West Champaran News: दर्जनों गांवों से होकर गुजरने वाली पंडई नाला पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा
West Champaran News पंडई नाला एक समय नदी के रूप में था। यह करताहां नदी का छाडन बताया जाता है। आज नाला को पूर्णतः बंद करने से बाढ़ के पानी निकलने की समस्या विकराल हो गई है। इसका परिणाम बरसात के दिनों में देखने को मिलता है।
पश्चिम चंपारण, जेएनएन। सरकार की जल संरक्षण को लेकर काफी चिंतित है। इसके संचय को लेकर प्रतिवर्ष करोडों रुपये बहाए जाते है। लोगों को अपने निजी खेतों में तलाबों के निर्माण कराये जा रहे है। जिसके खर्च सरकार वहन करती है। ये मनरेगा के माध्यम से हो रहे है। किसान इसमें अपना खास लाभ देखकर तलाब की खोदाई करा रहे है। जिससे खेतों की सिचाई भी हो सकेंगी। वही मछली पालन कर अतिरिक्त कमाई भी हो जायेगी। जबकि सरकारी भूमि पर पानी संचय के पहले से साधन उपलब्ध है। उसी में से एक पंडई नाला भी है
पंडई नाला करीब बीस किलोमीटर में फैली थी
पंडई नाला एक समय नदी के रूप में था। यह करताहां नदी का छाडन बताया जाता है। इसकी चौड़ाई औसतन एक सौ गज की हुआ करती थी। गहराई भी कम नही थी। यह धनकुटवा पंचायत के लखौरा के उत्तर से निकलकर धनकुटवा, गौचरी, झखरा बैशखवा, सरगटिया, जगन्नाथपुर व पुरैना पंचायत के दर्जनों गांवों को सम्पर्क में लेते हुए बहती थी। यह लगभग प्रत्येक गांवों के बगल से बहते हुए पुरैना पंचायत के सनवर्षा के पास सिकरहना में समाहित हो जाती थी।
दर्जनों गांवों के हजारों हेक्टेयर भूमि की होती थी सिंचाई
इस नाले की गहराई और चौडाई अधिक होने से किसानों को वर्षा होने या नही होने का चिंता नहीं रहती थी। इसी के पानी से धान व रबी फसलों की सिचाई ससमय हो जाती थी। अंतर सिर्फ इतना होता था कि पहले के जमाने में किसान पनदौरी या फिर इधर के समय में पम्पसेट से खेतों की सिंचाई आसानी से कर लेते थे।
सरकार को प्रत्येक वर्ष होता था लाखों रुपये राजस्व की प्राप्ति
इस नाला से हर साल सरकार को लाखों रुपये राजस्व की प्राप्ति होती थी। इसमें बड़े बड़े गड्ढे हुआ करते थे। जिसमें भारी मात्रा में बाढ में आई मछलियाँ ठहरती थी। जिसे मतस्य विभाग डाक कर राजस्व की वसूली करता था।
अंचल कार्यालय ने कर दिया बंदोबस्त
पहले पंडई के आस पास के किसान इसे अतिक्रमण करना आरम्भ किये। बावजूद नाला का तिहाई चौथाई हिस्सा पानी बहाव के लिए बचा था। इसे अंचल प्रशासन मृत दिखाकर चंद लोगों के नाम से बंदोबस्त कर दिया। जिसे बंदोबस्त धारी नाला के पहले अतिक्रमित भूमि समेत शेष नाले को मिट्टी डालकर पूर्णतः बंद कर दिये।
पानी निकलने की बडी समस्या
नाला को पूर्णतः बंद करने से बाढ़ के पानी निकलने की समस्या विकराल हो गई है। इसका परिणाम बरसात के दिनों में देखने को मिलता है। बहतर की भूमि पर धान व रबी के फसल लहलहा रहे है। वही अपने पुस्तैनी जमीन जोतने वालों के खेतों के फसल पानी के समुचित निकासी के अभाव में सड़ गलकर बर्बाद हो रहे है।अवसानपुर के शीतल साह, नीरज सिंह, गणेशपुर के अवधकिशोर दुबे, बैशखवा के सुरेश प्रसाद गुप्ता, प्रमोद सिंह, डकही के गोविंद साह, शम्भू साह, सरगटिया के राजीव पाण्डेय, धन्नजय सिंह, रामजी साह, जगन्नाथपुर के अजय यादव, चितरंजन गिरी आदि ने कहा कि सरकार अपनी पैसे से पानी संचय व सिंचाई के लिए तलाबों को खोदवा रही है। जबकि नदी नगलों की पूर्वत सफाई करने से सिंचाई की समस्या व पानी संचय का प्रबंध का स्थाई समाधान हो सकता है।
अ़चल अधिकारी मनीष कुमार ने कहा कि नदी नालों का बंदोबस्त बहुत पहले हुआ है। इसे किस स्थिति में बंदोबस्त कर सिंचाई के साधनों को समाप्त कर दिया गया। यह मेरे कार्यकाल से पहले की बात है।