बिहार के दरभंगा एक जगह ऐसा भी जहां 'अनाज की कोठी ' में सजाई जाती चिता, जानिए वजह
तीन नदियों का प्रकोप झेलनेवाली कुशेश्वरस्थान पूर्वी व पश्चिमी प्रखंड की बड़ी आबादी बरसात में आपात स्थिति में अनाज रखने के लिए मिट्टी से बनी कोठी का चिता सजाने में करती है उपयोग कमला बलान और कमला नदी के बाढ़ का कहर झेलने को मजबूर हैं कुशेश्वरस्थान के लोग
दरभंगा ( कुशेश्वरस्थान), जासं। दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान पूर्वी और पश्चिमी प्रखंड की एक बड़ी आबादी सालों से तीन नदियों का कहर झेल रही है। उन्हें मानसून शुरू होने से लेकर उसकी समाप्ति के दो तीन महीने बाद तक बाढ़ की त्रासदी से जूझना होता है। साल के छह महीने बाढ़ में डूबे रहनेवाले लोग जीनव जीने से लेकर मौत के बाद अंत्येष्टि तक का इंतजाम करके रखते हैं। उनमें से सबसे अहम है अंत्येष्टि। बाढ़ के दौरान इलाके के श्मशान जब बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं तो अंत्येष्टि में चिता सजाने के काम आती है ' अनाज रखनेवाली कोठी' । मिट्टी की इस कोठी में आम दिनों में पांच से छह ङ्क्षक्वटल तक अनाज रखा जाता है। बाढ़ में जब किसी अपने की मौत होती है तो कोठी से अनाज निकाल दिया जाता है। उसी के अंदर चिता सजाई जाती है। ताकि, चिता ठीक से जले और बारिश का भी असर कम हो।
जलकुंभी रखी जाती है कोठी के नीचे, तैयार होता है मचान भी
स्थानीय ग्रामीण सह बडग़ांव पंचायत के पूर्व मुखिया बादल सिंह , राम प्रताप पंडित, गोपालपुर के मकसुदन यादव, मधुबन के राधे राय,महिसोट के महेश यादव व अन्य बताते हैं कि हमारा इलाका तीन नदियों क्रमश: कोसी, कमला बलान और कमला के पानी की मार झेलता है। बाढ़ के समय जब श्मशान घाट पानी में डूब जाता है तो हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचता। अनाज की कोठी खाली करते हैं। जलकुंभी को जमाकर उसका ढेर बनाते हैं। फिर उसपर अनाज वाली कोठी रख देते हैं। पानी ज्यादा होने पर मचान बनाते हैं। फिर कोठी में शव को रखकर गोबर के उपले (गोइठा) व लकड़ी के जलावन को डालकर उसे बंद करते और संबंधित व्यक्ति के स्वजन मुखाग्नि देकर ङ्क्षहदू रीति-रिवाज से दाह-संस्कार करते हैं।
पूरी की जाती हैं तमाम रस्में
मौत के बाद तमाम रस्में विद्वान पंडितों की देखरेख में निभाई जाती हैं। घर से शवयात्रा में सभी स्वजन व रिश्तेदार शामिल होते हैं। शवयात्रा कोठी वाले स्थान पर जाती है। मृत शरीर को स्नान कराने के बाद कोठी में डालकर आग लगाने के बाद लोग जरूरी नियमों का पालन कर घर लौटते हैं। इसके बाद तय तिथि पर कोठी फोड़कर अस्थियां निकाली जाती हैं और उन्हें लोग अपनी इच्छानुसार गंगा व अन्य नदियों में प्रवाहित करते हैं।इस साल पहली अंत्येष्टि कुशेश्वरस्थान के महिसौट में
पूर्वी प्रखंड के महिसोट गांव में मंगलवार इस साल की पहली अंत्येष्टि बास के मचान पर अनाज की कोठी में हुई। गांव के शिवानी यादव (90 वर्ष ) का निधन सोमवार को देर रात हृदय गति रुक जाने से हो गया। स्वजनों को अंतिम संस्कार करने की ङ्क्षचता सताने लगी। गांव सहित आस पास के सभी श्मशान घाट बाढ़ के पानी में डूबे हैं। सड़कें भी बाढ़ के पानी में डूबी हैं। थक हारकर कुछ लोगों ने बाढ़ के पानी में बांस के मचान बनाकर उसके उपर मिट्टी की कोठी रखकर उसमें शव को रखकर लकड़ी से जलाने का सुझाव दिया। इसे सभी लोगों ने स्वीकारा।आनन फानन में लोगों ने नाव के सहारे श्मशान घाट पर बांस का मचान बनाकर उस पर मिट्टी के कोठी रख दी। शव को श्मशान घाट लाकर पूरे रीति रिवाज के अनुसार शव को कोठी में बैठाकर लकड़ी से उसे भर दिया। शिवानी के पुत्र राम प्रताप यादव ने मुखाग्नि दी। इलाके के प्रसिद्ध पंडित शिवाकांत ठाकुर ने बताया कि इस तरह की अंत्येष्टि हिंंदू धर्म में उत्तम है।
बाढ़ के समय में श्मशान घाट पानी में डूबा रहता है। श्मशान घाट का विकास कराया जा रहा है। कुछ जगहों पर श्मशान घाट का विकास नहीं हुआ है। वहां प्राथमिकता के आधार पर स्थल विकसित किया जाएगा। मिट्टी की कोठी और मचान पर दाह-संस्कार के मामले कम आते हैं। - रत्नेश्वर कुमार प्रखंड विकास पदाधिकारी, कुशेश्वरस्थान पश्चिमी