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अलविदा 2020 : मुजफ्फरपुर ने नए राजनीतिक चेहरों को अपनाया, हाशिए पर रहे कई दिग्गज

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चार पूर्व मंत्री नहीं जा सके सदन तो तीन नए चेहरे के सिर सजा ताज। पहली बार जिले की दो सीटों पर लड़ी वीआइपी को दोनों पर सफलता। साथ ही कई नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधि में दल से निष्कासित होने का दर्द झेलना पड़ा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 21 Dec 2020 07:41 AM (IST)Updated: Mon, 21 Dec 2020 01:24 PM (IST)
अलविदा 2020 : मुजफ्फरपुर ने नए राजनीतिक चेहरों को अपनाया, हाशिए पर रहे कई दिग्गज
जिले के दो विधायक ही अपनी सीट बचा सके।

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। वर्ष 2020 में कोविड-19 ने सभी क्षेत्र को प्रभावित किया। इसी दौर में हुए बिहार विधानसभा के लिए जिले की 11 सीटों पर हुआ चुनाव भी उथलपुथल वाला रहा। कई दिग्गज अपनी सीट नहीं बचा सके। जबकि कई नए चेहरे पहली बार सदन पहुंचे। चुनाव परिणाम ने राजनीतिक दल के नेताओं के संबंधों में कटुता पैदा कर दी। साथ ही कई नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधि में दल से निष्कासित होने का दर्द झेलना पड़ा।

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करीब-करीब सभी दिग्गज चुनाव हार गए

सबसे पहले बात विधानसभा चुनाव की। इस वर्ष यह सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि रही। चुनाव में करीब-करीब सभी दिग्गज चुनाव हार गए। पूर्व मंत्री सुरेश कुमार शर्मा, रमई राम व राम विचार राय की हार चिरपरिचित प्रतिद्वंद्वी से हुई। जबकि एक अन्य पूर्व मंत्री अजीत कुमार को पहली बार मैदान में उतरे इसराइल मंसूरी ने शिकस्त दी। एक और दिग्गज महेश्वर प्रसाद यादव को भी पहली बार चुनावी रण में उतरे निरंजन राय ने परास्त किया। इन दो नए चेहरे के अलावा नंद कुमार को हराकर अरुण कुमार सिंह भी पहली बार सदन पहुंचे। इस चुनाव में यह भी महत्वपूर्ण रहा कि दो विधायक ही अपनी सीट बचा सके। मीनापुर से राजद के राजीव रंजन उर्फ मुन्ना यादव व पारू से भाजपा के अशोक कुमार सिंह अपनी सीट बचा सके। वहीं कांटी छोड़कर सकरा से लड़े अशोक कुमार चौधरी ने विधायकी कायम रखी। आठ विधायकों को हार का मुंह देखना पड़ा।पार्टी के हिसाब से वीआइपी को सबसे फायदा मिला। पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी इस पार्टी के दोनों उम्मीदवार जीत गए। राजद को दो सीटों का घाटा हुआ। सीट के हिसाब से भाजपा को घाटा तो नहीं हुआ। तीन सीटें फिर मिलीं, लेकिन पार्टी के दिग्गज नेता हार गए।

चुनाव मैदान के बाद जुबानी जंग

चुनाव के कुछ दिनों बाद तो सबकुछ सामान्य रहा। मगर पूर्व मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने हार के लिए संगठन को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा में कांग्रेस संस्कृति हावी हो रही है। भाजपा जिलाध्यक्ष रंजन कुमार ने पूर्व मंत्री के बयान को गलत ठहराया। साथ ही पूर्व मंत्री को खुद की हार के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। दोनों भाजपा नेताओं की बयानबाजी चर्चा में रही। भाजपा के अलावा राजद व जदयू में भी पार्टी नेताओं को चुनाव के दौरान दल विरोधी काम के लिए निष्कासित किया। इसमें जदयू के विधान पार्षद दिनेश प्रसाद सिंह सबसे चर्चित नाम रहा। इसके अलावा पूर्व जिलाध्यक्ष हरिओम कुशवाहा को भी पार्टी से बाहर कर दिया। राजद ने पूर्व विधायक डॉ. सुरेंद्र कुमार व पूर्व उम्मीदवार शंकर प्रसाद पर कार्रवाई की।

मुजफ्फरपुर को भाजपा ने बनाया केंद्र

उत्तर बिहार में पार्टी की मजबूती के लिए भाजपा ने मुजफ्फरपुर को संगठन का एक केंद्र बनाया। यहां सह संगठन मंत्री के रूप में रत्नाकर को नियुक्त किया। जिले के लिए यह महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धि रही। 


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