लीची पर सूक्ष्म पोषक तत्व के छिड़काव को भी मान लिया जाता कीटनाशक Muzaffarpur News
प्रगतिशील और बड़े किसानों का दावा इससे केवल फल का विकास होता है। सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक और बोरॉन तथा सीमित कीटनाशक का प्रयोग नुकसानदायक नहीं ।
मुजफ्फरपुर,[ अरुण झा]। लीची पर कीटनाशक के छिड़काव और उससे एईएस को जोड़कर देखे जाने पर दुनिया भर में मशहूर शाही लीची के क्षेत्र में नई बहस चल पड़ी है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र का कहना है कि हम किसानों को खतरनाक कीटनाशी के अंधाधुंध प्रयोग से मना करते हैं। हमारी जानकारी है कि अधिसंख्य किसान हमारी सलाह मानते हैं। वैसे मानक का उल्लंघन करते हुए कीटनाशक का प्रयोग किसी भी फल-सब्जी पर किया जाए तो वह नुकसानदेह तो होता ही है। हालांकि लीची उत्पादन से जुड़े प्रगतिशील और बड़े किसान कहते हैं कि मई के पहले सप्ताह में लीची किसान अक्सर बोरॉन, जिंक व प्लानोफिक्स का छिड़काव करते हैं। बोरॉन व जिंक सूक्ष्म पोषक तत्व हैं, जबकि प्लानोफिक्स हार्मोन है। इससे फल का विकास होता है और यह फटता और झड़ता नहीं। इसे भी कीटनाशक ही समझ लिया जाता है।
मानव जीवन के लिए असुरक्षित नहीं
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ कहते हैं कि केंद्र की ओर से समय-समय लीची किसानों के लिए सलाह जारी की जाती है। इसमें कीटनाशी के प्रयोग की मात्रा व तौर-तरीके शामिल होता है। यह कहीं से भी मानव जीवन के लिए असुरक्षित नहीं है। हमारी जांच कहती है कि इस छिड़काव से एईएस का कोई संबंध नहीं है। इस सलाह से अलग कीटनाशक के छिड़काव की उनके पास कोई सूचना नहीं है। मुजफ्फरपुर बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक युवा लीची किसान अविनाश कुमार कहते हैं कि लीची पर कीटनाशी का छिड़काव न के बराबर होता है।
समय-समय पर जांच कराता है विभाग
राज्य के पौधा संरक्षण विभाग के उपनिदेशक गोपाल शरण प्रसाद कहते हैं कि हमारी जानकारी के अनुसार अधिसंख्य किसान लीची पर नीम तेल से तैयार कीटनाशी का प्रयोग करते हैं। कुछ किसान अगर दूसरी कीटनाशी का प्रयोग करते भी हैं तो वह भी मानव जीवन के लिए घातक नहीं है। समय-समय पर बाजार में कीटनाशी के नमूने की जांच कराई जाती है। इस तरह की किसी शिकायत उनके सामने नहीं आई है।
लीची उत्पादन की पूरी प्रक्रिया पर बहस
लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा कहते हैं कि लीची मानसून पूर्व फल है। इससे कीड़ा होने की संभावना कम रहती। वर्षा होने पर ही इसमें कीड़ा हो सकता है। इसमें कीटनाशक छिड़काव का शेड्यूल एक या दो है। वह भी फल तोडऩे से लगभग 20-25 दिन पहले पूरा किया जाता है। ऐसे में इसका असर इतना नहीं हो सकता कि किसी बीमारी का कारण बने। कांटी के प्रगतिशील किसान मुरलीधर शर्मा कहते हैं उनके क्षेत्र के अधिकतर किसान नीम तेल से बनी कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। यह जैविक कीटनाशक है।
सबसे ज्यादा सेब व अंगूर पर कीटनाशी का छिड़काव
भोलानाथ झा व मीनापुर के प्रगतिशील किसान मनोज कुमार कहते हैं कि सबसे अधिक सेब व अंगूर पर कीटनाशी का छिड़काव किया जाता है। इन दोनों फलों पर लगभग 22 शेड्यूल में कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। जबकि, लीची पर एक या दो बार ही छिड़काव किया जाता है।
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