मुजफ्फरपुर के पूर्व डीएम का दावा, यहां के अधिकारी से कर्मचारी तक सभी जमीन माफिया के सहयोगी
पदाधिकारी से लेकर कर्मी जमीन माफिया से मिलकर सरकारी जमीन की खरीद-बिक्री में लिप्त हैं। यहां तक कि कोर्ट में मामला जाने के बाद भी मजबूती से पक्ष नहीं रखा जा रहा। एक डीएम स्तर तक के पदाधिकारी का पत्र भी जिले के जमीन माफिया के आगे बौना हो गया।
मुजफ्फरपुर, प्रेम शंकर मिश्रा। एक पूर्व डीएम जिले से जा रहे थे तो कड़ा पत्र सरकार को लिखा था। इसमें कहा था कि उनके पदाधिकारी से लेकर कर्मी जमीन माफिया से मिलकर सरकारी जमीन की खरीद-बिक्री में लिप्त हैं। यहां तक कि कोर्ट में मामला जाने के बाद भी मजबूती से पक्ष नहीं रखा जा रहा। एक डीएम स्तर तक के पदाधिकारी का पत्र भी जिले के जमीन माफिया के आगे बौना हो गया। ऊपरी तौर पर कभी-कभी सख्ती दिख जाती है। मगर अंदर से खेल बदस्तूर जारी है। रोक के बाद भी पता नहीं कहां से सरकारी जमीन का निबंधन हो जाता। फिर जांच के नामपर एक जगह से दूसरी जगह फाइल जाने में काफी समय लग जाता। कहा यही जा रहा कि फाइल पर 'अधिक वजन' डाल दिए जाने से ही इसकी गति धीमी हो जाती है। यानी जमीन के साथ 'उनका' बिकना जारी है।
फर्जी कागजात से चल रहा काम
जिले में काम कराने की एक तकनीक तेजी से विकसित हो रही है। वह है फर्जी कागजात के सहारे काम निकालना। हत्या की सजा से बचने से लेकर राशि गबन करने व संपत्ति हड़पने तक का काम इस फर्जी कागजात से हो रहा। कर्मचारी से लेकर पदाधिकारी इसके झांसे में आ रहे। फोटो स्टेट कागजात को देखकर ही फंसे काम लोग धड़ल्ले से करा रहे। इसमें कुछ बाबुओं का दिमाग भी है। लोगों को बता दिया है जबतक शिकायत व जांच होगी जाली कागजात से काम हो जाएगा। जांच आएगी भी तो फाइल दबाने में उनका कोई मुकाबला कहां। वहीं पदाधिकारियों को भी इतनी फुर्सत कहां कि वे पड़ताल करते रहें। बस दान-दक्षिणा के साथ जाली कागजात लगाइए और काम पूरा। एक कुख्यात ने तो हत्या की सजा से बचने के लिए जाली प्रमाणपत्र कोर्ट में देकर खुद को बाल अपराधी घोषित करवा लिया।
हाथी के साथी तीर में गए तो हाथ वालों में बेचैनी
पिछले दिनों पटना में हाथी के एक साथी तीर वालों के साथ चले गए। इसके बाद से तरह-तरह की चर्चाएं राजनीति हलके में शुरू हो गई। जिले में भी हाथ वाले कुछ नेता बेचैन हैं। वर्षों बाद यहां उनका खाता खुला है। मगर जिन्होंने खाता खोला है उनकी नजदीकी तीर वालों के साथ पहले से रही है। मंत्रीमंडल के विस्तार की चर्चा के बाद से अलग-अलग निशाने पर तीर साधा जा रहा है। याद दिलाया जा रहा कि चुनाव के समय हाथ वालों ने दमखम नहीं लगाया था। यह तो अपना दम था कि सफलता मिल गई। कभी मंत्री पद का स्वाद नहीं चखा। राजनीति की यह शायद अंतिम पारी है। अब नहीं तो कभी नहीं। 'खिचड़ीÓ के बाद से ही राज्य की राजनीति में पक रही खिचड़ी का असर जिले में भी पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं।
पदाधिकारी को नहीं पहचान रहा उनका मोबाइल
यह शिकायत हमेशा रहती है कि मतदाता सूची में छपी तस्वीर को खुद मतदाता ही नहीं पहचान पाते। विभाग के पदाधिकारी को हमेशा इस शिकायत से दो-चार होना पड़ता है। मगर इस विभाग से जुड़े एक पदाधिकारी की शिकायत थोड़ी अलग है। पिछले दिनों धार्मिक कारणों से उन्हें क्लीन शेव होना पड़ा। इसके बाद से मोबाइल उनका चेहरा नहीं पहचान पा रहा। इससे उनकी परेशानी बढ़ गई है। क्योंकि शासन-प्रशासन के स्तर से कई मैसेज मोबाइल पर आते हैं। इसे देखने के लिए उन्हें फेस को कई बार मोबाइल के सामने रखना पड़ता है। तब जाकर किसी तरह मोबाइल खुलता है। यह समस्या उन्होंने कुछ लोगों के सामने रखी। हास्य के साथ व्यंग्य भी सामने आया। लोगों ने व्यंग्यबाण दागा, सर मतदाता पहचान पत्र में नाम किसी का और फोटो किसी और का लग जाता है। इस बहाने उनके दर्द को महसूस कीजिए।