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हौसले के बल पर दी मौत को मात, इन्हें देखकर आती बॉलीवुड फिल्म 'पा’ की याद

बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी मनीष 18 की उम्र में ही बूढ़े हो चुके हैं। दुर्लभ बमारी प्रोजेरिया से हैसले के बल पर उनकी लड़ाई से बॉलीवुड फिल्‍म पा के अमिताभ बच्‍चन की याद आ जाती है।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 01:01 PM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 11:17 PM (IST)
हौसले के बल पर दी मौत को मात, इन्हें देखकर आती बॉलीवुड फिल्म 'पा’ की याद
हौसले के बल पर दी मौत को मात, इन्हें देखकर आती बॉलीवुड फिल्म 'पा’ की याद

मुजफ्फरपुर [प्रेमशंकर मिश्र]। बॉलीवुड फिल्‍म ‘पा’ याद है आपको? उसमें अमिताभ बच्‍चन के एक बीमारी से ग्रस्‍त किरदार को याद कीजिए। उसी दुर्लभ बीमारी ‘प्रोजेरिया’ के एक मरीज बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले मनीष भी हैं। मनीष कम उम्र में ही बूढ़े दिखते हैं। ठीक फिल्‍म ‘पा’ के अमिताभ की तरह। हालांकि, मनीष ने हौसला कायम रखा है। वे बीमारी की चिंता छोड़ दुकान चला रहे हैं। साथ ही पढ़ाई भी जारी रखे हुए हैं।|
उम्र से पांच-छह गुना अधिक दिखते बच्‍चे
प्रोजेरिया एक अनुवांशिक बीमारी है। इस बीमारी में जीन में आकस्मिक बदलाव आता है, जिससे मानसिक विकास तो सामान्य बच्चे जैसा होता है, लेकिन बच्‍चा उम्र से पांच-छह गुना बड़ा दिखाई देने लगता है। 13 वर्ष की उम्र में ऐसे बच्चे 70-80 वर्ष तक के नजर आते हैं। अधिकतर बच्चे 13 वर्ष की उम्र तक दम तोड़ देते हैं, हालांकि कुछ 20-21 साल तक जीते हैं।
18 की उम्र में ही बूढ़े दिखने लगे हैं मनीष
मुजफ्फरपुर शहर के मझौली धर्मदास के मनीष के संबंध में बचपन में ही डॉक्‍टरों ने कहा था कि वे अधिक से अधिक 14 से 18 वर्ष तक जीवित रह सकते हैं। 18 वर्ष की उम्र पार कर डॉक्‍टरों के अनुमान को मात दे चुके मनीष अब बूढ़े हो गए हैं। 18 वर्ष की उम्र में ही उनके चेहरे पर झुर्रियां आने लगी हैं। दांत भी गलने लगे हैं। मनीष को गर्मी बर्दाश्त नहीं होती। शरीर से पसीना नहीं निकलता। गर्मी में उन्‍हें पूरे दिन शरीर पर पानी डालना पड़ता है। 10 कदम भी चलना मुश्किल हो जाता है। मनीष कहते हैं कि गर्मी कट जाने के बाद लगता है कि दूसरा जन्म हुआ है।

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पढ़ाई के साथ-साथ चला रहे अपनी दुकान
मनीष जानते हैं कि उनकी आयु सामान्‍य मनुष्‍य से कम है। लेकिन, जब तक जिंदगी है, शान से जीना चाहते हैं। ई-रिक्‍शा चलाने वाले गरीब पिता शिव शर्मा पर बोझ बनना नहीं चाहते, इसलिए छोटी सी दुकान भी खोल ली है। साथ में पढ़ाई भी जारी रखे हुए हैं। अभी वे कॉमर्स से इंटर की परीक्षा दे रहे हैं।
पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनने की इच्‍छा
आमलोगों से अलग चेहरा होने के कारण मनीष के लिए जिंदगी आसान नहीं रही है। पहले स्कूल-कॉलेज या कोचिंग में कमेंट्स से असहज हो जाते थे। पर धीरे-धीरे ये चीजें सामान्य हो गईं हैं। जिंदा रहे तो पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना चाहते हैं।
हौसले के बल पर अभी तक हैं जिंदा
दो भाई व एक बहन में मनीष सबसे बड़े हैं। मां कांति देवी घर पर ही रहती हैं। मां कांति देवी बताती हैं कि जुलाई 2000 में मनीष का जन्म हुआ। कुछ महीने बाद ही उसके चेहरे की बनावट असामान्य लगी। डॉक्‍टर ने इसे लाइलाज बीमारी 'प्रोजेरिया' बताया। पिता ने बताया कि जब डॉक्‍टरों ने कहा कि बच्चा 14-18 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा, तब परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। हालांकि, मनीष ने हौसला नहीं हारा और अभी जिंदा हैं।

गरीब परिवार को मदद की दरकार
मनीष के परिवार को इलाज के लिए मदद की दरकार है। पिता शिव शर्मा बताते हैं कि सिविल सर्जन कार्यालय में वर्षों पहले आवेदन भी दिया, मगर मदद नहीं मिली। समस्‍या यह है कि राज्य चिकित्सा सहायता कोष से प्रोजेरिया रोग के लिए अनुदान नहीं दिया जा सकता।
तत्कालीन सिविल सर्जन ने वर्ष 2010 में प्रोजेरिया की पुष्टि करते हुए मनीष के इलाज के लिए निदेशक प्रमुख, स्वास्थ्य सेवाएं को पत्र लिख मुख्यमंत्री चिकित्सा कोष से अनुदान देने का आग्रह किया था। लेकिन इसपर अबतक कुछ नहीं हुआ।
लाइलाज है यह आनुवांशिक बीमारी
मनीष का इलाज करने वाले मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्‍ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्‍पताल (एसकेएमसीएच) के शिशु रोग विभागाध्‍यक्ष डॉ. ब्रजमोहन कहते हैं कि 'जेनेटिक विकार के कारण होने वाली यह बीमारी का इलाज नहीं है। हां, दवाओं से जीवन में वृद्धि की जा सकती है। इसके बावजूद मनीष आम जीवन जी रहा है तो निश्चित रूप से  उसकी इच्छाशक्ति का ही परिणाम है।


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