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Muzaffarpur: कोरोना काल में कीमत ने कायम रखी शहद की मिठास, कंपनियों ने बड़ी मात्रा में की खरीदारी

Muzaffarpur News मुजफ्फरपुर में लीची की फसल कम होने से शहद का उत्पादन हो गया आधा दोगुनी कीमत ने की भरपाई। कंपनियों ने बड़ी मात्रा में की खरीदारी उत्पादकों को मिली संजीवनी इम्यूनिटी बढ़ाने को लोग कर रहे इस्तेमाल।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 08:21 AM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 08:21 AM (IST)
Muzaffarpur: कोरोना काल में कीमत ने कायम रखी शहद की मिठास, कंपनियों ने बड़ी मात्रा में की खरीदारी
कोरोना काल में कीमत ने कायम रखी शहद की मिठास।

[प्रेम शंकर मिश्रा], मुजफ्फरपुर। हर वर्ष बसंत में शाही लीची के पेड़ों में लगे मंजरों की सोंधी महक किसानों और मधुमक्खी पालकों में आशा का संचार पैदा करती है। कारण अच्छे मंजर से बेहतर फसल की उम्मीद के साथ मधुमक्खी पालक शहद के भरपूर उत्पादन को लेकर उत्साहित रहते हैं, मगर शाही लीची में इस बार काफी कम मंजर आए थे। साथ ही लगातार पछिया हवा से मंजर सूख गए। परिणाम शहद का उत्पादन पूर्व के वर्षों की तुलना में आधा हो गया। इससे पालकों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई, मगर इन्हें राहत मिली शहद की बढ़ी कीमत से। कोरोना काल को देखते हुए देश की कई कंपनियों ने इसकी भरपूर खरीदारी की। कम उत्पादन के कारण मांग बढ़ी तो कीमत भी दोगुनी से अधिक हो गई। 

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 बिहार मधुमक्खी पालक संघ के अध्यक्ष दिलीप कुशवाहा कहते हैं, जिले में करीब 12 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। पिछले साल लीची से करीब तीन हजार टन शहद का उत्पादन हुआ था। इस वर्ष यह घटकर करीब डेढ़ हजार टन हो गया। बेहतर मंजर होने से 10 से 15 दिनों में शहद का बक्सा भर जाता है। इससे एक सीजन में दो बार शहर निकल जाता है। इस बार बमुश्किल एक बार शहद निकाला जा सका। इसका उत्पादन पर असर पड़ा। गनीमत रही कि इसबार कंपनियां शहद खरीदने को लेकर उत्साहित रहीं। तीन बड़ी कंपनियों ने भरपूर खरीदारी की। वह इसलिए कि शहद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तत्व हैं। कोरोना काल में इसकी बिक्री अधिक हो रही है। कंपनियों ने 135 से 140 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदारी की। पिछले वर्ष बमुश्किल 70 से 75 रुपये प्रति किलो मिले थे। वहीं जितने शहद का उत्पादन होता था, उसकी बिक्री नहीं हो पाती थी। प्रोसेङ्क्षसग नहीं होने से वह खराब हो जाता था। करीब 25 फीसद शहद की बिक्री पर संकट रहता था। इसबार अभी तक 80 से 85 फीसद शहद बिक गया है। शेष स्थानीय बाजार में बिक जाएगा। 

दूसरे शहर और राज्य की पकड़ी राह

जिले के करीब 10 से 12 हजार परिवार मधुमक्खी पालन से जुड़े हैं। लीची और सरसों से शहद उत्पादन के बाद यहां के पालकों ने अब दूसरे राज्य और शहर की राह पकड़ ली है। बिहार के पूर्णिया, बिहारशरीफ में वे अब सूरजमुखी से शहद का उत्पादन करेंगे। वहीं झारखंड के गुमला में करंज से शहद का उत्पादन करेंगे। इसके अलावा मधुबनी के साहरघाट में गेहूं की कटी फसल वाले खेत में उगे बनचैती (लाल घास) से शहद का उत्पादन होगा। इसके बाद वे अक्टूबर में यूपी चले जाएंगे। वहां यूकेलिप्टस और बाजरा से शहद का उत्पादन करेंगे।


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