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बिहार के एक पूर्व मुख्यमंत्री जिनके पास पहनने के लिए थी केवल एक धोती

Karpoori Thakur Jayanti रात में नहीं सूखी धोती सुबह हिला-हिलाकर सुखाया। खुद से चापाकल चलाकर पानी निकालते और कपड़े भी धोते थे जननायक। हमेशा बिना आयरन के ही कपड़े पहने । ऊंचे आदर्श को जीवन में अपनाया ।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 11:51 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 12:36 PM (IST)
बिहार के एक पूर्व मुख्यमंत्री जिनके पास पहनने के लिए थी केवल एक धोती
हमेशा कार्यकर्ताओं के दम पर राजनीति को बढ़ाया। फाइल फोटो

समस्तीपुर,[ मुकेश कुमार]। जननायक कर्पूरी ठाकुर जब भी समस्तीपुर आते, शहर के ताजपुर रोड स्थित अधिवक्ता शिवचंद्र प्रसाद राजगृहार के आवास पर जरूर जाते थे। वहां बैठकों का दौर चलता। साथी-समाजी भी यहीं जुटते थे। उजियारपुर के पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं कि कर्पूरीजी 1969 में चुनावी दौरे से लौटकर रात में समस्तीपुर आए। वे राजगृहारजी के आवास पर पहुंच गए। उनके यहां एक और अधिवक्ता राजेंद्र रहते थे। रात में सभी लोग खाना खाकर सो गए थे। उनके पहुंचते ही सभी लोग उठे। कर्पूरी जी ने बाल्टी एवं मग की मांग की। रात में ही अपनी धोती और गंजी को खुद साफ कर सूखने के लिए डाल दिया। खाना खाकर सो गए, लेकिन सुबह तक धोती और गंजी सूख नहीं पाई। सुबह समस्या हो गई, अब क्या पहनें? धोती सुखाने के लिए उन्होंने खुद एक छोर पकड़ा और दूसरे को राजेंद्रजी ने। पोखर के पानी पोखर में जो... हमर धोतिया सूखले जो... यह उक्ति को गाकर धोती और गंजी को कुछ देर तक झटकते रहे। कुछ देर बाद दोनों पहनने लायक हो गई। बिना आयरन के वही धोती और कुर्ता पहनकर आगे निकल गए। 

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उनके पास अपनी एक गाड़ी नही थी

अधिवक्ता शिवचंद्र प्रसाद राजगृहार आज स्वस्थ नहीं है। उनके जेहन में बहुत सारी यादें हैं लेकिन वो पूरी तरह उसे बता पाने में अक्षम है। अपने सहयोगी के सहारे वो बताते हैं कि ताउम्र वे विधायक रहे, दशकों तक विरोधी दल के नेता रहे, शिक्षा मंत्री, उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे लेकिन उनके पास अपनी एक गाड़ी नही थी, न रहने के लिए मकान और न ढ़ंग के कपड़े। कपड़े के नाम पर एक धोती और कुर्ता ही। वे कहते हैं कि जननायक नाम उन्हें ऐसे ही नहीं दिया गया था। समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में गांव निवासी गोकुल ठाकुर और रामदुलारी के घर 24 जनवरी 1924 को कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। जननायक के कार्यकर्ता और पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह बताते हैं कि कर्पूरी जी की सादगी ऐसी थी कि वो कभी दूसरे को चापाकल नहीं चलाने देते थे। खुद से कल चलाकर पानी निकालना और अपने कपड़े को खुद धोना उनकी दिनचर्या में शामिल रही है।

मतदाताओं का वोट और कार्यकर्ताओं के पैसे से लड़ा जाता था चुनाव

उनके नजदीकी और समस्तीपुर की संसदीय राजनीति में उनकी छत्रछाया में लोकसभा का चुनाव लड़ चुके पूर्व सांसद अजीत कुमार कहते हैं कि वो जमाना अब की तरह नहीं था। जहां बिना पैसे की कोई बात नहीं होती थी। उस समय का चुनाव तो केवल और केवल कार्यकर्ताओं के दम पर लड़ा जाता था। वे कार्यकर्ता ही चुनाव अभिकर्ता होते थे और वे ही चुनावी सभा के लिए संसाधनों का जुगाड़ करते थे। यहां तक कि कुछेक वाहनों के लिए डीजल का इंतजाम भी करते थे। आमलोगों से ही एक वोट और एक नोट के सहारे चुनाव लड़ा जाता था। कर्पूरी जी जिस मीटिंग में जाते उनकी अपील पर कार्यकर्ताओं के गमछे में आमलोग यथाशक्ति चंदा भी देते थे। 


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