अंकों से न हो मेधा का आकलन, परीक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत
परीक्षा में अधिक अंक पाने वालों को ही श्रेष्ठ मानने की समाज में गलत परंपरा। कम अंक लाने वाले छात्रों के लिए भी कम नहीं अवसर। कई राहें कर रहीं इंतजार।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। प्रतिस्पर्धा ने शिक्षा के मूल स्वरूप को चोट पहुंचाई है। वर्तमान परीक्षा तंत्र और अंक पाने की आपाधापी में शिक्षा तंत्र बदलता जा रहा है। नतीजा यह हुआ कि परीक्षा में अधिक अंक पाने वालों को ही श्रेष्ठ मानने की होड़ लग गई है। जबकि यह जरूरी नहीं कि अच्छे अंक पाने वाले ही जीवन में कुछ बेहतर करेंगे। ये बातें 'कैसे बचें स्कूली परीक्षाओं में अंकों की होड़ से' विषय पर आयोजित 'जागरण विमर्श' में शिक्षक हरिभूषण सिंह ने कहीं। वे ब्रह्मर्षि यमुना बालिका उच्च विद्यालय फतेहाबाद, पारू में प्रभारी प्रधानाध्यापक हैं।
उन्होंने कहा कि कोई छात्र बहुत प्रतिभाशाली है, दुर्भाग्य से परीक्षा में आए सवाल वह ठीक से नहीं कर पाया और उसके कम अंक आए। ऐसे में उसकी प्रतिभा खत्म नहीं हो जाती। जब कभी खुद को साबित करने का मौका आएगा तो वह पीछे नहीं हटेगा। ऐसे में यह जरूरी सवाल है कि आखिर छात्र अंकों की इस रेस में शामिल होने को क्यों विवश हो रहे? स्कूली शिक्षा को सीखने-सिखाने और ज्ञान आधारित शिक्षा में कैसे तब्दील किया जाए?
नंबर गेम में न पड़ें, महान हस्तियों से लें सीख
नंबर की इस रेस के बीच लोग भूल रहे हैं कि जिंदगी में कुछ कमाल करने के लिए अलग हुनर की भी अहमियत होती है। कई बार हुनरमंद इसमें काफी आगे निकल जाते हैं। क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, देश के प्रथम नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर जैसी महान हस्तियों को परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर नहीं आए थे। अगर, परीक्षा के नंबर मायने रखता तो थॉमस एडिशन जैसे वैज्ञानिक पैदा नहीं होते। उन्हें अच्छे अंक नहीं लाने की वजह से विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था।
माता-पिता से उचित प्रोत्साहन पाकर उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे आज दुनिया रोशन है। ऐसे लोगों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। इन लोगों से अभिभावकों और छात्रों को सीख लेने और प्रेरित होने की जरूरत है। जो बच्चे किसी भी कारण से अच्छे नंबर नहीं ला पाए, उन्हें मायूस होने की जरूरत नहीं हैं। तमाम नई राहें उनकी प्रतिभा की बाट जोह रही हैं। नंबर गेम को यहीं छोड़कर जिंदगी की राह में आगे बढ़ जाने में ही समझदारी है।
स्वाभाविक मेधा से परिचित होकर करें मूल्यांकन
आज की परीक्षा प्रणाली एक वर्ष में सिखाई गई छात्र की याद करने की क्षमता का मूल्यांकन है। इसे तीन घंटे के अंतराल में कुछ प्रश्नों के उत्तर देने की प्रणाली के माध्यम से परीक्षण किया जाता है। हमें व्यापक मूल्यांकन की ओर बढऩे की जरूरत है। छात्रों का व्यापक मूल्यांकन स्कूल पाठ्यक्रम और प्रैक्टिकल, जीवन कौशल की दक्षता, व्यक्तिगत क्षमताओं, विशेष रुचियों, सामुदायिक कार्य और सामाजिक प्रभाव पर आधारित होना चाहिए।
बच्चों के स्वाभाविक मेधा से अभिभावकों को परिचित होना चाहिए। यद्यपि परीक्षाओं में मानसिक बुद्धि जांच हेतु प्रश्न दिए जाते हैं, परंतु उनका प्रतिशत कम होता है। जिससे सही मूल्यांकन नहीं हो पाता। अत: स्कूल में मानसिक स्तर जांच हेतु दिए गए प्रश्नों का प्रतिशत अधिक होना चाहिए। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को प्रोत्साहित करें।
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