जानिए क्यों बिहार में तेजी से गिर रहा उच्च शिक्षा का स्तर, कैसे बदल सकती स्थिति Muzaffarpur News
इकोनॉमिक्स एसोशिएशन ऑफ बिहार की ओर से आयोजित तीन दिवसीय अधिवेशन का हुआ समापन। उच्च शिक्षा के गिरते स्तर पर पैनलिस्ट ने कुव्यवस्थाओं की खोलीं परतें।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। एडमिशन कैसे व्यवस्थित हो इसपर गौर किए बिना सेंट्रलाइज्ड ऑनलाइन एडमिशन प्रोसेस शुरू किया गया। बिहार की उच्च शिक्षा की बदहाली में शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी समस्या है। वर्तमान में बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति ऐसी है कि अगर पचास विद्यार्थियों के लिए एक शिक्षक हों तो भी करीब 10000 शिक्षकों की बहाली विभिन्न विभागों में करनी होगी। आइआइटी में 10 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होते हैं।
विश्वविद्यालयों में कम से कम 20 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होने चाहिए, पर बिहार में यदि 10 हजार अतिरिक्त शिक्षकों की बहाली होती भी है तो प्रति 50 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होंगे और तब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अपेक्षा नहीं की जा सकती। ये बातें दिल्ली से आए डॉ.सुधांशु भूषण ने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में इकोनॉमिक एसोशिएशन ऑफ बिहार की ओर से आयोजित तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन के अंतिम दिन गर्वनेंस ऑफ हायर एजुकेशन इन बिहार विषय पर पैनल डिस्कशन के दौरान कहीं।
कहा कि विभिन्न संस्थानों में नियुक्त शिक्षक भी काफी निष्क्रिय हो गए हैं। छात्रों में भी सक्रियता नहीं दिख रही है। लिजिटमेंट पावर का इलिजिटमेंट तरीके से प्रयोग हो रहा है। इसके कारण विश्वविद्यालयों को निर्णय लेने में ही काफी वक्त लग जाता है। जिसके पास यह पावर है वह इसका गलत तरीके से प्रयोग कर रहा है। इससे टकराव की स्थिति पैदा हो रही है और इसका दुष्परिणाम उच्च शिक्षा पर हो रहा है।
कुव्यवस्थाओं और उसके समाधान बताया
एनयूइपीए नई दिल्ली के डिपार्टमेंट ऑफ हायर एंड प्रोफेशनल एजुकेशन के प्रो.सुधांशु भूषण ने बिहार की उच्च शिक्षा को लेकर एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है। इसमें उन्होंने वर्तमान शिक्षा नीतियों पर सवाल उठाया। कहा कि गलत शिक्षा नीतियों के कारण लगातार उच्च शिक्षा पतन की ओर जा रहा है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अपेक्षा महज छलावा : डॉ.सोमेंद्र
जेएनयू के प्राध्यापक डॉ.सोमेंद्र चट्टोपाध्याय उच्च शिक्षा के लिए महज पांच फीसद दिया जाना उच्च शिक्षा के लिए छलावा है। इससे तो वर्तमान स्थिति को भी सही तरीके से चलाना मुश्किल है। ऐसे में नए शिक्षकों की नियुक्ति और इंफ्रास्ट्रकचर को भी डेवलप नहीं किया जा सकता। हर क्षेत्र में पॉलिसी फेल हो रहा है और विवि के लिए बनाए गए रेगुलेशन भी फ्लॉप हो रहा है। सैंकड़ों कॉलेज डिग्री बांट रहे हैं और उसके लिए भी हजारों विद्यार्थियों की भीड़ लगी है।
विद्यार्थी को भी क्वालिटी से मतलब नहीं और पढ़ाई पूरी होने के बाद जॉब नहीं होने पर बेरोजगारी की लिस्ट और बढ़ती जा रही है। ऐसे में शिक्षक और विद्यार्थियों को एक नीति बनाकर साथ चलना होगा। विद्यार्थियों को प्रयास करना चाहिए कि जो शिक्षक स्टाप रूम में बैठे हैं उन्हें क्लास तक लाने के लिए बाध्य करें और शिक्षक को भी चाहिए कि कक्षाओं में विद्यार्थियों की कमी हो देखते हुए ऐसी नीति बनाएं कि विद्यार्थियों का कक्षाओं की ओर झुकाव बढ़े।
इक्यूपमेंट्स हो गए बेकार : डॉ.डॉली सिन्हा
पटना विश्वविद्यालय की प्रोवीसी बिहार के किसी भी कॉलेज या विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई प्रॉपर तरीके से नहीं होती है। इस कारण यहां के विद्यार्थी ठीक तरीके से फ्रेमवर्क नहीं कर पाते। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में इक्यूपमेंट्स की स्थिति दयनीय है। देखरेख नहीं होने के कारण करोड़ों के उपकरण खराब हो गए हैं या उनका अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। इसके लिए फंड भी नहीं मिल रहा।
प्रभावित होता काम : प्रो.नवल किशोर
पटना से आए प्रो.नवल किशोर चौधरी ने सरकार की शिक्षा नीतियों पर सवाल खड़ा किया। कहा कि कुलपति को प्रत्येक पंद्रह दिनों पर राजभवन में बुलाकर उन्हें ट्यूशन दिया जाता है। अगर कुलपतियों को ट्यूशन की जरूरत है तो ऐसे में इसके चयन समिति पर सवाल खड़ा होता है। उन्होंने कहा कि कुछ कुलपति कहते हैं कि राजभवन में अच्छा लगता है। जब कुलपति ऐसी बात करेंगे तो उच्च शिक्षा के हालात की कामना की जा सकती है। शिक्षकों के चयन में पारदर्शिता होनी चाहिए। बिहार विश्वविद्यालय के डॉ.अनिल कुमार ओझा ने भी उच्च शिक्षा की खामियों पर प्रकाश डाला। हजारीबाग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.रमेश शरण ने कहा कि शिक्षकों को इस गिरती हुई शिक्षा को बचाने के लिए आगे आना होगा। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन बीआरएबीयू के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ.सीकेपी शाही ने किया। वहीं मौके पर डॉ.अनिल कुमार ठाकुर, डॉ.संजय कुमार, डॉ.देवेंद्र अवस्थी, डॉ.तपन कुमार शांडिल्य समेत अन्य प्राध्यापक और सैंकड़ों शोधार्थी मौजूद थे।