Women Empowerment : 17 सालों में खड़ी कर दी मधुबनी पेंटिंग के कलाकारों की फौज Madhubani News
रहिका प्रखंड की मनीषा ने हजारों महिलाओं को रोजगार से जोड़ा। देश-विदेश की महिलाओं को मधुबनी पेंटिंग में किया निपुण।
मधुबनी [सुनील कुमार मिश्र]। स्वावलंबन की राह पर दस हजार महिला कलाकार। मधुबनी पेंटिंग सीखकर ये हर साल कमातीं 70-80 हजार रुपये। इन्हें तीन महीने की निशुल्क ट्रेनिंग देकर योग्य और आत्मनिर्भर बनाने का काम मधुबनी की 50 वर्षीय मनीषा झा ने किया है। इसमें विदेश की भी महिलाएं हैं। उनका यह अभियान 17 सालों से जारी है।
रहिका प्रखंड के सतलखा की मनीषा ने दादी और मां से मधुबनी पेंङ्क्षटग सीखी। आर्किटेक्ट में इंजीनियरिंग के बाद उन्होंने कुछ अलग करने का निर्णय लिया। बिस्फी के भोजपंडौल गांव के अजीतेश झा से शादी के बाद वह दिल्ली पहुंची तो वहीं इस कला की साधना में जुट गईं। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस कला को उन्होंने ग्लोबल पहचान देने का काम किया। पहली बार वर्ष 1998 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में उनकी प्रदर्शनी लगी। वहां लोगों ने मधुबनी पेंङ्क्षटग को नजदीक से जाना। इसमें सफलता के बाद ललित कला एकेडमी ने प्रदर्शनी लगाने के लिए आमंत्रित किया।
इसके बाद वर्ष 2002 में दिल्ली में मधुबनी आर्ट सेंटर की स्थापना की और महिलाओं को प्रशिक्षण देने का काम शुरू हो गया। इधर, जिले में अपने घर एवं चकदह में गरीब परिवार की महिलाओं को समय-समय पर प्रशिक्षण देती हैं। वह हस्तशिल्प मंत्रालय भारत सरकार, इंटरनेशनल फोकाट मार्केट, दुपट्टा इंटरनेशनल, एसेल म्यूजियम के माध्यम से देश-विदेश में 151 प्रदर्शनियां लगाने के साथ प्रशिक्षण देने का काम कर चुकी हैं। वह मॉरिशस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, स्विटजरलैंड, रूस व फ्रांस सहित अन्य देशों में जा चुकी हैं।
ये हैं विदेशी शिष्य
अमेरिका की केटी, जिंजर, लीला पियर्ड, फ्रांस की आयना, इंदिरा, सीता, मॉरिशस की शिक्षा गुजाधर, सुधा गुजाधर, पुरखु राम गुजाधर, राधा अजूदा और बुल्गारिया की एंडा जोबा सहित अन्य को उन्होंने पेंटिंग बनाना सिखाया है। बुल्गारिया के फिल्म निर्माता एलेक्जेंडर मोर्को ने भी मनीषा से मधुबनी पेंङ्क्षटग सीखी है।
कलाकारों को करतीं आर्थिक मदद
मनीषा प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने के साथ आर्थिक मदद भी करती हैं। हर साल एक लड़की की शादी में एक लाख से अधिक की मदद देती हैं। मनीषा से प्रशिक्षण लेकर दिल्ली सरकार से पुरस्कार प्राप्त रूबी शर्मा कहती हैं कि जिंदगी बेहतर हुई है। सामान्य घरों से आने वाली चकदह की चंद्रकला देवी, जीतवारपुर की उर्मिला देवी और चिचरी कानूनगो की सविता देवी का कहना है कि पेंटिंग सीखने के बाद जिंदगी बदल गई। इससे 70 से 80 हजार रुपये सालाना कमा लेती हैं। मनीषा की मानें तो मधुबनी पेंङ्क्षटग से जिले की महिलाओं को पहचान के साथ रोजगार भी मिला है।