बिहार में AES से 55 बच्चों की मौत, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने मांगी रिपोर्ट; जानिए बीमारी के लक्षण व बचाव
उत्तर बिहार में हर साल गर्मी के मौसम में एईएस से बच्चों की मौत होती रही है। इस साल भी अब तक 55 बच्चों की मौत हो चुकी है। इस बीमारी की पूरी जानकारी के लिए पढ़ें खबर।
By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 10 Jun 2019 07:03 PM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 10:55 PM (IST)
पटना/ मुजफ्फरपुर [जागरण टीम]। इसे एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रॉम) या इंसेफेलौपैथी कहें, चमकी बुखार कहें या कोई और नाम दें, हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों में उत्तर बिहार में बच्चों की बड़े पैमाने पर मौत का कहर गहराता जा रहा है। अब तक 55 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि 119 भर्ती हैं। बीते तीन दिनों की बात करें तो कुल 33 बच्चों की मौत हुई है। उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) में बीमार बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। वायरस जनित यह बीमारी मच्छरों के माध्यम से फैलती है। इससे बचाव के लिए टीका उपलब्ध है।
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एसकेएमसीएच प्रशासन से बीमारी के संबंध में रिपोर्ट मांगी है। वहीं केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि चुनाव में अधिकारियों के फंसे रहने के कारण ध्यान नहीं दिया जा सका। लेकिन अब सरकार ध्यान दे रही है। उधर, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगलवार पांडेय ने मौतों को एईएस के कारण होने से इनकार किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने माना कि जागरूकता की कमी के कारण बीमारी बढ़ गई है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की मौत काफी तकलीफदेह है।
अब तक 55 बच्चों की मौत
उत्तर बिहार में एईएस का कहर लगातार गहराता जा रहा है। मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में एईएस के मिलते-जुलते लक्षणों वाले बच्चों के आने का क्रम जारी है। इस सीजन में अब तक 55 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि 119 भर्ती हैं।
बीते तीन दिनों की बात करें तो कुल 33 बच्चों की मौत हुई है। रविवार को इस बीमारी से चार, तो सोमवार को 24 बच्चों की मौत हुई थी। मंगलवार को एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में अभी तक पांच बच्चों की जान गई है। जबकि, तीन दर्जन से अधिक इलाज के लिए पहुंचे हैं। इनमें से एक दर्जन से अधिक की हालत गंभीर बनी हुई है।
अलर्ट मोड में अस्पताल, बच्चों की भी निगरानी
बीमारी की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल अलर्ट मोड में हैं। वहां जरूरी सुविधाओं के साथ डॉक्टरों की रोस्टर ड्यूटी तय कर दी गई है। आशा, आंगनबाड़ी सेविका व एएनएम की जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है। एईएस से बचाव के लिए आशा, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका एवं एएनएम को अपने पोषण क्षेत्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर निगरानी रखनी है। उन्हें बच्चों को जल्द से जल्द प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेजने में मदद करनी है। वे माता-पिता एवं परिजनों को इस बीमारी के लक्षणों व बचाव की भी जानकारी देंगी।
लोगों को जागरूक करेगा प्रशासन
एईस के फैलाव को रोकने के लिए मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन की ओर से व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। बीमारी के लक्षणों व उससे बचाव की जानकारी होर्डिंग व हैंडबिल तथा अन्य माध्यमों से आम लोगों तक पहुंचाई जाएगी।
जानिए बीमारी के लक्षण
