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Govardhan Puja 2020: गोवर्धन पूजा आज, पशुपालकों ने की मवेशियों की पूजा

Govardhan Puja 2020 दीपावली की अगली सुबह रविवार को जिले में गोवर्धन पूजा हुई। किसानों ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने मवेशियों की पूजा की। गाय बैल को स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया तथा उनके गले में नई रस्सी पहनाई। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया।

By Murari KumarEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2020 09:55 AM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2020 09:55 AM (IST)
Govardhan Puja 2020: गोवर्धन पूजा आज, पशुपालकों ने की मवेशियों की पूजा
समस्तीपुर के जितवारपुर में गाय को स्नान करते पशुपालक

समस्तीपुर, जेएनएन। दीपावली की अगली सुबह रविवार को जिले में गोवर्धन पूजा हुई। किसानों ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने मवेशियों की पूजा की। गाय बैल को स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया तथा उनके गले में नई रस्सी पहनाई। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया। धतुरा सहित कई तरह के पौधे के पत्ते कूटकर खिलाया तथा सरसों का तेल पिलाया। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार का लोक जीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। मान्यता है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

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गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है। कहा जाता है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची। सभी बृजवासी उत्तम पकवान बनाकर किसी पूजा की तैयारी में जुटे थे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से पूछा मईया आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं। कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं, मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इससे गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। 

 कृष्ण की माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे। तब कृष्ण अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर इंद्र और क्रोधित हुए वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकने के लिए कहा।

 इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हें एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचें और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लच्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा उन्होंने कृष्ण से क्षमा मांगी। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं।


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