Dr.Rajendra Prasad Jayanti: मुजफ्फरपुर के गांव-गांव के लोग देश के प्रथम राष्ट्रपति को इस रूप में करते हैं याद
Dr.Rajendra Prasad Jayanti गांवों में चरखा चला लोगों को किया था जागरूक। देश के पहले राष्ट्रपति का जिले से रहा गहरा लगाव जिले के स्वतंत्रता सेनानी गांधीवादी ध्वजा प्रसाद साहू से रही काफी घनिष्टता। लोग अब भी होते हैं प्रेरित।
मुजफ्फरपुर, अमरेंद्र तिवारी। Dr.Rajendra Prasad Jayanti: देश के पहले राष्ट्रपति का जिले से गहरा लगाव था। गांधी के खादी आंदोलन में यहां पर रहे। गांव-गांव जाकर घर-घर चरखा चलाने के लिए लोगों को जागरूक किया और स्वदेशी आंदोलन को मजबूत किया। तीन दिसंबर को जयंती पर लोग उनको याद करेंगे। स्वतंत्रता सेनानी गांधीवादी ध्वजा प्रसाद साहू से उनकी काफी घनिष्टता रही। राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे उन्हें निरंतर पत्र लिखते थे। खादी और गांधी के हर कार्यक्रम में उनकी सलाह जरूरी मानते थे। अपने पुत्र मृत्युंजय बाबू को लिखे पत्र में भी राजेंद्र बाबू ने कहा था कि ध्वजा बाबू की सलाह को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए। उन्होंने एलएस कॉलेज में शिक्षक के रूप में अपनी सेवा दी।
सबके उदय की बात करते थे
ध्वजा प्रसाद साहू के पौत्र समाजसेवी संजीव साहू कहते हैं कि राजेंद्र बाबू सर्वोदय यानी सबके उदय की बात करते थे। उनकी इस सोच में वे लोग भी शामिल थे, जो निर्धन, विपन्न, अभावग्रस्त तथा अशिक्षित हैं। राजेंद्र बाबू कर्मप्रधान व्यक्ति थे। गीता को अपना आदर्श मानते थे। महात्मा गांधी के करीबियों में राजेंद्र बाबू एक अतुलनीय, सरल और सहज व्यक्तित्व के स्वामी थे। माटी से गहरा रिश्ता उनके व्यक्तित्व को एक नई पहचान देता था। भले ही देश के प्रथम राष्ट्रपति हुए और भारत के संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में उत्कृष्ट काम किया। लेकिन, भारतीय संस्कृति की गरिमा उनमें कूट-कूट कर भरी थी। 1917 के चंपारण सत्याग्रह से लेकर गांधीजी के तमाम रचनात्मक कार्यों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। 1925 में जब गांधीजी ने अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना की तो राजेंद्र बाबू बिहार के प्रभारी बने। लक्ष्मी बाबू,ध्वजा बाबू के साथ गांवों में चरखा चलाने के लिए आमजन को प्रेरित किया।
एलएस कॉलेज में दी अपनी सेवा
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व से एलएस कॉलेज मुजफ्फरपुर भी लाभान्वित हुआ। उन्होंने महाविद्यालय के शिक्षक और प्राचार्य के रूप में सेवा की। जनवरी 1908 ई.में राजेंद्र बाबू कोलकाता विश्वविद्यालय से ऊंची श्रेणी में एमए की परीक्षा पास की और जुलाई में एलएस कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए।