बिहार: यहां के आदिवासी व थारू समुदाय की बेटियों ने छेड़ी है मुहिम, बाल विवाह ना-बाबा-ना
Women empowerment बिहार के आदिवासी व थारू समुदाय की बेटियों ने छेड़ी मुहिम फैला रहीं जागरूकता। बगहा दो प्रखंड की डेढ़ दर्जन किशोरियों ने विवाह से इन्कार कर पढ़ाई को दी तरजीह।
पश्चिम चंपारण [सौरभ कुमार]। बिहार का ये पिछड़ा इलाका और लोगों की सोच भी रूढि़वादी। कम उम्र में ही बेटियों की शादी का प्रचलन। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को इस इलाके की बेटी ने चुनौती दी और अपनी शादी से इन्कार कर इस प्रचलन को गलत करार दिया। जिस थारू और आदिवासी समाज में बाल विवाह की प्रथा अहम थी आज वह समाज भी बाल विवाह को गलत मान रहा है।
वर्ष 2018 में नौवीं में पढ़ाई के दौरान बिनवलिया बोदसर की 14 वर्षीय ज्योति कुमारी की शादी भी घरवालों ने तय कर दी। लेकिन, अन्य लड़कियों की तरह उसने सिर झुकाकर इस फैसले को स्वीकार करने की जगह इस परंपरा के विरोध का रास्ता चुना। काफी समझाने के बाद उसके घरवाले मान गए और आज उसकी वजह से कई लड़कियां बाल विवाह की कुप्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही हैं। ये लड़कियां पढ़ाई के साथ बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रही है।
तीन वर्षों में आया बदलाव
बगहा दो प्रखंड के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वनवर्ती गांवों में पिछले तीन वर्षों में इस तरह का बदलाव आया है। यहां बसे थारू व आदिवासी समुदाय की तकरीबन डेढ़ दर्जन बेटियां बाल विवाह से इन्कार कर पढ़ाई कर रही हैं। इनमें मिश्रौली की नीलम व गीतांजलि के अलावा ममता, अमृता और सोनी सहित अन्य हैं। इन सभी की उम्र 12 से 15 वर्ष तक थी। अब ये सभी बाल विवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही हैं।
शादी से किया इंकार
ज्योति बताती है कि जब शादी से इन्कार किया तो पिता प्रदीप महतो काफी नाराज हुए। घरवालों ने दबाव डाला तो स्वयंसेवी संस्था ईजाद से संपर्क किया। इसकी समन्वयक लक्ष्मी खत्री माता-पिता से मिलीं। उन्होंने समझाया कि कम उम्र में विवाह से बेटियों को गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता है। यह कानूनन अपराध भी है। इसके बाद शादी टली। ज्योति का कहना है कि अब इस संस्था से जुड़कर बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान भी चला रही हूं।
सुकन्या क्लब के माध्यम से करते जागरूक
ईजाद की प्रखंड समन्वयक लक्ष्मी खत्री बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बेटियों की शादी की जल्दी रहती है। जागरूकता के लिए पांच साल पहले ग्राम स्तर पर 'सुकन्या क्लब' का गठन किया गया। इसके सदस्य गांवों में बैठक कर लोगों को बाल विवाह के नुकसान बताते हैं। इसमें बाल विवाह से इन्कार करने वाली लड़कियां भी शामिल हैं। जो अभिभावक नहीं समझते, उनकी काउंसिलिंग की जाती है। इसका असर दिख रहा है। सोच बदल रही है। बेटियों की शिक्षा के प्रति अभिभावक सजग हुए हैं।
पढ़ाई का महत्व पता चला
बिनवलिया बोदसर निवासी अमृता के पिता प्रदीप महतो कहते हैं कि पहले लगता था कि जल्द से जल्द बेटी की शादी कर देनी है। लेकिन, उसने समझाया तो पढ़ाई का महत्व पता चला। भारती के पिता रेशमलाल महतो बताते हैं कि शादी नहीं करने का निर्णय अब सही लगता है। बेटी को उच्च शिक्षा दिलानी है। एसडीएम बगहा विशाल राज बताते हैं कि बाल विवाह के खिलाफ लड़कियों का प्रतिरोध और जागरूकता फैलाने का प्रयास सराहनीय है। उन्हें सम्मानित किया जाएगा।