जरा याद करो कुर्बानी : बापू की दांडी यात्रा में बिहार के एकमात्र सहयात्री थे गिरिवरधारी
Independence Day 2020 डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था रख ली बिहार की लाज। मैथिल गांधी कारो बाबू के नाम से प्रसिद्ध थे गिरिवरधारी।
समस्तीपुर [डॉ. मुकेश कुमार]। नमक सत्याग्रह का समस्तीपुर से गहरा जुड़ाव रहा। कुशेश्वरस्थान के बेरी निवासी गिरिवरधारी चौधरी साबरमती आश्रम के करीब थे। उनके बड़े भाई हरिगोङ्क्षवद चौधरी के प्रयास से यहां तक उनकी पहुंच हो सकी थी। हरिगोविंद चौधरी का तो बापू से पत्राचार भी होता रहता था। बापू ने जब नमक सत्याग्रह और दांडी यात्रा की घोषणा की तो गिरिवरधारी भी शामिल हो गए।
पहले 78 फिर 80 की संख्या में नमक सेनानियों के साथ 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से यात्रा आरंभ हुई। पांच अप्रैल, 1930 की रात दांडी के सैफी विला में सभी सत्याग्रही ठहरे और अगले दिन छह अप्रैल को नमक आंदोलन में भाग लिया। गिरिवरधारी इस यात्रा में बिहार के एकमात्र यात्री थे। एक मुलाकात में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उनसे कहा था, आपने बिहार की लाज रख ली।
मन-मस्तिष्क पर गांधीजी का अद्भुत प्रभाव
24 दिनों में 338 किलोमीटर की अविराम यात्रा में गिरिवरधारी के मन-मस्तिष्क पर गांधीजी का अद्भुत प्रभाव था। दांडी यात्रा की तपस्या में तपकर वे अहिंसा और बापू के भक्त हो गए। वहां से लौटने के बाद खादी की एक धोती छोड़कर कोई अन्य वस्त्र और चप्पल धारण नहीं किया। इनके भगवती गृह में देवी-देवताओं के साथ गांधीजी की तस्वीर रहती थी। इलाके में ये मैथिल गांधी कारो बाबू के नाम से प्रसिद्ध थे।
समस्तीपुर जिले के सिंघिया थाने पर आंदोलनकारियों के उग्र व हिंसक प्रदर्शन से अलग अङ्क्षहसावादी प्रदर्शन के बाद भी पुलिस इनकी तलाश करती रही। गांव की एक बाल विधवा बहन को मुखाग्नि देते समय पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। उतरी पहने ही उन्हें जेल भेज दिया गया।
आइआइटी मुंबई ने दिया सम्मान
आइआइटी मुंबई ने नेशनल साल्ट सत्याग्रह मेमोरियल, दांडी के साथ मिलकर 80 नमक यात्रियों की आदमकद कांस्य प्रतिमा तैयार की है। जिसे दांडी में सैफी विला के निकट स्थापित कराया गया है। उन यात्रियों में गिरिवरधारी की भी प्रतिमा स्थापित है।
जिले में भी प्रतीकात्मक रूप से बनाए गए थे नमक
इतिहासकार डॉ. नरेश कुमार विकल बताते हैं कि नमक सत्याग्रह की शुरुआत के बाद समस्तीपुर के गंगा, बूढ़ी गंडक, नून, बलान, करेह, बागमती, शांति, जमुआरी आदि छोटी-बड़ी नदियों के तट पर लोग जुट गए थे। क्रांतिकारी और आंदोलनकारियों के साथ हजारों लोग आग पर कराह चढ़ाए प्रतीकात्मक नमक बनाने में जुट पड़े थे। इससे अंग्रेजी हुकूमत की बेचैनी बढ़ गई, गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। सामूहिक जुर्माने लगाए गए थे। गिरिवरधारी ने यातनाओं को सहते-सहते आजाद भारत में भी सांसें लीं। 18 अगस्त, 1990 को उनका महाप्रयाण हो गया।