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दरभंगा में महिलाओं की कड़ी मेहनत से दूर हुई बाधा, बकरी पालन से आई समृद्धि

दरभंगा के अलीनगर घनश्यामपुर गौड़ाबौराम व किरतपुर प्रखंड की महिलाएं रच रहीं समृद्धि का इतिहास एक साल में 92 लाख का कारोबार कर परिवार की खुशियों को लौटाने में कामयाबी पाने के बाद खेती पर भी जोर ।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 04:27 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 04:27 PM (IST)
दरभंगा में महिलाओं की कड़ी मेहनत से दूर हुई बाधा, बकरी पालन से आई समृद्धि
महिलाओं को प्रशिक्षण देने पहुंचे जाले कृषि विज्ञान केंद्र के केंद्राधीक्षक दिव्यांशु शेखर, जीविका की डीडीएम आकांक्षा। (फाइल फोटो)

दरभंगा {संजय कुमार उपाध्याय}। जब भी दरभंगा जिले की बात होती है तो बाढ़ की त्रासदी और उसके निशान दर्द देते हैं। इस दर्द के बीच यहां की महिलाओं ने उसी नदी के नाम पर कमला फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) नाम से एक कंपनी बनाई है। इसमें अलीनगर, घनश्यामपुर, गौड़ाबौराम और किरतपुर की महिलाएं शामिल हैं। ये चारों प्रखंड बाढ़ में डूब जाते हैं, इसलिए यहां की महिलाओं ने बकरी पालन को अपनाया है। जल जमाव के कारण बरसात में बांस के मचान पर ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां पालती हैं। इनके लिए बकायदा पशु सखी बहाल हैं, ताकि बकरियों के पालन में कोई परेशानी न आए।

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घनश्यामपुर प्रखंड के लगमा से संचालित इस एफपीओ से करीब 7400 महिलाएं (3800 सदस्य व 3600 शेयर धारक) परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हैं। पांच महिलाओं का निदेशक मंडल इसे नूतन देवी के नेतृत्व में चला रहा है। 2016 से संचालित इस कंपनी ने बकरी (खस्सी) बेचकर अपना सालाना टर्नओवर करीब 92 लाख तक पहुंचा दिया है। कंपनी के पास वर्तमान में करीब छह हजार से ज्यादा बकरियां हैं। कंपनी को नाबार्ड की ओर से 2020 में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ‘बेस्ट परफार्मर अवार्ड’ से नवाजा जा चुका है। इन्हें प्रशिक्षण देने के लिए नावार्ड डीडीएम आकांक्षा, जाले कृषि विज्ञान केंद्र के केंद्राधीक्षक दिव्यांशु शेखर व अन्य गांवों में जाते हैं।

कंपनी के शेयर धारकों को खेती में सहयोग

एफपीओ के सदस्यों को नावार्ड के सहयोग से मिथिला ग्राम विकास परिषद के प्रमुख नारायण जी चौधरी आवश्यक प्रशिक्षण देते हैं। बताते हैं कि कंपनी के साथ बकरी पालन करनेवालों के अलावा शेयरधारक भी सहयात्री हैं। दो सौ से एक हजार तक का शेयर 3600 लोगों ने खरीदा है। इसके बदले संस्था खेती के समय में किसानों को गेंहू, धान व अन्य तरह के बीज उपलब्ध कराती है। प्रति बैग पर सदस्यों को सौ से डेढ़ सौ रुपये की बचत हो जाती है।

दर्जन भर से ज्यादा महिलाओं को पशु सखी के रूप में रोजगार

करीब दर्जन भर से ज्यादा महिलाओं को पशु सखी के रूप में काम भी मिल गया है। 400-500 परिवार पर एक पशु सखी है। उन्हें बकरियों में होनेवाली पांच प्रमुख बीमारियों की ट्रेनिंग है। वो डी-वर्मिंग की दवा देती हैं। टीकाकरण करती हैं। इससे उन्हें अच्छी आमदनी होती है और पशुपालकों का खर्च कम जाता है।

पहले पति रहते थे परदेश, अब गांव में खरीद रहीं जमीन

एफपीओ की सदस्य रसियारी पौनी निवासी लालो देवी संस्था में आने से पहले गरीबी से तंग थीं। संस्था से जुड़ी तो दो बकरियों से काम शुरू किया। धीरे-धीरे काम बढ़ा। अब इनके पास 25 से ज्यादा बकरियां हैं। इनके पति गरीबी के कारण परदेश में काम करने को मजबूर थे। अब घर लौटकर पत्नी का हाथ बंटा रहे हैं। बकायदा गांव में बकरी हाट में दंपती खस्सी लेकर पहुंचते हैं और उससे मिले पैसों से परिवार चला रही है। यह अब गांव में जमीन खरीद बेहतर गृह निर्माण व बच्चों को उच्च शिक्षा देने में लगी हैं। लालो अकेली नहीं हैं। चार प्रखंड के दर्जनों गांवों की 7400 महिलाएं बदलते बिहार की तस्वीर खींच रही हैं।

- संस्था में 3800 महिलाएं सदस्य हैं और 3600 शेयरधारक। सभी मिलकर काफी बेहतर काम करते हैं। महिलाओं ने देश के लिए एक माडल तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसके लिए इन्हें लगातार प्रोत्साहित किया जाता है। 2020 में इन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। महिला दिवस के अवसर पर भी इन्हें सम्मान मिला है। - आकांक्षा जिला विकास प्रबंधक, नावार्ड।


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