाबू ने पत्र व्यवहार न किया हो। यह क्रम उनके राष्ट्रपति बनने के बाद तक जारी रहा। इनमें कुछ सहेज लिए गए तो कुछ बिखर गए। 

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1917 से शुरू हुआ सिलसिला

वर्ष 1917 में गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह के साथ स्थापित जुड़ाव इतिहास का हिस्सा बन गया। गया बाबू के पोते डॉ. (प्रो.) विधु शेखर सिंह बताते हैं कि छोटे दादाजी (गया बाबू) को लिखी गईं राजेंद्र बाबू की चिट्ठियां हमारी धरोहर हैं। 1934 के भूकंप के बाद बड़े दादाजी (यदुनाथ बाबू) को उन्होंने चिट्ठी लिखी थी। तब वे हमारा घर गिर जाने से काफी दुखी थे। पत्र में लिखा है 'श्रीभाई यदुनाथ सिंह जी, जो विपत्ति आप लोगों पर पड़ी है, वह सुनकर हृदय दहल जाता है। ऐसी अवस्था में ईश्वर के सिवा दूसरा कोई सहारा नहीं...।Ó उस दौरान बिहार सेंट्रल रीलिफ कमेटी के अध्यक्ष होने की हैसियत से भी बराबर पत्र लिखते रहे। कहते हैं कि उन्हेंं बड़ी दादी चंपा देवी के हाथ के बने मूंग दाल के पकौड़े (कचरी) और चावल का भूंजा खूब पसंद था। जब भी आते, हर शाम नाश्ते में यही होता था।

एलएस कॉलेज में किया अध्यापन

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व से लंगट सिंह कॉलेज भी लाभान्वित हुआ था। एक शिक्षक के रूप में इससे जुड़े रहे। वर्ष 1908 में कोलकाता से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद एलएस कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए थे। इसी कॉलेज में आचार्य जेबी कृपलानी से उनकी मुलाकात हुई थी। वर्ष 1925 में जब गांधीजी ने अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना की तो राजेंद्र बाबू बिहार प्रांत के प्रभारी बने। उस दौर में लक्ष्मीकांत प्रसाद, ध्वजा प्रसाद साहू के साथ मिलकर चरखा आंदोलन को गति दी थी।  


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