Samastipur News: सरसों की खेतों को देख किसान खुश, पर हानिकारक कीट लगा रहे ग्रहण
Samastipur News कड़ाके की ठंड से खेतों में लगी सरसों की फसल को लाही का खतरा बढ़ गया है। दरअसल ठंड के बढ़ते प्रकोप से आमजन के साथ-साथ खेतों में लगी फसल को भी नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है।
By Murari KumarEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 12:24 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 12:24 PM (IST)
समस्तीपुर, जागरण संवाददाता। कड़ाके की ठंड से खेतों में लगी सरसों की फसल को लाही का खतरा बढ़ गया है। दरअसल ठंड के बढ़ते प्रकोप से आमजन के साथ-साथ खेतों में लगी फसल को भी नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है। खेत में लहलहाती सरसों की फसल पर ठंड में लाही का खतरा बढ़ गया है। जिला कृषि पदाधिकारी विकास कुमार ने बताया कि इस बार जिले में सरसों की खेती अच्छी हुई है। खेत में लहलहाती सरसों की फसल पर ठंड की वजह से लाही कीट का खतरा बढ़ गया है।
अगर समय रहते प्रबंधन नहीं किया गया तो इससे पैदावार काफी कम हो जाता है। सरसों में गलन रोग से तने का निचला भाग गल जाता है। पत्तियों पर इसके लक्षण कम होते हैं। जिसके कारण जब तक पूरा पौधा अंदर से पूरी तरह से गल न जाए तब तक इस रोग की पहचान संभव नहीं हो पाती है। अंदर ही अंदर तना गलने से पौधा मुरझा जाता है और अंत में सूख जाता है। जबतक मौसम में गर्मी रहती है तक तक तो फसल ठीक ठाक रहता है। इस समय सरसों के पीले फूलों से घिरे खेतों को देखकर किसान काफी खुश दिखाई दे रहे हैं। उनकी इस खुशी पर हानिकारक कीट ग्रहण लगा रहे हैं। जब से सर्दी का मौसम शुरू हुआ है तभी से वातावरण में नमी बढ़ गई है। ऐसे मौसम में लाही कीट का प्रकोप ज्यादा होता है। यह कीट सरसों के पौधे की पत्तियों और फूलों को चट कर जाता है।
जनवरी व फरवरी में काफी बढ़ जाता है कीट का प्रकोप
कृषि समन्वयक पंकज कुमार ने बताया कि राई व सरसों में लगने वाले प्रमुख कीट के प्रबंधन हेतु ध्यान रखना जरूरी है। लाही कीट सरसों का प्रमुख कीट है जिसके आक्रमण से 70 से 80 प्रतिशत तक क्षति होती है।कीट का आक्रमण आमतौर से मध्य दिसंबर के बाद शुरू होता है परंतु इनकी संख्या जनवरी व फरवरी में काफी बढ़ जाती है। राई व सरसों के फसल को काफी बर्बाद करने की स्थिति में आ जाती है।प्रायः आसमान में बादल छाये रहने, हल्की वर्षा होने तथा तापमन गिरने पर इनका आक्रमण निश्चित रूप से बढ़ जाता है। इस प्रकार के मौसम में तेज प्रजनन भी सहायक होता है। यह कीट जो पीला, हरा, काला या भूरा रंग का मुलायम पंख युक्त तथा पंख विहीन कीट होता है। इस कीट का शिशु एवं वयस्क दोनों मुलायम पत्तियों, टहनियों, तनो, फूलों तथा फलियों से रस चूसते हैं। लाही से आक्रांत पत्तियां मूड़ जाती है। फूलों पर आक्रमण की दशा में फलियां नहीं बनती है। यह मधु जैसा पदार्थ त्याग भी करता है। जिस पर काले फफूंद उग जाते है। इसके कारण पौधों की प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। इसके मादा बिना नर कीट से मिले शिशु कीट पैदा करती है। जो पांच से छह दिन में परिपक्व होकर प्रजनन शुरू कर देते है। इस प्रकार लाही कीट के आक्रमण की अधिकता होने पर पूरा पौधा ही लाही कीट से ढंका दिखाई देता है।
समेकित कीट का प्रबंधन जरूरी
- केवल अनुसंशित किस्मों की बुआई करें।
- फसल की बुआई समय पर करें (हथिया वर्षा के तुरंत बाद करें ताकी लाही के प्रकोप से फसल को बचा सकें)।
- जहां तक संभव हो बुआई कार्ये मध्य अक्टूबर तक अवशय कर लेना चाहिए।
- नेत्रजनीय उर्वरक का प्रयोग अनुसंशित मात्रा में ही करें।
- खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें।
क्षति कम करने का सुझाव
जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि लाही का प्रकोप अगर दिखाई देना शुरू हो जाए तो उसी समय उसे डंठल समेत तोड़कर एक पॉलीथिन के थैले में रखते जाए जिसे बाद में नष्ट कर देना चाहिए। ऐसा लगातार पांच-छह दिनों तक करने से फसल को कम से कम क्षति होने की संभावना रहती है। साथ ही छिड़काव के खर्च से भी बचा जा सकता है।
लेडी बर्ड बीटल भी लाही को समाप्त करने में कारगर
नीम अधारित कीटनाशी एजाडीरैक्टिन 1500 पीपीएम का पांच मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। कई बार लाही के साथ-साथ अच्छी संख्या में परजीवी कीट नजर आते है। आमतौर पर 'लेडी बर्ड बीटल' नामक भृंग जिनकी पीठ पर कई छोटे-छोटे काले धब्बे होते है जो लाही को खाते है।ऐसी स्थिति में किसानों को किसी प्रकार की दवा फसल पर व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं है। ये परभक्षी कीट स्वयं लाही को नियंत्रित कर देते है। अगर पराभक्षी कीट इत्यादि दिखाई न दें तभी रासायनिक दवा का छिड़काव करना चाहिए। इन सब उपायों से लाही कीट का प्रबंधन नहीं होता है तो अंत में रासायनिक दवा में इमिडाक्लोरोपीड 17.8 एमएसएल का एक एमएल प्रति तीन लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
खेतों को देख किसान खुश, पर हानिकारक कीट लगा रहे ग्रहण
इस संबंध में जानकारी देते हुये कृषि समन्वयक बताते हैं कि जब तक मौसम में गर्मी रहती है तक तक तो फसल ठीक-ठाक रहता है। लेकिन हाल के मौसम में सरसों के पीले फूलों से घिरे खेतों को देखकर किसान काफी खुश दिखाई दे रहे हैं। लेकिन किसानों की इस खुशी पर हानिकारक कीट ग्रहण लगा रहे हैं। किसान गौतम कुमार, मुख्तार झा, शुभम कुमार सहित दर्जनों किसानों का कहना है कि जब से सर्दी का मौसम शुरू हुआ है, तभी से वातावरण में नमी बढ़ गई है। ऐसे मौसम में लाही कीट का प्रकोप ज्यादा होता है। यह कीट सरसों के पौधे की पत्तियों और फूलों को चट कर जाता है।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें