बागमती के तटबंधों को ऊंचा किया गया तो 10 से 20 गुना बढ़ेगी तबाही Muzaffarpur News
05 मीटर तक बागमती नदी के तटबंधों को और ऊंचा करने की बन रही योजना। पिछले दिनों अनुभवी व सेवानिवृत्त इंजीनियरों और अधिकारियों ने तटबंध क्षेत्रों का किया था दौरा।
मुजफ्फरपुर, [अजय पांडेय]। बागमती नदी के तटबंधों को पांच मीटर और ऊंचा करने की योजना सरकार के आला अधिकारी बना रहे हैं। जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने केंद्र सरकार से मंजूरी प्राप्त कर ली है। करीब एक हजार करोड़ से अधिक की योजना का टेंडर हो चुका है। यह तब हो रहा, जब उत्तर बिहार में तटबंधों के टूटने से तबाही मची है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक ये बात पहुंची तो उन्होंने डेवलपमेंट कमिश्नर सुभाष शर्मा को तटबंधों की पड़ताल करने का निर्देश दिया। पिछले दिनों अनुभवी व सेवानिवृत्त इंजीनियरों और अधिकारियों ने तटबंध क्षेत्रों का दौरा किया। उनकी राय में ये विनाशकारी कदम हो सकता है। वे योजना में कई खामियां बता रहे हैं।
यह जानकारी विशेष बातचीत में पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश ने दी। विशेषज्ञ बताते हैं कि तटबंध को ऊंचा किया जाएगा तो नदी के ऊपर बने रेल और सड़क पुलों को भी उसी अनुपात में ऊंचा करना होगा। डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में इसकी चर्चा तक नहीं है। उनके अनुसार, नदी में सिल्ट आने की मात्रा और उसके प्रभावों का भी जिक्र नहीं है। पानी डिस्चार्ज के लिए बने डिजाइन के आंकड़ों का गंगा फ्लड कंट्रोल कमीशन के आंकड़ों से कोई मेल नहीं है। इन तमाम बिंदुओं पर विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है।
उनका कहना है कि बागमती पर बना तटबंध कई जगहों पर अधूरा है। अगर, इसकी ऊंचाई बढ़ाई जाती है तो टूटने पर बाढ़ की विभीषिका 10 से 20 गुना तक बढ़ जाएगी। तबाही और भयावह हो सकती है। आशा की जानी चाहिए कि डेवलपमेंट कमिश्नर ने टेंडर रद करने व तटबंध की ऊंचाई रोकने की मुख्यमंत्री से अनुशंसा की होगी। मुख्यमंत्री भी इस विनाशकारी योजना को रोक देंगे।
सीएम के निर्देश पर बनी थी रिव्यू कमेटी
बागमती के दोनों किनारों पर जबसे तटबंध बनना शुरू हुआ, तभी से इसका विरोध शुरू हो गया था। 2012 में मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड में जनता ने तटबंध निर्माण रोक दिया। सरकार ने भी ज्यादा जबरदस्ती नहीं की। 2017 में ठेकेदारों ने फिर जोर लगाया तो हजारों लोगों के प्रतिरोध के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर रिव्यू कमेटी बनाई गई। इसकी भी अबतक एक बैठक हुई है, लेकिन तटबंध का निर्माण ठप है। बावजूद इसके बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अंदरखाने योजना बन रही।
1984 में कोसी ने मचाई थी भारी तबाही
नदियों के किनारे तटबंधों का निर्माण बाढ़ से सुरक्षा के नाम पर किया गया था। 1950 में बिहार में नदियों पर बने तटबंधों की लंबाई लगभग 115 किलोमीटर थी। राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग के अनुसार अब इनकी लंबाई 3800 किलोमीटर है। 1950 बाढ़ प्रभावित क्षेत्र लगभग 25 लाख हेक्टेयर था, आज यह बढ़कर 75 लाख हेक्टेयर से ज्यादा हो गया है। हर साल जब बाढ़ आती है, ये तटबंध टूटकर तबाही मचाते हैं। 1984 में जब कोसी का तटबंध नौहट्टा (सहरसा) में टूटा था, तब भारी तबाही मची थी। तब इंजीनियरों ने यह कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था कि इस तटबंध को सिर्फ 25 वर्षों के लिए डिजाइन किया गया था।
बाढ़ राहत के नाम पर हर साल खर्च होती बड़ी राशि
पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश कहते हैं कि 1987 की बाढ़ में 104 स्थानों पर तटबंध टूटे थे। 1987 से अबतक लगभग 400 स्थानों पर तटबंध टूटे हैं। 1966 में ही तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री डॉ. केएल राव ने लोकसभा में कहा था कि तटबंध बनेगा तो टूटेगा ही। उनकी बात योजनाकारों ने नहीं मानी, जिसका परिणाम लोग भुगत रहे। 2012 में बिहार स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी तथा मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज, भारत सरकार ने मिलकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर के प्रो. विकास राममहाशय और प्रो. राजीव सिन्हा से 'फ्लड डिजास्टर एंड मैनेजमेंट : इंडियन सिनारियोÓ नामक रिपोर्ट बनवाकर प्रकाशित करवाई थी। यह बिहार की बाढ़ समस्या पर ही केंद्रित है। रिपोर्ट में ही लिखा गया है कि इंजीनियरों तथा वैज्ञानिकों के तमाम प्रयत्नों के बावजूद हर बार नदियों के तटबंध टूट जाते हैं। नदियां अपनी धारा बदलने लगती हैं। बाढ़ नियंत्रण के प्रयत्नों पर हर साल भारी राशि खर्च की जाती, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं आता। यह भी स्पष्ट है कि नदियों के दोनों किनारों पर जो ढांचे (तटबंध) खड़े किए गए हैं, उनके कारण नदियों के अंदर भारी मात्रा में गाद (सिल्ट) जमा हो जाता है और जलबहाव बाधित होता है।
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