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सरकारी योजनाओं से वंचित होंगे फसल अवशेष जलाने वाले किसान, मॉनिटरिंग के लए बनाई गई टीम

पूर्वी चंपारण में फसल अवशेष जलाते हुए पकड़े जाने पर संबंधित किसान को सरकार की ओर से मिलने वाली कृषि योजनाओं के लाभ से वंचित होना होगा। साथ ही ऐसे किसानों का पंजीकरण भी तीन वर्ष तक के लिए डीबीटी पोर्टल के माध्यम से निलंबित कर दिया जाएगा।

By Vinay PankajEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 11:09 AM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 11:09 AM (IST)
सरकारी योजनाओं से वंचित होंगे फसल अवशेष जलाने वाले किसान, मॉनिटरिंग के लए बनाई गई टीम
कृषि विभाग ने फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए किसानों पर नजर रखनी शुरू कर दी है।

पूर्वी चंपारण, जेएनएन। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए देश के अन्य राज्यों की तरह सूबे की सरकार भी सजग हो चुकी है। वातावरण में फैल रहे प्रदूषण को कम करने के लिए राज्य सरकार ने आवश्यक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। जिले में फसल अवशेष जलाते हुए पकड़े जाने पर संबंधित किसान को सरकार की ओर से मिलने वाली कृषि योजनाओं के लाभ से वंचित होना होगा।

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साथ ही ऐसे किसानों का पंजीकरण भी तीन वर्ष तक के लिए डीबीटी पोर्टल के माध्यम से निलंबित कर दिया जाएगा। साथ ही इसकी सूचना किसान के निबंधित मोबाइल पर विभाग द्वारा दे दी जाएगी। जिला कृषि विभाग ने फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए किसानों पर नजर रखनी शुरू कर दी है।

इसके लिए कृषि समन्वयक, किसान सलाहकार और किसान संबंधित जनप्रतिनिधियों को अलर्ट किया जा चुका है। फिलहाल वैसे किसानों पर नजर रखने को कहा गया है, जो हार्वेस्टर से धान के फसल की कटनी करते हैं। हार्वेस्टर से फसल की कटनी करने वाले किसान यदि फसल अवशेष को जलाते हैं तो इसके लिए किसान सलाहकार को जवाबदेह मानते हुए कार्रवाई की जाएगी।

जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही थी। वहीं इससे मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी नष्ट होती है। इसके कारण सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया है। इसे सख्ती से पालन किया जाएगा।

फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान

फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की क्षति होती है। वही मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की क्षति, जमीन में पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं का सफाया हो जाता है। वही इसे जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।

खतरनाक समस्या साबित हो रहा फसल अवशेषों को जलाना

एक टन पुआल जलाने से तीन किलोग्राम पाॢटकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड, 199 किलोग्राम राख, 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड का नुकसान होता है। साथ ही इसे जलाने पर सांस लेने में समस्या, आंखों में जलन, नाक में समस्या, गले की समस्या लोगों में देखने को मिलेगी।

फसल अवशेष न जलाने के लिए किसानों को किया जाएगा जागरूक

हर हाल में किसानों को अवशेष जलाने से रोकना होगा। कहीं भी फसल अवशेष जलाने की शिकायत मिली तो पदाधिकारी से लेकर किसानों तक कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए किसानों को जागरूक करने पर जोर देते हुए कहा कि पंचायत के जन प्रतिनिधियों की उपस्थिति में किसान गोष्ठी का आयोजन कर किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी दी जाएगी। किसानों को उन्हेंं ऐसा करने पर होने वाली कार्रवाई से भी अवगत कराया जाएगा।

पंजीकृत किसान तीन वर्षो के लिए विभागीय लाभ से होंगे वंचित

ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत वैसे किसानों को ही वंचित किया जा सकता है जो कृषि विभाग के डीबीटी पोर्टल पर पंजीकृत है। यह प्रक्रिया कृषि समन्वयक स्तर से शुरू होगी। फसल अवशेष जलाने वाले किसान को चिन्हित कर योजनाओं से किसान को वंचित करने के लिए लिंक दिया गया है। इसमें कृषि समन्वयक जलाये गए फसल के नाम का चयन, कुल रकवा डिसमिल में, जलाने की तिथि, जलाये गए फसल अवशेष की तस्वीर, आसपास के किसानों के नंबर, कृषि समन्वयक की घोषणा के बाद सौंपा जाएगा। इसके बाद जिला कृषि पदाधिकारी से होते हुए यह आवेदन डीबीटी के नोडल अधिकारी के पास पहुंचेगा। जहां ऑनलाइन स्वीकृति के बाद चिन्हित किसान को तीन वर्षो के लिए बाध्य कर दिया जाएगा। ऐसे किसानों को विभाग की किसी तरह की योजना का लाभ नहीं मिल सकेगा। इसकी सूचना किसानों को उनके निबंधित मोबाइल नंबर पर भी दी जाएगी।

फसल अवशेष के खेत में प्रयोग से बढ़ेगी मिट्टी की उपज क्षमता

कृषि विज्ञान केंद्र पीपराकोठी के वैज्ञानिक डॉ. अरविंद कुमार की माने तो फसल अवशेषों का सही प्रबंध करने से ही जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा में वृद्धि कर खेतों को खेती योग्य सुरक्षित रखा जा सकता हैं। अवशेषों का उचित प्रबंध करने के लिए जरुरी है कि अवशेष को खेत में ही प्रयोग किया जाए। बताया कि किसान जब खरीफ, रबी और जायद फसलों की कटाई, मड़ाई करते हैं तो जड़, तना और पत्तियों के रूपों में पादप अवशेष भूमि के अंदर व ऊपर उपलब्ध होते हैं। लगभग 25 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी पलटने वाले हल या रोटावेटर से जुताई करके पलेवा के समय मिला देने से अवशेष बीस से तीस दिन में जमीन में सड़ जाते हैं। जिससे मृदा में कार्बनिक पदार्थों व अन्य तत्वों की वृद्धि हो जाती है। इससे फसलों का उत्पादन भी बढ़ जाता है। 


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