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रंग-बिरंगी तितलियों को देखना हो तो आइए पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, यहां वातावरण के अनुकूल बना तितली पार्क

Samastipur अगर आपको रंग-बिरंगी तितलियों को देखना है तो चले आइए समस्तीपुर के पूसा स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय। यहां तितली की 45 प्रजातियों पर हो रहा अनुसंधान। पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ फसल उत्पादन में भी वृद्धि करती हैं तितलियां।

By Murari KumarEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 04:34 PM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 04:34 PM (IST)
रंग-बिरंगी तितलियों को देखना हो तो आइए पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, यहां वातावरण के अनुकूल बना तितली पार्क
रंग-बिरंगी तितलियों को देखना हो तो आइए पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

समस्तीपुर, जागरण संवाददाता। अगर आपको रंग-बिरंगी तितलियों को देखना है तो चले आइए समस्तीपुर के पूसा स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय। यहां उत्तर बिहार का पहला तितली पार्क बना है। पॉली हाउसनुमा शेड में स्थापित इस डेढ़ एकड़ के पार्क के निर्माण में करीब 10 लाख की लागत आई है। राज्य सरकार द्वारा बनाये गए पाली हाउस में  यहां तितलियों की 45 प्रजातियों पर अनुसंधान हो रहा है। तितलियों के इस पार्क में इनके संरक्षण, प्रजनन और रखरखाव पर विज्ञानी ध्यान दे रहे हैं।

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 अंडाकाल से लेकर तितली बनने तक इनकी देखभाल करने के साथ-साथ इन पर शोध भी किया जा रहा है। कीट विज्ञानी डॉ. रमेश झा बताते हैं कि तितलियां जैव विविधता के महत्वपूर्ण घटक हैं। ये कृषि तंत्र की खाद्य शृंखला में भूमिका निभाती हैं। तितलियां जो अपने आकर्षक रूप से क्षेत्रों में भ्रमण करती है। वह प्रकृति की ऐसी जीव है जो पर्यावरणीय संरक्षण के साथ-साथ फसल उत्पादन की वृद्धि में भी योगदान है। डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में तितली पार्क की स्थापना कर अनुसंधान किया जा रहा है। 

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एक सौ पचास लाख वर्ष पुराना है तितली का इतिहास 

विज्ञानी का बताना है कि पृथ्वी पर तितली जाति का प्रभाव एक सौ पचास लाख वर्ष पूर्व में हुआ। इस पृथ्वी पर तितली की 2, 50,000 प्रजातियां पाई जाती है। हालांकि अभी तक इनमें से चौथाई की ही पहचान हो पाई है। विज्ञानियों का मानना है कि तितलियां जैव विविधता के महत्वपूर्ण घटक हैं और कृषि तंत्र के खाद्य श्रृंखला में अपनी भूमिका निभाते हैं। विश्वविद्यालय में स्थापित यह तितली पार्क उत्तर बिहार का पहला पार्क है, जहां पहुंचने वाले पर्यटक व आम लोग रंग बिरंगी तितलियों को नजदीक से देख कर इस का लुफ्त उठा सकेंगे। इतना ही नहीं इसके अलावे लोगों को वैज्ञानिकों के द्वारा तितलियों के जीवन चक्र वह उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों से भी अवगत कराया जाएगा। 

संरक्षण, प्रजनन और रख-रखाव पर भी हो रही खोज  

तितलियों के इस पार्क में संरक्षण प्रजनन और इसके रखरखाव पर विज्ञानी ध्यान दे रहे हैं। अंडा काल से लेकर तितली बनने तक इसकी देखभाल करने के साथ-साथ इन पर शोध भी किया जाएगा। विज्ञानी  --- का बताना है कि तितलियां प्रकृति की सबसे सुंदर रचनाओं में से एक है। यह काफी शांत वह सरल स्वभाव की होती है। इसके साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा एवं फसल उत्पादन में भी तितलियां अपनी योगदान देती है। इन्हें शोर गुल बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं। लोगों को चाहिए कि वे इनकी गतिविधियों को केवल महसूस करके ही इन का आनंद लें। तितलियों का संरक्षण नहीं होने के अभाव में कई प्रजातियां लुप्त हो रही है। वहीं अपने आयु से पूर्व ही मृत हो जा रही हैं। सुरक्षा एवं प्रजनन की उद्देश्य देश के कई प्रदेशों में तितली पार्क की स्थापना की गई है। 

वातावरण के अनुकुल बना तितली पार्क 

विश्वविद्यालय में स्थापित तितली पार्क वातावरण के अनुकूल बनाया गया है। उसकी चाहत के अनुसार विभिन्न प्रकार के पौधे भी लगाए गए हैं। विश्वविद्यालय इस पार्क को एक मॉडल के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रही है। इससे किसानों में जागरूकता फैले और तितलियों के संरक्षण में अपना योगदान करें।

तितलियों की चाहत वाले पौधे हैं इस पार्क में 

 तितलियों की चाहत वाले पौधों को इस पार्क में लगाया गया है। तितलियां ज्यादातर चंपा मणिपुरी, चंपा कचनार, सीशम, प्लास, पीला बास, चकुंडी पाकर सहित लत्तीदार पौधों पर ज्यादा आकर्षित होती है। सर्पगंधा, ङ्क्षसगापुर डे जी, अंडी,बैर, रात की रानी, चीरा मीरा, अनार आदि कई पौधे तितलियों की चाहत की पौधे है।

आर्थिक महत्व है तितलियों का 

 तितलियों का आर्थिक महत्व भी है। प्रत्येक वर्ष हजारों विदेशी तितलियों को देखने भारतवर्ष आते हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों में तितली पार्क की स्थापना पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, असम, केरल और महाराष्ट्र में इसके पर्यटन एवं इसके सहयोगी व्यवसाय फल फूल रहे हैं।


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