अमर सुहाग के लिए नवविवाहिताओं का मधुश्रावणी पर्व आज से
सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मौना पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह 10 जुलाई को है।
मुजफ्फरपुर। सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मौना पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह 10 जुलाई को है। अमर सुहाग के लिए मिथिलांचल में नवविवाहिताओं का मधुश्रावणी पर्व आज से प्रारंभ होगा। यह सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को संपन्न होगा। जिन विवाहिताओं की शादी के बाद यह लोकपर्व पहली बार आता है, वे इसमें साविधि पूजन करती हैं।
पूर्व दिवस पर गुरुवार को नवविवाहिताओं में पर्व को लेकर विशेष उत्साह देखा गया। उन्होंने सुबह स्नान करने के बाद अरवा भोजन ग्रहण किया।
कथा का विशेष महत्व : पूजा के दौरान शिव-पार्वती से जुड़ी कथा सुनने का प्रावधान है। महिला पुरोहित द्वारा प्रतिदिन कथा सुनाई जाती है। एक दिन पूर्व डाली में सजाए गए फूल, ससुराल से आई पूजन सामग्री, दूध-लावा व अन्य सामग्री से विषहर की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस प्रकार पूजा-अर्चना से पति के दीर्घायु का वरदान मिलता है।
तपस्या के समान है यह पूजा
रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पंडित रमेश मिश्र बताते हैं कि यह पूजा एक तपस्या के समान है। इसमें लगातार 13 दिनों तक नवविवाहिताएं बार अरवा भोजन करती हैं। साथ ही नाग-नागिन, हाथी, गौरी-शिव आदि की प्रतिमा बनाकर नित्य कई तरह के फूलों, मिठाइयों व फलों से पूजन किया जाता है। पूजा के दौरान दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, पतिव्रता, महादेव कथा, गौरी तपस्या, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला कथा तथा बाल वसंत की कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है। गांव-समाज की बुजुर्ग कथा वाचिकाओं के द्वारा नव विवाहिताओं को समूह में बिठाकर कथा कही जाती है। प्रतिदिन संध्याकाल महिलाएं आरती, सुहाग गीत और कोहबर गीत गाती हैं।
टेमी दागने की भी परंपरा : पूजा के अंतिम दिन विवाहिता को टेमी दागने की परंपरा से गुजरना पड़ता है। इसमें पूजा के अंतिम दिन इसमें शरीक हुए पति अपनी विवाहिता के घुटने पर पान का पत्ता रख जलती बाती से छूते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि इससे पति-पत्नी का संबंध मजबूत होता है।