दाम का फंसा पेच, गेहूं क्रय केंद्र नहीं पहुंचे किसान
सरकार की ओर से गेहूं क्रय करने के अभियान की समय सीमा समाप्त हो गई। लेकिन मात्र एक किसान ने ही सेंटर पर आकर गेहूं बेचा। 31 जुलाई तक सरकारी दर पर गेहूं क्रय करना था। जिस किसान ने अपना गेहूं बेचा उन्हें भुगतान कर दिया गया है।
मुजफ्फरपुर। सरकार की ओर से गेहूं क्रय करने के अभियान की समय सीमा समाप्त हो गई। लेकिन, मात्र एक किसान ने ही सेंटर पर आकर गेहूं बेचा। 31 जुलाई तक सरकारी दर पर गेहूं क्रय करना था। जिस किसान ने अपना गेहूं बेचा उन्हें भुगतान कर दिया गया है। जिला सहकारिता पदाधिकारी ललन कुमार शर्मा ने कहा कि गेहूं क्रय करने के लिए राशि की कमी नहीं थी। एक किसान ही गेहूं लेकर सेंटर पर आए। उनका भुगतान कर दिया गया। इससे जिले में तय लक्ष्य के मुताबिक गेहूं क्रय नहीं हो पाया।
नहीं पूरा हो पाया लक्ष्य : विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस बार जिला को-ऑपरेटिव विभाग की ओर 26 हजार टन का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन, मात्र चार टन ही खरीद हो पाई। विभाग की ओर से जिले में 120 सेंटर खोले गए थे। केवल एक ही जगह यानी मोतीपुर में ही किसान ने अपना गेहूं दिया। उसके बाद कहीं भी खरीद नहीं हो पाई। सरकारी स्तर पर क्रय शुरू होने के साथ बाजार दर ज्यादा हो गई। इससे लक्ष्य पूरा नहीं हुआ।
ज्यादा दाम पर व्यापारी खरीद रहे गेहूं : जानकारों की मानें तो सरकार की ओर से 1925 रुपये प्रति क्विंटल सरकारी रेट तय था। वहीं, बाजार में 2000 व उससे ज्यादा दाम पर व्यापारी गेहूं खरीदने लगे। इस पर किसानों ने अपनी उपज व्यापारियों के हाथ बेच दी। सेंटर पर किसानों के आने का इंतजार ही होता रहा।
कम खरीद से खाली रह गए गोदाम : बिहार राज्य खाद्य निगम की ओर से जिले में तीन जगहों पर गोदाम का प्रबंध किया गया। कांटी में पांच हजार टन का एक आधुनिक गोदाम के साथ गायघाट में दो एक-एक हजार टन तथा कुढ़ऩी में भी एक-एक हजार टन के गोदाम बनाए गए हैं। इनकी उपयोगिता धान व गेहूं क्रय के बाद रखने की है। लेकिन, लक्ष्य के अनुरूप गेहूं क्रय नहीं हो पाने से ये खाली रह गए। बिहार राज्य खाद्य निगम के अनुसार कांटी में गोदाम में गेहूं नहीं आने से अभी वहां पर चावल का स्टाक किया जा रहा है। धान के समय अच्छी क्रय हो जाती है।
कीमत को लेकर लक्ष्य नहीं हुआ पूरा : जिला सहकारिता पदाधिकारी ललन कुमार शर्मा ने कहा कि गेहूं की जितनी जरूरत उतना उत्पादन नहीं होता है। पिछले दस साल से यह ट्रेंड है कि लक्ष्य के मुताबिक खरीद नहीं हो पाती। वहीं, धान की खरीद हो जाती है। इस बार भी 26 हजार टन के बदले मात्र चार टन ही गेहूं क्रय हो पाया। इसका मुख्य कारण सरकार से ज्यादा गेहूं की कीमत व्यापारी किसानों के घर पर जाकर दे रहे हैं।
क्रय में पिछड़ने के ये रहे कारण
- किसान को गेहूं को सरकारी गोदाम तक अपने खर्च से लाना पड़ता है। व्यापारी उसके दरवाजे से गेहूं क्रय कर ले जाते हैं।
- गेहूं को सरकारी बिक्री केंद्र पर बेचने के लिए निबंधन कराना पड़ता है। वहीं, व्यापारी से बेचने के लिए किसी भी तरह के कागज के प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।
- सरकारी सेंटर पर बेचने के लिए गेहूं की क्वालिटी का होना जरूरी है। लेकिन, व्यापारी के यहां क्वालिटी का कोई झंझट नहीं। किसी भी तरह का गेहूं वह खरीद लेगा।