खटारा वाहन का 'जहर', पर्यावरण के लिए कहर
खटारा वाहनों से निकलने वाले धुंआ भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।
मुजफ्फरपुर : खटारा वाहनों से निकलने वाले धुंआ भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। वाहनों के ये जहर जिले के लिए कहर बनते जा रहे हैं। खटारा व अनफिट वाहन मालिक कार्रवाई नहीं होने से बेलगाम है। नतीजा धड़ल्ले से ऐसे वाहनों का परिचालन हो रहा है। विडंबना यह है कि ऐसे वाहन भी रुपये की खेल में कागज पर आल इज वेल है। अनफिट वाहनों से निकलने वाले धुंए हवा को दूषित कर रहे हैं। खटारा सवारी वाहनों का धुंआ हवा में घुलकर जानलेवा साबित हो रहा है। वाहनों के धुंए से सेहत
को नुकसान, जा रही जान
पर्यावरण प्रदूषित होने से लोग सांस, चर्म, नेत्र, हृदय से संबंधित रोगों की चपेट में लोग आ रहे हैं। बच्चों पर भी इसका असर पड़ रहा है। फिजिशियन डा. राजीव कुमार कहते हैं कि वाहनों से निकलने वाले धुंए से शरीर कई अंग प्रभावित होते हैं। एलर्जी की आशंका काफी बढ़ जाती है। हृदय, फेफड़ा को नुकसान पहुंचाता है। सांस संबंधी रोग की चपेट में आने की आशंका होती है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. निशात परवीन कहती है कि इसका असर गर्भ में पलने वाले बच्चे पर भी पड़ रहा है।
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ध्वनि प्रदूषण से
बहरेपन में वृद्धि
वाहनों में क्षमता से अधिक ध्वनि के हार्न का उपयोग हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण से घबराहट एवं बहरेपन की बीमारी बढ़ रही है। ईएनटी विशेषज्ञ डा. एफएम नूरी कहते हैं कि तीव्र ध्वनि से नींद नहीं आती है। नवजात शिशुओं पर भी प्रभाव पड़ता है। ध्वनि की तीव्रता 50 डेसीबल से अधिक होने पर कानों पर भी दुष्प्रभाव होने लगता है। निरंतर शोर के मध्य रहने पर कान के भीतरी भाग की तंत्रिकाएं नष्ट हो जाती हैं और इंसान के सुनने की क्षमता खत्म हो जाती हैं।
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'वाहनों के फिटनेस को लेकर लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं। मानक के उल्लंघन पर जुर्माना भी किया जा रहा है। प्रदूषण उल्लंघन पर दस हजार एवं फिटनेस उल्लंघन पर पांच हजार के जुर्माने का प्रावधान।'
रंजीत कुमार, एमवीआइ