एईएस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसमें दिमाग में ज्वर, सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होतीं हैं। शरीर निर्बल हो जाता है। बच्चा प्रकाश से डरता है। कुछ बच्चों में गर्दन में जकड़न आ जाती है। यहां तक कि लकवा भी हो सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी में बच्चों के शरीर में शर्करा की भी बेहद कमी हो जाती है। बच्चे समय पर खाना नहीं खाते हैं तो भी शरीर में चीनी की कमी होने लगती है। जब तक पता चले, देर हो जाती है। इससे रोगी की स्थिति बिगड़ जाती है।
वायरस से होता राग, ऐसे करें बचाव
यह रोग एक प्रकार के विषाणु (वायरस) से होता है। इस रोग का वाहक मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो विषाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। बच्चे के शरीर में रोग के लक्षण चार से 14 दिनों में दिखने लगते हैं। मच्छरों से बचाव कर व टीकाकरण से इस बीमारी से बचा जा सकता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने मांगी रिपोर्ट
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंत्री हर्षवर्धन ने उत्तर बिहार में इस बीमारी से बच्चों की मौत का संज्ञान लिया है। उन्होंने एसकेएमसीएच प्रशसन से बीमारी के संबंध में रिपोर्ट मांगी है। इसके पहले वर्ष 2014 में भी तत्कालीन केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने मुजफ्फरपुर का दौरा किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी वहां गए थे।
बीमारी को ले नीतीश कुमार ने कही ये बात
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को कहा कि उत्तर बिहार में फैली यह बीमारी जापानी इंसेफेलाइटिस नहीं, यह दूसरी इंसेफेलाइटिस है। मुजफ्फरपुर में यह पहले भी हो चुका है और सरकार ने पहले भी इसपर काम किया है। इस साल भी बीमारी के इलाज को लेकर सरकार गंभीर है। स्वास्थ्य विभाग इस मामले पर नजर रख रहा है। शायद जागरुकता की कमी के कारण यह फिर से फैला है। लोगों को इस बीमारी को लेकर जागरूक करना होगा।
मंगल पांडेय बोले: इंसेफेलाइटिस नहीं हाइपोग्लाइसेमिया से हुई मौत
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री ने बीमारी को इंसेफेलाइटिस मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि अब तक 11 बच्चों की मौत हुई है, जिनमें 10 कर मौत का कारण 'हाइपोग्लाइसेमिया' (शरीर में शर्करा की अचानक अत्यधिक कमी) था। हालांकि, उन्होंने माना कि एक बच्चे की मौत जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) से हुई है। मंगल पांडेय के अनुसार जेई के दो मामले मिले थे, जिनमें एक बच्चे की मौत हो गई।
नगर विकास व आवास मंत्री ने लिया बच्चों का हाल
सोमवार को नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश शर्मा ने एसकेएमसीएच पहुंचकर बच्चों का हाल जाना। उन्होंने अस्पताल अधीक्षक व वरीय चिकित्सकों से इलाज की व्यवस्था की जानकारी ली।
10 सालों में 350 से अधिक बच्चों की मौत
विदित हो कि पिछले 10 सालों के दौरान उत्तर बिहार के साढ़े तीन सौ से अधिक बच्चों की मौत एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रॉम) या इंसेफेलौपैथी से हो गई है। वर्ष 2012 व 2014 में इस बीमारी के कहर से मासूमों की ऐसी चीख निकली कि इसकी गूंज पटना से लेकर दिल्ली तक पहुंची थी। बेहतर इलाज के साथ बच्चों को यहां से दिल्ली ले जाने के लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था करने का वादा भी किया गया। मगर, पिछले दो-तीन वर्षों में बीमारी का असर कम होने पर यह वादा हवा-हवाई ही रह गया। पर इस वर्ष बीमारी अपना रौद्र रूप दिखा रही है।
बीमार बच्चों के लिए एंबुलेंस तक नहीं
