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मुजफ्फरपुर बना दो पहलवानों की ताकत आजमाइश का अखाड़ा, जनता का क्या होगा?

एक तरफ जनता का पहलवान है जिसे जनता ने चार साल पहले चुना था तो दूसरी ओर सरकारी पहलवान है। चार साल से इस ताकत आजमाइश में जनता का पहलवान टिका है। वहीं आधा दर्जन सरकारी पहलवान बदल चुके हैं लेकिन आज तक हार-जीत का फैसला नहीं हो पाया है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 03 Jun 2021 09:12 AM (IST)Updated: Thu, 03 Jun 2021 09:12 AM (IST)
मुजफ्फरपुर बना दो पहलवानों की ताकत आजमाइश का अखाड़ा, जनता का क्या होगा?
जनता का पहलवान उसके दांव-पेच में फंस जाता है। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। शहर डूबने के कगार पर है। इसे बचाने की जिम्मेदारी सफाई महकमा पर है, लेकिन वह अखाड़ा बना है। दो पहलवानों के बीच ताकत की आजमाइश चल रही है। इसमें एक तरफ जनता का पहलवान है जिसे जनता ने चार साल पहले चुना था तो दूसरी ओर सरकारी पहलवान है। चार साल से इस ताकत आजमाइश में जनता का पहलवान टिका है। वहीं, आधा दर्जन सरकारी पहलवान बदल चुके हैं, लेकिन आज तक हार-जीत का फैसला नहीं हो पाया है। फैसला हो भी तो कैसे परिणाम आने से पहले सरकारी पहलवान बदल जाता है। एक बार फिर दोनों पहलवान आमने-सामने हैैं। इस बार सरकारी पहलवान ज्यादा तेज है। जब भी बात हाथ से निकलने लगती तो पैतरा बदलकर जनता के पहलवान के साथ हाथ मिला लेता और मौका देख नया दांव चल देता है। जनता का पहलवान उसके दांव-पेच में फंस जाता है। 

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मुंगेरी लाल के हसीन सपने

शहरवासी चार सालों से स्मार्ट सिटी में रहने के लिए मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहे हैैं। स्मार्ट सड़कें, स्मार्ट सुविधाएं, आधुनिक खेल मैदान, सरोवर में तैरता रेस्तरां रोज रात में वे इन सुविधाओं को भोगते नजर आते हैं, लेकिन जब आंख खुलती है तो सबकुछ हवा हो जाता है। फिर वही बारिश के पानी में डूबा शहर, चौक-चौराहों पर कचरे के ढेर, गली-मोहल्लों में दौड़ लगाते पशु और मच्छरों का आतंक उन्हें सताता है। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए जिन लोगों को जिम्मेदारी मिली है उनका काम इतना स्मार्ट है कि जिस काम में हाथ डालते वह अटक जाता है। टीम के मुखिया के बदलने के बाद स्मार्ट सिटी तेजी से दौडऩे लगा तो लोगों को लगा कि इस बार उनके सपने पूरे होने वाले हैैं, लेकिन नए मुखिया के फैसले ने उनकी रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया। इससे शहरवासियों के सपने फिर टूट गए।

छूट मिलते ही खत्म हो गया भय

कोरोना माई के कहर से शहरवासियों को बचाने के लिए सरकार ने उनको घरों में कैद कर दिया था। उन तक कोरोना माई पहुंच नहीं सकें इसके लिए वर्दी वालों का पहरा लगा रखा था। लोग कोरोना से ज्यादा वर्दी वालों की पिटाई के भय से घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे। जैसे ही उनको इस हिदायत के साथ छूट मिली कि वे शारीरिक दूरी और मास्क है जरूरी मंत्र का पालन करेंगे। उनकी सुरक्षा के लिए बने नियमों का पालन करेंगे। सरकार से छूट मिलते ही शहरवासी कोरोना माई को भूल गए। उससे बचने के सरकारी मंत्र को ताक पर रख दिया। जिसको काम था वह भी और जिन्हें कोई काम नहीं था वे भी सैर-सपाटे पर निकल पड़े। पूरी तरह से शहरवासी सड़क पर आ गए। वर्दी वाले उनको नियंत्रित करने का प्रयास करते रहे, लेकिन उनकी एक नहीं चली।

बारिश का मौसम, शहर का विकास

शहर में सड़क और नाला का निर्माण बारिश के मौसम में होता है। इनका निर्माण करने वाली एजेंसी साल में नौ माह मौन रहती है, लेकिन जब बारिश की शुरुआत होती तो काम शुरू हो जाता है। सड़क और नाला खोद दिए जाते हैं। इस सत्य की खोज की जा रही है। आखिर बरसात में जब सब काम बंद हो जाते हैैं तो निर्माण कार्य क्यों शुरू होता है? सरकार के अभियंता और ठीकेदार को इस मौसम में ही काम कराना क्यों भाता है? पानी का खर्च बचता है या फिर पानी में कुछ छिपाया जाता है। इसका जवाब तो इंजीनियर साहब या ठीकेदार ही दे सकते हैैं, लेकिन जनता को दोहरी मार जरूर झेलनी पड़ती है। एक तरफ सड़क और नाले के लिए बनाए गए गड्ढे में गिरने की ङ्क्षचता और दूसरी तरफ बचना है तो घर में ही कैद रहने की मजबूरी अलग से।  


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