पश्चिम चंपारण [विनोद राव]। दुर्गा पूजा में गंगा-जमुनी तहजीब देखनी हो तो चले आइए बगहा शहर के मलकौली-पठखौली मोहल्ला। धार्मिक आयोजन में दोनों धर्म के लोग शिरकत करते हैं। एक ही परिसर में मंदिर और मस्जिद दोनों हैं। मंदिर में जब देवी दुर्गा की आरती होती तो मुस्लिम समुदाय के लोगों के सिर सदके में झुक जाते हैं। इसी तरह मस्जिद में अजान के समय पूजा पंडाल का स्पीकर बंद कर दिया जाता।
दरअसल, मस्जिद और मंदिर के बीच चंद कदम का फासला भले दिखता हो, लेकिन लोगों के दिलों में एक-दूसरे के धर्म के प्रति दूरी नहीं है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक दशहरे की मूल भावना को आत्मसात करते इस मोहल्ले के लोगों ने सालों पूर्व धर्म-भेद रूपी राक्षस का संहार कर दिया था। मिल्लत और भाईचारे का प्रतीक यह पवित्र स्थल समाज को कौमी एकता का संदेश देता है।
मंदिर के सामने दशहरे में पूजा पंडाल का निर्माण होता था। सत्तर के दशक में हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय ने चंदा इकट्ठा कर मंदिर बनवाया। इसी तरह कुछ साल पहले हुए मस्जिद निर्माण में भी दोनों समुदाय की एकजुटता दिखी।
गए माह संपन्न मुहर्रम के दौरान स्थानीय मुस्लिम युवाओं ने चंद्रयान का प्रतिरूप तैयार कर देश प्रेम का संदेश दिया था। अब वही प्रतिरूप दुर्गा पूजा पंडाल की झांकी बन वहां की शोभा बढ़ा रहा है। दुर्गा पूजा की सप्तमी को जिस जगह से मां दुर्गा की डोली निकलती है, वहां मुसलमान अल्लाह को याद कर समाज की सलामती की दुआ मांगते हैं।
दशकों से सांझी संस्कृति की परंपरा
पूजा समिति के अध्यक्ष सह पार्षद प्रतिनिधि अजय मोहन गुप्ता कहते हैं कि दशकों से यहां की सांझी संस्कृति की परंपरा चली आ रही है। कौमी एकता क्या होती है, यहां से सीखने की जरूरत है। दोनों धर्म और संप्रदाय के लोग एक-दूसरे के त्योहार में शरीक होते हैं। पूजा समिति सदस्य मो. मुश्ताक कहते हैं कि इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं। धर्म प्यार सिखाता है, नफरत नहीं। एक दूसरे के साथ त्योहारी खुशियां बांटने से प्यार बढ़ता है। आने वाली पीढिय़ां हमारी परंपरा को कायम रखेंगी।
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