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मुजफ्फरपुर में दो अभियंता व कई पदाधिकारी करोड़ों के कंपनीबाग पार्क निर्माण में घपले के दोषी

करीब 286.39 लाख की योजना के लिए एजेंसी को बड़ी राशि का भुगतान तो कर दिया गया मगर इसका निर्माण 11 वर्ष के बाद भी पूरा नहीं हो सका। योजना में अनियमितता एवं सरकारी राशि के गबन को लेकर अनिल कुमार सिंह ने लोकायुक्त में मामला दर्ज कराया था।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 11:48 AM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 11:48 AM (IST)
मुजफ्फरपुर में दो अभियंता व कई पदाधिकारी करोड़ों के कंपनीबाग पार्क निर्माण में घपले के दोषी
तत्कालीन कार्यपालक अभियंता व अधीक्षण अभियंता की फंसी गर्दन।

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। मुख्यमंत्री समेकित शहरी विकास योजना से शहर में करोड़ों की लागत से बनने वाले कंपनीबाग पार्क के निर्माण में अनियमितता एवं गबन में दो अभियंता, प्रशासनिक और निगम के पदाधिकारियों को दोषी पाया गया है। जांच में दोष साबित होने पर सभी के खिलाफ लोकायुक्त मिहिर कुमार झा ने कार्रवाई का आदेश निगरानी विभाग को दिया है। मालूम हो करीब 286.39 लाख की योजना के लिए एजेंसी को बड़ी राशि का भुगतान तो कर दिया गया, मगर इसका निर्माण 11 वर्ष के बाद भी पूरा नहीं हो सका। योजना में अनियमितता एवं सरकारी राशि के गबन को लेकर अनिल कुमार सिंह ने लोकायुक्त में मामला दर्ज कराया था। कई जांच रिपोर्ट के बाद लोकायुक्त ने निगरानी विभाग को दोषी पाए गए तत्कालीन ग्रामीण कार्य विभाग अंचल-दो के अधीक्षण अभियंता कृष्ण कुमार शर्मा, डूडा के कार्यपालक अभियंता रामाशंकर प्रसाद के अलावा प्रशासनिक व निगम के पदाधिकारी एवं संवेदक के विरुद्ध प्रीवेंशन आफ करप्शन एक्ट के तहत वाद दायर करने का आदेश दिया है। नगर विकास विभाग को प्रशासनिक व निगम के पदाधिकारियों पर कड़ी अनुशासनिक कार्रवाई करने को कहा है।

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गैर निबंधित एजेंसी को दिया काम

मामले की जांच में यह बात सामने आई कि इतनी बड़ी राशि की योजना के लिए प्राक्कलन नहीं बना। संवेदक से एग्रीमेंट को ही प्राक्कलन मान लिया गया। शुरुआत में सिर्फ मिट्टी भराई और पौधारोपण की योजना को ही स्वीकृति दी गई। बाद में संशोधन कर इसके सुंदरीकरण समेत अन्य निर्माण कार्य शामिल कर लिए गए। इसके लिए भी नियम का पालन नहीं किया गया। एग्रीमेंट भी महज सौ रुपये के न्यायिक स्टांप पर कर लिया गया। एकल बीड के बावजूद इसकी तकनीकी स्वीकृति तत्कालीन अधीक्षण अभियंता ने दे दी। वहीं मेसर्स संसार ग्रीनटेक प्रालि नामक जिस एजेंसी को कार्य दिया गया वह राज्य के किसी विभाग से निबंधित नहीं थी। 14 अगस्त 2010 को तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त ने योजना की प्रशासनिक स्वीकृति दी। इसी दिन 147.197 लाख रुपये तत्कालीन जिला पदाधिकारी द्वारा चेक से विमुक्त किया गया। राशि जारी होने के बाद कब कितना कार्य हुआ इसकी जांच तक नहीं की गई। इस बीच बिलों का भुगतान जारी रहा। एमबी की जांच तक नहीं की गई। लोकायुक्त कार्यालय के उप सचिव एवं निगरानी कोषांग के एसपी की संयुक्त जांच रिपोर्ट में यह कहा गया कि योजना में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार किया गया। बड़ी राशि खर्च होने के बाद भी योजना पूरी नहीं हो सकी।

सरकार को राजस्व भी भारी क्षति

जांच रिपोर्ट में कहा गया कि एजेंसी ने राशि लेकर भी काम नहीं किया। कई कार्य तो शुरू भी नहीं हुए। कुछ हुए तो अधूरे ही रह गए। पार्क निर्माण में शिथिलता को लेकर एजेंसी को नोटिस देते हुए एकरारनामा को रद कर दिया गया। वहीं कार्य को पूर्ण करने के लिए एजेंसी का चयन तो किया गया, मगर योजना की स्थिति यथावत है। इससे सरकार को बड़े राजस्व की क्षति हुई।

दोषी अभियंताओं के नाम तय, पदाधिकारी होंगे चिह्नित

इस मामले में दोषी दो अभियंताओं के नाम तय हैं। प्रशासनिक एवं नगर निगम के पदाधिकारियों के नाम निगरानी की जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकेंगे, मगर जिस तरह से एजेंसी को एकतरफा मदद पहुंचाई गई इससे इतना जरूर लग रहा कि इसमें कुछ बड़े नाम भी शामिल हो सकते हैं।


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