पर्यावरण के साथ ही सेहत का भीे नुकसान पहुंचा रहा ई-कचरा, शहर के लिए गंभीर समस्या बन कर उभर रहा
निष्पादन में अक्षम नगर निगम प्रदूषण नियंत्रण पर्षद भी बेपरवाह। शहर से बड़ी मात्रा में यह निकल रहा है। लेकिन नगर निगम के पास ई-वेस्ट के निष्पादन रीसाइक्लिंग की व्यवस्था नहीं है।सामान्य कूड़े के साथ ही इसे शहर में यत्र-तत्र डंप किया जा रहा है।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। ई-कचरा यानि इलेक्ट्रॉनिक कचरा पर्यावरण के साथ लोगों की सेहत को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह शहर के लिए बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। शहरवासी सामान्य कचरे एवं बायो मेडिकल वेस्ट से उबर नहीं पाए थे कि अब ई-कचरा उनकी परेशानी का सबब बन गया है। शहर से बड़ी मात्रा में यह निकल रहा है। लेकिन नगर निगम के पास ई-वेस्ट के निष्पादन, रीसाइक्लिंग की व्यवस्था नहीं है। सामान्य कूड़े के साथ ही इसे शहर में यत्र-तत्र डंप किया जा रहा है। इससे उत्पन्न खतरे से शहरवासी भी अनभिज्ञ हैं। जबकि यह न सिर्फ हवा में जहर घोल रहा है बल्कि लोगों को बीमार भी कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण को अभियान चला रही संस्था 'ऑक्सीजनÓ के सह संयोजक भारत कुमार साहु कहते हैं कि अब जरूरत है इस इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण से बचाव की।
इस प्रकार पहुंचाता है नुकसान
- इलेक्ट्रॉनिक कूड़ा पीने के पानी को विषाक्त करने के साथ लोगों की सेहत पर बुरा असर डालता है। इसके असर से बच्चों में जन्मजात विकलांगता आती है।
- मछलियों से लेकर वन्य-जीवों तक पर इसका बुरा प्रभाव होता है।
- इससे गर्भपात और कैंसर का खतरा पैदा होता है।
- कंप्यूटरों में आमतौर पर तांबा, इस्पात, अल्युमिनियम, पीतल, सीसा, कैडमियम तथा चांदी के अलावा कांच और प्लास्टिक वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।
- इनसे क्लोरीन एवं ब्रोमीन युक्त पदार्थ, विषैली गैसें, फोटो एक्टिव और जैविक सक्रियता वाले पदार्थ अम्ल और प्लास्टिक आदि होता है।
लोगों की सेहत से खिलवाड़
शहरों में कबाड़ी ई-कचरे को खरीदते है। वे इस कचरे में से मतलब की वस्तुओं को निकालकर खतरनाक अपशिष्ट को खुले में फेंक देते हैं। इनमें से निकलने वाले हानिकारक रेडिएशन लोगों के जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं। बिहार राज्य प्रदूषण बोर्ड भी अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा रहा है।
हवा, मिट्टी एवं भूमिगत जल में जहर घोल रहा ई-कचरा
चिकित्सक डॉ. अरविंद कुमार के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक चीजों को बनाने के उपयोग में आने वाली सामग्री में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमनी, आर्सेनिक, बेरिलियम, मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। इनमें से काफी चीजें तो रिसाइकल करने वाली कंपनियां ले जाती हैं, लेकिन कुछ चीजें नगर निगम के कचरे में चली जाती हैं। वे हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर जहर का काम करती हैं। कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं। कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। पर्यावरण में असावधानी व लापरवाही से इस कचरे को फेंका जाता है, तो इनसे निकलने वाले रेडिएशन शरीर के लिए घातक होते हैं। इनके प्रभाव से तंत्रिका व स्नायु तंत्र पर भी असर होता है। जरूरत है सख्त कानून बनाने और उतनी ही सख्ती से पालन कराने की।