इस बीमारी से पीडि़त बच्चों के बचने की संभावना इलाज शुरू होने के समय पर निर्भर करती है। जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा, बचने की संभावना उतनी अधिक होगी। इसके बावजूद बीमार बच्चों के लिए एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। कहां तो एयर एंबुलेंस की बात थी, लेकिन बीमार बच्चों के लिए सामान्य एंबुलेंस तक नहीं मिल रहे है। मुजफ्फरपुर के डीपीएम बीपी वर्मा बताते हैं कि एईएस पीडि़त बच्चों के लिए अलग से एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं है। डीपीएम कहते हैं कि राज्य स्वास्थ्य समिति ही यह व्यवस्था कर सकती है। बीमार बच्चों के लिए एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं होने से इलाज की मुकम्मल व्यवस्था की पोल भी खुलती दिख रही है।
वर्षवार एईएस से मौत, एक नजर
2010: 24
2011: 45
2012: 120
2013: 39
2014: 86
2015: 11
2016: 04
2017: 04
2018: 11
2019: 55*
(*अब तक)
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एसकेएमसीएच प्रशासन से बीमारी के संबंध में रिपोर्ट मांगी है। वहीं केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि चुनाव में अधिकारियों के फंसे रहने के कारण ध्यान नहीं दिया जा सका। लेकिन अब सरकार ध्यान दे रही है। उधर, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगलवार पांडेय ने मौतों को एईएस के कारण होने से इनकार किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने माना कि जागरूकता की कमी के कारण बीमारी बढ़ गई है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की मौत काफी तकलीफदेह है।
अब तक 55 बच्चों की मौत
उत्तर बिहार में एईएस का कहर लगातार गहराता जा रहा है। मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में एईएस के मिलते-जुलते लक्षणों वाले बच्चों के आने का क्रम जारी है। इस सीजन में अब तक 55 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि 119 भर्ती हैं।
बीते तीन दिनों की बात करें तो कुल 33 बच्चों की मौत हुई है। रविवार को इस बीमारी से चार, तो सोमवार को 24 बच्चों की मौत हुई थी। मंगलवार को एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में अभी तक पांच बच्चों की जान गई है। जबकि, तीन दर्जन से अधिक इलाज के लिए पहुंचे हैं। इनमें से एक दर्जन से अधिक की हालत गंभीर बनी हुई है।
अलर्ट मोड में अस्पताल, बच्चों की भी निगरानी
बीमारी की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल अलर्ट मोड में हैं। वहां जरूरी सुविधाओं के साथ डॉक्टरों की रोस्टर ड्यूटी तय कर दी गई है। आशा, आंगनबाड़ी सेविका व एएनएम की जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है। एईएस से बचाव के लिए आशा, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका एवं एएनएम को अपने पोषण क्षेत्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर निगरानी रखनी है। उन्हें बच्चों को जल्द से जल्द प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेजने में मदद करनी है। वे माता-पिता एवं परिजनों को इस बीमारी के लक्षणों व बचाव की भी जानकारी देंगी।
लोगों को जागरूक करेगा प्रशासन
एईस के फैलाव को रोकने के लिए मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन की ओर से व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। बीमारी के लक्षणों व उससे बचाव की जानकारी होर्डिंग व हैंडबिल तथा अन्य माध्यमों से आम लोगों तक पहुंचाई जाएगी।
जानिए बीमारी के लक्षण
एईएस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसमें दिमाग में ज्वर, सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होतीं हैं। शरीर निर्बल हो जाता है। बच्चा प्रकाश से डरता है। कुछ बच्चों में गर्दन में जकड़न आ जाती है। यहां तक कि लकवा भी हो सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी में बच्चों के शरीर में शर्करा की भी बेहद कमी हो जाती है। बच्चे समय पर खाना नहीं खाते हैं तो भी शरीर में चीनी की कमी होने लगती है। जब तक पता चले, देर हो जाती है। इससे रोगी की स्थिति बिगड़ जाती है।
वायरस से होता राग, ऐसे करें बचाव
