मुजफ्फरपुर के एक थाने में दो भाइयों की जोड़ी का डबल धमाल
दोनों भाई हर काम में माहिर हैं। थाने की गाड़ी चलानी हो या मुंशी से लेकर हाकिम तक का काम सबको बखूबी अंजाम देते हैं। कभी भी बड़े साहब व उनके नीचे वाले हाकिम की इस पर नजर नहीं पड़ी। इस कारण लगता है उन्हें पूरी छूट मिली हुई है।
मुजफ्फरपुर, [संजीव कुमार]। राजधानी मार्ग पर दो ओपी वाले थाने में दो भाइयों की जोड़ी ने धमाल मचा रखा है। कोतवाल से लेकर सभी वर्दीधारी इनके इशारे पर दौड़ते हैं। इन वर्दीधारियों को अपनी वर्दी से ज्यादा कागज के मोटे बंडलों से प्रेम है। तभी तो एक निजी चालक के इशारे पर सारा खेल किया जाता है। दोनों भाई हर काम में माहिर हैं। थाने की गाड़ी चलानी हो या मुंशी से लेकर हाकिम तक का काम, सबको बखूबी अंजाम देते हैं। कभी भी बड़े साहब व उनके नीचे वाले हाकिम की इस पर नजर नहीं पड़ी। इस कारण लगता है कि उन्हें पूरी छूट मिली हुई है। जो मन करता है, इलाके में वही काम करते हैं। हर दिन बिना किसी गुनाह के लोगों को पकड़कर थाने पर लाना और फिर रात के अंधेरे में कागज का बंडल का खेल कर छोड़वाने का काम किया जाता है। देखिए, कब बड़े साहब की नजरें इनायत होती हैं।
तेवर कड़े, कार्रवाई सिफर
लाल पानी पर मुख्यालय सख्त है। लाल पानी के धंधे में शामिल बड़ी मछलियों को पकड़ा नहीं जा रहा। भले ही मामला दर्ज कर खानापूरी की जा चुकी। मुख्यालय की समीक्षा के बाद अब तक एक भी बड़े धंधेबाजों की गिरफ्तारी नहीं होना वर्दीधारियों की कार्यशैली पर सवाल है। कोतवाल से लेकर साहब तक के तेवर कड़े हैं, लेकिन धरातल पर सख्ती से इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा। नतीजतन प्रत्येक चौराहों पर लाल पानी आराम से मिल जा रहा। एक फोन लगाने के बाद लाल पानी का पैकेट होम डिलीवरी में पहुंच जाता। जबकि सभी विभागों द्वारा हर दिन कार्रवाई का दावा किया जाता। लाल पानी की बिक्री रोकने को वर्दीधारियों के अलावा एक विभाग भी है। उन पर विशेष जिम्मेदारी है। विभाग से कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूरी कर काम तमाम कर लिया जाता।
कोतवाल के लिए ईमानदार हाकिम का इंटरव्यू
खुद को बैठने के लिए कुर्सी नहीं है। दूसरे को कोतवाल की कुर्सी दिलाने का झांसा दिया जाता है। महकमे में इन दिनों एक हाकिम द्वारा ऐसा ही कारनामा किया जा रहा। वे हाकिम कोई साधारण नहीं हैं। महकमे में सब उन्हें ईमानदार हाकिम के नाम से जानते हैं। गत दिनों उन्हें थाने की कुर्सी से हटा दिया गया। इन दिनों लाल पानी पकडऩे वाली टीम में हैं। उनकी खुद की कार्रवाई शून्य है, लेकिन नए बैच वाले डबल स्टार लगाए वर्दीधारियों को कोतवाल बनवाने का झांसा देते रहते हैं। इसके लिए हाकिम के इंटरव्यू से वर्दीधारियों को गुजरना पड़ता है। हाकिम अपने को ऐसे पेश करते हैं कि सामने वाले को साहब से उनकी बहुत नजदीकी का भान हो। वैसे हकीकत यह है कि साहब की नजर में उनकी छवि जीरो है। क्योंकि उन्हें जो भी कार्य दिया जाता, वे उसे पूरा नहीं कर पाते।
जाम के झाम में नो इंट्री का खेल
जाम के झाम में नो इंट्री का खेल चल रहा। हर दिन नो इंट्री में दर्जनों की संख्या में प्रतिबंधित वाहनों का परिचालन हो रहा। इन वाहनों पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूरी की जाती। इसकी आड़ में हर दिन नो इंट्री के नाम पर चल रहे खेल में वाहनों से मोटे कागजों के बंडलों की वसूली की जाती, मगर साहब की नजर नहीं। चलिए, साहब के पास बहुत काम रहता है। उनके नीचे भी कई हाकिम हैं। जाम से निजात दिलाने वाले विभाग में भी एक हाकिम की तैनाती है, लेकिन उनके स्तर से भी इस पर कोई पहल नहीं की जाती। नतीजा, हर दिन लोगों को जाम के झाम का सामना करना पड़ रहा। इससे निजात को बनी रणनीति सिर्फ कागजों पर ही सिमटी है। ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। इसे दुरुस्त नहीं किया जा रहा।