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सरकार नहीं दे रही ध्यान, मधुबनी की कई धरोहरें हो रहीं बर्बाद

संग्रहालय के रखरखाव के साथ संपूर्ण विकास को लेकर विधान पार्षद प्रेमचंद मिश्रा सहित कई राजनेताओं ने समय-समय पर विधानसभा व विधान परिषद में सवाल उठाए मगर अब तक इस दिशा में कोई सार्थक पहल सामने नहीं आ सकी है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 11:06 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 11:06 AM (IST)
सरकार नहीं दे रही ध्यान, मधुबनी की कई धरोहरें हो रहीं बर्बाद
वाचस्पति संग्रहालय में संग्रहित हैं दो हजार साल पुराने अवशेष। फोटो- जागरण

मधुबनी, [कपिलेश्वर साह]। अंधराठाढ़ी प्रखंड के गांवों में खेती, खुदाई और निर्माण कार्य के दौरान मिलने वाले दुर्लभ प्राचीन सामग्रियों का रखरखाव नहीं हो रहा है। किसी जमाने में कई राजाओं की राजधानी रह चुके अंधराठाढ़ी प्रखंड के खेतों व डीहों की खुदाई-जुताई के क्रम में मिलने वाली देव प्रतिमाएं व अन्य प्राचन सामग्रियों को सहेजने के लिए वर्ष 1969 में अंधराठाढ़ी के पं. सहदेव झा ने वाचस्पति संग्रहालय की स्थापना की थी। इस संग्रहालय की विशिष्टता देखते हुए वर्ष 2000 में बिहार सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। संग्रहालय के अधिग्रहण के बाद अब तक बिहार सरकार की ओर से इस संग्रहालय के रखरखाव या संग्रहालय संचालन के मद में राशि आवंटित नहीं की जा सकी है। अधिग्रहण के बाद से ही उचित संरक्षण के अभाव में संग्रहालय के दुर्लभ प्राचीन सामग्रियों के नष्ट होने का खतरा बना हुआ है। इस संग्रहालय के रखरखाव के साथ संपूर्ण विकास को लेकर विधान पार्षद प्रेमचंद मिश्रा सहित कई राजनेताओं ने समय-समय पर विधानसभा व विधान परिषद में सवाल उठाए, मगर अब तक इस दिशा में कोई सार्थक पहल सामने नहीं आ सकी है।

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संग्रहालय में 72 प्रकार की दुर्लभ प्राचीन सामग्रियां संग्रहित

अंधराठाढ़ी के कमलादित्य स्थान में प्राप्त सूर्य प्रतिमा में मिथिला के प्रथम राजा नान्यदेव का नाम उल्लिखित है। जिनकी यह राजधानी रही। बाद में यहां सेन राजा मदनपाल का भी शासन रहा। महान दार्शनिक व टीकाकार पं. वाचस्पति मिश्र, कई राजाओं व विद्वान के काल के पुरावस्तु वाचस्पति संग्रहालय में संरक्षित हैं। संग्रहालय में कुल 72 प्रकार की दुर्लभ पुरातात्विक सामग्रियां संग्रहित है। संग्रहालय में ईसा पूर्व से लेकर मध्य युग तक की कई दुर्लभ पत्थर व धातु निर्मित कलाकृतियां, शिलालेख तथा स्थापत्य शिल्प के नमूने उपलब्ध हैं। इनमें प्रमुख यक्षिणी, बोधित्सव, बालगोपाल, सिंहवाहिनी दुर्गा, अष्टदल कमलासीन भगवान बुद्ध, श्रीविष्णु, श्रीलक्ष्मी, श्रीमंत्र, जीवाष्म, सिक्के, पांडुलिपि, चौखट आदि संग्रहित हैं। इन पुरातात्विक सामग्रियों के नष्ट या चोरी चले जाने का भय बना हुआ है। संग्रहालय का भवन कई जगहों पर जर्जर हो चुका है। संग्रहालय के अवकाशप्राप्त अध्यक्ष हरिदेव झा ने बताया कि संग्रहालय की पुरातात्विक वस्तुओं की सुरक्षा के लिए सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण पुरातात्विक वस्तुएं अपने घर पर रखे हैं। संग्रहालय आने वाले लोग उनके घर पर पहुंचकर वस्तुओं का अवलोकन करते हैं। रिटायर्ड होने के बाद भी अब तक वेतन मद में एक रुपये का भुगतान नहीं हुआ है।

महाराजाधिराज लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा के संग्रहालय अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार मिश्र ने कहा कि वाचस्पति संग्रहालय को फिर से पुनर्निर्माण कर मिथिला के पुरातात्विक सामग्रियों को संग्रहित करने और उचित संरक्षण की जरूरत है। इसे नष्ट होने से बचाने के लिए पहल किया जाना चाहिए। क्षेत्र में मिलने वाले पुरातात्विक वस्तुओं को सहेजने से मिथिला के प्राचीन इतिहास को सामने लाने में सफलता मिलेगी। 


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