यह रोग एक प्रकार के विषाणु (वायरस) से होता है। इस रोग का वाहक मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो विषाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। बच्चे के शरीर में रोग के लक्षण चार से 14 दिनों में दिखने लगते हैं। मच्छरों से बचाव कर व टीकाकरण से इस बीमारी से बचा जा सकता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने मांगी रिपोर्ट
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंत्री हर्षवर्धन ने उत्तर बिहार में इस बीमारी से बच्चों की मौत का संज्ञान लिया है। उन्होंने एसकेएमसीएच प्रशसन से बीमारी के संबंध में रिपोर्ट मांगी है। इसके पहले वर्ष 2014 में भी तत्कालीन केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने मुजफ्फरपुर का दौरा किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी वहां गए थे।
बीमारी को ले नीतीश कुमार ने कही ये बात
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को कहा कि उत्तर बिहार में फैली यह बीमारी जापानी इंसेफेलाइटिस नहीं, यह दूसरी इंसेफेलाइटिस है। मुजफ्फरपुर में यह पहले भी हो चुका है और सरकार ने पहले भी इसपर काम किया है। इस साल भी बीमारी के इलाज को लेकर सरकार गंभीर है। स्वास्थ्य विभाग इस मामले पर नजर रख रहा है। शायद जागरुकता की कमी के कारण यह फिर से फैला है। लोगों को इस बीमारी को लेकर जागरूक करना होगा।
मंगल पांडेय बोले: इंसेफेलाइटिस नहीं हाइपोग्लाइसेमिया से हुई मौत
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री ने बीमारी को इंसेफेलाइटिस मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि अब तक 11 बच्चों की मौत हुई है, जिनमें 10 कर मौत का कारण 'हाइपोग्लाइसेमिया' (शरीर में शर्करा की अचानक अत्यधिक कमी) था। हालांकि, उन्होंने माना कि एक बच्चे की मौत जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) से हुई है। मंगल पांडेय के अनुसार जेई के दो मामले मिले थे, जिनमें एक बच्चे की मौत हो गई।
नगर विकास व आवास मंत्री ने लिया बच्चों का हाल
सोमवार को नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश शर्मा ने एसकेएमसीएच पहुंचकर बच्चों का हाल जाना। उन्होंने अस्पताल अधीक्षक व वरीय चिकित्सकों से इलाज की व्यवस्था की जानकारी ली।
10 सालों में 350 से अधिक बच्चों की मौत
विदित हो कि पिछले 10 सालों के दौरान उत्तर बिहार के साढ़े तीन सौ से अधिक बच्चों की मौत एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रॉम) या इंसेफेलौपैथी से हो गई है। वर्ष 2012 व 2014 में इस बीमारी के कहर से मासूमों की ऐसी चीख निकली कि इसकी गूंज पटना से लेकर दिल्ली तक पहुंची थी। बेहतर इलाज के साथ बच्चों को यहां से दिल्ली ले जाने के लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था करने का वादा भी किया गया। मगर, पिछले दो-तीन वर्षों में बीमारी का असर कम होने पर यह वादा हवा-हवाई ही रह गया। पर इस वर्ष बीमारी अपना रौद्र रूप दिखा रही है।
बीमार बच्चों के लिए एंबुलेंस तक नहीं
इस बीमारी से पीडि़त बच्चों के बचने की संभावना इलाज शुरू होने के समय पर निर्भर करती है। जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा, बचने की संभावना उतनी अधिक होगी। इसके बावजूद बीमार बच्चों के लिए एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। कहां तो एयर एंबुलेंस की बात थी, लेकिन बीमार बच्चों के लिए सामान्य एंबुलेंस तक नहीं मिल रहे है। मुजफ्फरपुर के डीपीएम बीपी वर्मा बताते हैं कि एईएस पीडि़त बच्चों के लिए अलग से एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं है। डीपीएम कहते हैं कि राज्य स्वास्थ्य समिति ही यह व्यवस्था कर सकती है। बीमार बच्चों के लिए एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं होने से इलाज की मुकम्मल व्यवस्था की पोल भी खुलती दिख रही है।
वर्षवार एईएस से मौत, एक नजर
2010: 24
2011: 45
2012: 120
2013: 39
2014: 86
2015: 11
2016: 04
2017: 04
2018: 11
2019: 55*
(*अब तक)
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