मुजफ्फरपुर में किसानों के लिए घाटे का सौदा बना मक्का, 800 रुपये प्रति क्विंटल बेचने को विवश
इस बार नहीं मिल रहे मक्का के खरीदार 800 रुपये प्रति क्विंटल बेचने को विवश। पिछले साल 2400 तक बिका था मक्का सरकारी खरीद में लापरवाही।
मुजफ्फरपुर [नीरज]। जिले में सरकारी स्तर पर मक्का खरीद में लापरवाही के चलते किसान परेशान हैं। 1760 रुपये प्रति क्विंटल सरकारी दर की जगह 800 रुपये में बेच रहे। इसके चलते उन्हें आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। लागत भी नहीं निकल पा रही। जिले में डेढ़ दशक पूर्व तक गन्ने की व्यापक खेती होती थी। लेकिन, मोतीपुर के अलावा गोरौल स्थित चीनी मिल बंद होने से किसानों ने गन्ने के विकल्प के रूप में मक्के की खेती शुरू की। लगभग 15 हजार हेक्टेयर में मक्के की खेती होती है। पहले अन्य प्रदेशों की बड़ी उत्पादन इकाइयां यहां मक्का की खरीदारी के लिए आती थीं। बाद में स्थानीय कंपनियां मक्का की खरीदारी करने लगीं। इसके बाद बिचौलिए हावी हो गए। स्थानीय फीड और फूड कंपनियां भी सही कीमत देने से कतराने लगीं।
सरकारी गोदाम का अभाव
पिछले साल 2400 रुपये प्रति क्विंटल तक मक्का बिका था। इस बार खरीदार नहीं हैं। सरकारी गोदाम का अभाव है। किसानों के पास भी मक्का रखने की जगह नहीं है। बाढ़ के चलते जिले के अधिकतर ग्रामीण इलाके पानी में डूबे हैं। ऐसे में किसान 800 रुपये क्विंटल मक्का बेचने को विवश हैं।
लागत निकालना भी मुश्किल
मुशहरी प्रखंड के मणिका निवासी किसान संजय कुमार की मानें तो लागत मूल्य निकलना मुश्किल है। मीनापुर के पानापुर के रवि रंजन कुमार उर्फ गुड्डू पासवान बताते हैं कि इलाके के 40 फीसद किसान मक्के की खेती करते हैं। इसबार खरीदार नहीं मिल रहे हैं। औराई के राम अवतार सिंह, अजय सिंह और मोतीपुर के राजीव चंद्रा भी कुछ इसी तरह दर्द बयां करते हैं।
विपणन पदाधिकारी विजय कुमार ने बताया कि जिले में 70 हजार टन मक्के का उत्पादन होता है। इस बार लॉकडाउन और बाढ़ के चलते किसानों को परेशानी हुई है। सरकार ने प्रति क्विंटल मक्के का समर्थन मूल्य 1760 रुपये घोषित किया है। खुले बाजार में 2000 से 2200 रुपये क्विंटल बिक भी रहा है। हो सकता है कि कुछ इलाकों में बाढ़ के चलते समस्या हो। किसानों को वाजिब कीमत दिलाई जाएगी।